________________
आचार्य श्री जिनहंससूरि
8
इनका जन्म सं० १९०० में मारवाड़ के कुजटी गाँव में हुआ था। इनका मूल नाम हिमतराम था। गोताणी गोत्रीय साह मिनरूप जी इनके पिता और जयादेवी इनकी माता थी। सं० १९१७ फाल्गुन कृष्ण पंचमी के दिन बीकानेर में इनकी दीक्षा हुई। दीक्षा-महोत्सव चोपड़ा कोठारी घेवरचंद ने किया था। दीक्षा नाम हितवल्लभ हुआ। सं० १९१७ फाल्गुन कृष्णा एकादशी गुरुवार को शुभ मुहूर्त में बीकानेर में बच्छावत श्री अमरचंद, झालरापाटण निवासी श्री भूरामल गोलेछा, श्री ज्ञानचंद आदि के नंदी महोत्सव से आपका पट्टाभिषेक हुआ।
सं० १९१८ ज्येष्ठ शुक्ला पूर्णिमा को श्री गुरुदेव नाल ग्राम में दादावाड़ी दर्शन को गए। वहाँ राजा ने महाराव श्री हरिसिंह आदि मंत्रियों को भेजकर विज्ञप्ति कराई। उनकी प्रार्थना सुनकर गुरुदेव गजनेर गये। तब आषाढ़ कृष्ण प्रतिपदा को प्रातःकाल बड़े आडंबर के साथ नक्कारे निशान पूर्वक आपका तम्बू में प्रवेशोत्सव कराया। तब राजा सरदारसिंह जी ने शीघ्र ही श्रीगुरु चरणों का स्पर्श करने हेतु आकर पच्चीस रुपये भेंट किये और दण्डवत् प्रणाम के पश्चात् थोड़ी देर तक वार्तालाप करके राजा फिर अपने महल में चला गया। तदुपरान्त मध्याह्न में राजा ने स्वयं श्री गुरुदेव तथा सब यतिजनों को मिष्ठान्न-पान का आहार-दान दिया। फिर दिन के तीसरे प्रहर में अपने नूतन चतुष्क-महल को चरणारविन्द से पवित्र करने के लिए पधारने की विज्ञप्ति लेकर मंत्रियों को भेजा। उनकी प्रार्थना से गुरुदेव राजभवन में पधारे। वहाँ राजा ने सौ रुपये, पालकी तथा सोने की छड़ी भेंट की और दण्डवत् प्रणाम करके शाल जोड़ा नामक बहुमूल्य वस्त्र ओढ़ाया। फिर थोड़ी देर तक बातचीत के पश्चात् बड़े आडंबर के साथ मंत्रियों द्वारा बीकानेर नगर के बड़े उपाश्रय में आपका प्रवेशोत्सव करवाया। सं० १९१८ का चौमासा बीकानेर नगर में ही किया।
सं० १९१९ वैशाख शुक्ला सप्तमी के दिन श्री सूरतगढ़ में अष्टाह्निका महोत्सवपूर्वक चैत्य की प्रतिष्ठा की। वहाँ के संघ ने गुरुदेव की बहुत आदर भक्ति की। फिर आप वहां से बीकानेर आ गए।
इसके पश्चात् सं० १९१९ मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी के दिन बीकानेर से प्रस्थान करके महाराजा श्री सरदारसिंह जी की प्रार्थना तथा आग्रह से उनके सत्ताइस सौ गाँवों में भ्रमण करके, अपनी चरण धूलि से वहाँ की भूमि को तथा कृपा कटाक्ष से वहाँ की नानाविध दुःखों से पीड़ित जनता को अनुग्रहीत करके एवं उनके द्वारा किये गये सत्कार को ग्रहण करते हुए सं० १९२० आषाढ़ शुक्ला एकादशी के दिन पीछे बीकानेर आये और चातुर्मास यहीं किया।
सं० १९२० माघ शुक्ला पंचमी को बीकानेर से प्रस्थान कर देशणोक, रायगढ़, अकबराबाद
(२५२)
खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड
Jain Education International 2010_04
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org