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होकर अजीमगंज पधारे। वहाँ के निवासी संघपति श्री पूरणचंद गोलेच्छा के साथ आप चम्पापुरी को गए। सं० १९२१ वैशाख शुक्ला पंचमी के दिन वहाँ वासुपज्य जिनेश्वर को वंदना करके, वहाँ से चलकर क्रम से संघपति पूरणचंद के साथ सं० १९२२ वैशाख शुक्ला अष्टमी को श्रीसंघ कृत महोत्सव से श्री मकसूदाबाद नगर में, अजीमगंज के गंगातीर के उपाश्रय में जाकर सोलह दिन पर्यन्त निवास किया। वहाँ से विहार करके ज्येष्ठ कृष्णा दशमी को श्री बालूचर नगर में श्रीसंघ कृत महोत्सव द्वारा उपाश्रय में प्रवेश किया। दो वर्ष पर्यन्त वहाँ ही सुखपूर्वक निवास किया।
सं० १९२२ फाल्गुन शुक्ला द्वितीया शनिवार को दूगड़ इन्द्रचन्द्र की प्रार्थना से अपने भक्त संघों के साथ श्री सम्मेतशिखर पर पधार कर श्री तीर्थराज की वन्दना की। श्री इन्द्रचन्द्र ने भक्तिपूर्वक संघ का बहुत ही सत्कार किया। फिर चैत्र कृष्णा द्वितीया को वहाँ से वापस बालूचर नगर में पधारे। वहाँ के संघ ने आपकी अधिक भक्तिपूर्वक पूजा की। सं० १९२३ आषाढ़ शुक्ल पक्ष में श्रीसंघकृत महोत्सव द्वारा अजीमगंज गये और वहाँ पाँच वर्ष तक निवास किया।
सं० १९२४ पौष कृष्णा द्वादशी को नाहटा श्री अमरचंद की प्रार्थना से अपने भक्त संघ के साथ पावापुरी जाकर शासनाधीश्वर महावीर जिनेन्द्र की स्तुति की। वहाँ नाहटा श्री अमरचंद ने संघ की
१. आपके पिता का नाम धर्मचंद जी गोलेछा था, आप ही ने पवित्र तीर्थधाम श्री गिरनार जी की तलहटी में सं०
१९२१ के माघ या ज्येष्ठ द्वितीया को खरतरगच्छीय संवेगी मुनि श्री प्रेमचंद जी-जिनके नाम से ख्यात गुफा गिरनार पर्वत पर राजीमती की गुफा से दक्षिण दिशा में अब भी मौजूद है-की चरण पादुका एवं सं० १९२२ के ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष में परम पूज्य दादा गुरुदेव के चरण इन्हीं श्रीपूज्याचार्य श्री जिनहंससूरि जी से प्रतिष्ठित करवा के स्थापित किये हैं। जिनके लेख क्रमश: इस प्रकार हैं
"संवत् १९२१ शाके सतरे से छासीना प्रवर्तमाने मासोत्तं मासे पुण्यपवित्रमासे माघमासे शुक्ल पक्षे तिथौ जेठ शुक्ल (?) २ शुक्रे संघनायक संघमुख्य सेठ देवचन्द्र लखमीचंद तथा जीर्णगढ़ नो संघ समस्त श्री गिरनार क्षेत्रे मुनी प्रेमचंद जी नी पादुका तलाटी मध्ये थापयत्वात् (?) लि०पं० वलभविजे हस्ती शत्कः। श्रीमकसूदाबाद वास्तव्य ओ०। ज्ञा० । वृ० । गोलेछा गोत्रे शा० धर्मचंद जी तत्पुत्र पूरणचन्द्र जी संवेगी प्रेमचंद जी पादुका केन (?) कारित (?) प्रतिष्ठितं च बृहत्खरतरगच्छे जं० । यु०। प्र०। भ०। श्रीश्री श्री १००८ श्री जिनसौभाग्यसूरिश्वर जी तत्पट्टे जं०। यु०। यु०। प्र०। भ०। श्री १००८ श्री जिनहंससूरीश्वरेण प्रतिष्ठितं च। श्री।" ।
इस पादुका के ऊपर एक जोड़ छोटी पादुका और है जो इसी संवत् की प्रतिष्ठित है। लेख पूरा पढ़ा नहीं गया। संभव है इनके गुर्वादि की हो। इस पादुका वाली छत्री से संलग्न दाहिनी तरफ की छत्री में परम पूज्य गुरुदेव दादा साहब की चौमुखाकार चार पादुका के लेख इस प्रकार है___ संवत् १९२२ शाके १७८७ जैठ मास शुक्ल पक्षे.... श्रीमकसुदाबाद वास्तव्य ओ० । ज्ञाति गोलच्छा गोत्रे शा० धर्मचंद तत्पुत्र बाबू पूरणचंद जी श्री रेवताचल तलेटी मध्ये पादुका केन (?) करापितं प्रतिष्ठितं बृहत्खरतरगच्छ जं०। यु०। प्र० । भ०। श्री श्री श्री १००८ श्री जिनहंससूरीश्वरेण प्रतिष्ठितं विद्या अर्थि दयाचंदजी वं०(दना) दा (?) ज्ञेया। श्री शुभं।
पूर्व-श्री जिनकुशलसूरि जी। दक्षिण-श्री जिनदत्तसूरि जी। पश्चिम-श्री जिनलाभसूरि जी। उत्तर श्री जिनचन्द्रसूरि जी।
संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास
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