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________________ श्रद्धापूर्वक पूजा भक्ति की। वहाँ से प्रस्थान करके गुणशील चैत्य, राजगृह, गुब्बर ग्राम की वन्दना करके बीच मार्ग में सूबा बिहार, पाटलिपुत्र, गया आदि नगर होते हुए सं० १९२४ माघ कृष्णा अष्टमी शनिवार को श्री गुरुदेव अमरचंद आदि सकल संघ के साथ, सकल तीर्थ शिरोमणि श्री शिखर गिरिराज की वन्दना करने पधारे। वहाँ पर अमरचंद आदि सारे संघ ने श्री गुरु तथा साधु (यति) संघ की भक्तिपूर्वक अर्चना की। तदनन्तर सं० १९२४ फाल्गुन कृष्णा चतुर्थी के दिन शुभ लग्न में दूगड़ श्री प्रतापसिंह के पुत्र रायबहादुर श्री लक्ष्मीपतसिंह, धनपतसिंह के बनाये हुए ऋषभ जिनचरण, वासुपूज्य जिनचरण, नेमिजिनचरण, वीर जिनचरणों की श्री गुरुदेव ने श्री सम्मेतशिखर पर विषम भूमि में अलग-अलग प्रतिष्ठा की। वहाँ रायबहादुर दूगड़ लक्ष्मीपतसिंह, धनपतसिंह ने संघ सहित गुरुदेव की भक्तिपूर्वक अर्चना की। तत्पश्चात् ग्यारह दिन श्री तीर्थराज की सेवा करके वहाँ से लौटकर फिर गुरुदेव सवारी के साथ उपाश्रय में पधारे और अमरचंद आदि भक्त संघ बालूचर चला गया। इसके बाद अजीमगंज में नाहटा श्री शिताबचंद ने श्री बीबी साहिबा के बनवाये हुए सुमति जिन मंदिर में श्री गुरुदेव के कर-कमलों से वेदी प्रतिष्ठा करवाई। फिर चम्पापुरी में बालूचर निवासी नाहटा अमरचंद ने श्री वासुपूज्य जिनमंदिर में आचार्यश्री से वेदी प्रतिष्ठा करवाई। सं० १९२६ फाल्गुन शुक्ला सप्तमी के दिन आपने अजीमगंज के रामबाग में अष्टापद भावकृत चैत्य में मंदिर की और जिन प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा की। उस समय वहाँ के भक्त संघ ने अष्टाह्निका महोत्सव किया। तदनन्तर सं० १९२७ पौष शुक्ला दशमी के दिन अजीमगंज निवासी गोलेच्छा गोत्रीय श्री हरखचंद इन्द्रचंद की प्रार्थना से खरतरगणाधीश्वर श्री जिनहंससूरि ने वाचनाचार्य श्री सुमतिशेखर गणि, पं० हंसविलास गणि आदि सब यतिजनों के साथ बीजामति नायक (विजयगच्छीय) श्री शांतिसागरसूरि जी एवं यतियों सहित श्री सम्मेतशिखर तीर्थ पर श्रीसंघ के साथ जाकर श्रीतीर्थराज की वन्दना की। उस तीर्थराज पर खरतरगणाधीश श्री जिनहंससूरि जी का बीजामतनायक श्री शान्तिसागरसूरि जी के साथ मिलाप हो गया। दोनों में देर तक वार्तालाप हुआ। दोनों ने शाल जोड़ा नामक बहुमूल्य वस्त्र आपस में एक-दूसरे को ओढ़ाये। तदनन्तर उभय आचार्यों ने दोनों संध्याओं में देववन्दनार्थ साथ-साथ जाकर सारे संघ के साथ तीर्थराज को प्रणाम किया। श्री हरखचंद्र वहाँ पन्द्रह दिन तक ठहरा और लौट कर सकल संघ सहित अजीमगंज आ गया। तदनन्तर सं० १९२८ वैशाख शुक्ला सप्तमी के दिन बालूचर निवासी संघ की प्रार्थना से श्री गुरुदेव अजीमगंज से बालूचर पधारे और वहीं चातुर्मास किया। संघ ने बहुत भक्ति प्रदर्शित की। सं० १९२८ फाल्गुन शुक्ला सप्तमी को वहाँ से विहार करके क्रम से दिल्ली गये। स्थानीय संघ ने अधिक समारोह के साथ आपका नगर प्रवेशोत्सव किया तथा बहुत श्रद्धा-भक्ति की। पन्द्रह दिन तक दिल्ली में ठहर कर वहाँ से चलकर क्रम से राजगढ़, रिणी, सरदारशहर आदि नगरों को पवित्र करते हुये आचार्य सं० १९२९ ज्येष्ठ कृष्णा नवमी के दिन सुखपूर्वक बीकानेर पधारे। (२५४) खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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