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________________ सं० १९१७ में आश्विन शुक्ला सप्तमी को संघ ने वहीं पर नवपद मण्डल रचना का कार्य आरम्भ किया। आदीश्वर मंदिर के सेवक करणीदास से इस बात को सुनकर नरेन्द्र शिरोमणि श्री सरदारसिंह जी ने नवपद मण्डल की रचना के लिए पचास रुपये दिये। फिर रामलाल मंत्री ने कहा कि-"मेरे कोष्ठागार से प्रतिवर्ष पूजा के लिए पचास रुपये भेजे जाते रहेंगे।" पूर्णिमा के दिन राजा स्वयं श्री गौड़ी पार्श्वनाथ मंदिर में गया और सिद्धचक्र मण्डल के सम्मुख ग्यारह रुपये भेंट किये। थोड़ी देर वार्तालाप के अनन्तर राजा अपने महल में आ गया और श्री गुरुदेव उपाश्रय में चले गये। फिर गुरुदेव ने नगराधीश को, सरदारशहर निवासी बोहथरा गुलाबचंद को तथा बीकानेर निवासी बागड़ी माणकचंद को पुत्राम्नाय प्रदान किया। सं० १८९४ में आपने जब बंगाल की ओर प्रस्थान किया था तब मार्ग में रामगढ़ नगर में मुकाम किया था। वहाँ पर एक वृद्धा की पुत्री के गुप्त भाग में प्रस्तरी का रोग था, इसलिए वह उसकी पीड़ा से रात में बहुत रोई। तब गुरुदेव ने फौजदार के मुख से उसका सारा वृत्तान्त सुनकर मध्याह्न में अपने आहार के पात्र में सब आहार इकटा करके एक ग्रास उस वद्धा की पत्री उसने उस ग्रास को खाया कि उसके प्रभाव से थोड़ी देर में उसको लघुशंका हुई, जिसमें वह पथरी बाहर आ गिरी। उस पथरी पर घण चलाये गये तब भी वह नहीं टूटी। इस प्रकार आपने अनेक उपकार किये। तदनन्तर श्री गुरुदेव यावज्जीवन पादचारी, एकाहारी रहने लगे। इस तरह आचार्य के गुणों से भूषित श्री जिनसौभाग्यसूरि जी सं० १९१७ माघ शुक्ल तृतीया को रात्रि के प्रथम प्रहर में चार प्रहर का अनशन लेकर स्वर्गवासी हुए। आपके स्मारक स्तूप चरण बनवाकर बीकानेर संघ ने १९१८ फाल्गुन सुदि ८ को जिनहंससूरि जी से प्रतिष्ठित करवायी। 卐卐 संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास (२५१) Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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