SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 314
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सं० १९१० वैशाख मास में शुभ दिन देखकर सरदार शहर में दादा श्री जिनकुशलसूरि के चरण-चिह्न-मंदिर की प्रतिष्ठा की। यह प्रतिष्ठा बोहथरा श्री गुलाबचंद ने करवाई थी। इसके बाद सं० १९१० ज्येष्ठ कृष्णा अमावस के दिन आप नाल गाँव में श्री दादाजी महाराज के चरणारविन्द के दर्शन को पधारे। वहाँ पर आपके दर्शन को उत्कण्ठित महाराज श्री सरदारसिंह जी ने गजसिंहपुर (गजनेर) से महाराव हरिसिंह मंत्री को भेजकर महाराज से अपने वहाँ पधारने की विनती कराई। उनकी प्रार्थनानुसार आप मंत्री के साथ गजसिंहपुर (गजनेर) आये। वहाँ ज्येष्ठ शुक्ला प्रतिपदा को बड़े समारोह के साथ महाराज श्री को प्रातःकाल पटभवन में पधराया। राजा सरदारसिंह जी आचार्य चरण के दर्शन को तत्काल आये और पच्चीस रुपये भेंट किये। प्रणाम तथा थोड़ी देर तक वार्तालाप करके लौट गए। मध्याह्न में सब यतिजन तथा श्री गुरुदेव को राजा ने स्वयं अपने हाथों से मिष्ठान्न, आहार-पानी दान दिया। फिर दिन में तीसरे पहर में राजा ने अपने नये चतुष्क नाम के महल को पवित्र करने के लिए मंत्रियों को भेजकर महाराज से पधारने के लिए प्रार्थना कराई। तब गुरुदेव राजा के घर पधारे। वहाँ राजा ने सौ रुपये, पालकी, स्वर्ण की छड़ी भेंट की और बहुमूल्य शॉल का जोड़ा गुरुदेव को ओढ़ा कर प्रणाम किया। थोड़ी देर तक परस्पर बड़े आनन्द के साथ बातचीत की। इसके पश्चात् मंत्रियों द्वारा बीकानेर नगर से उपाश्रय में आपश्री का प्रवेशोत्सव बड़े धूमधाम से करवाया। सं० १९१० माघ शुक्ला पूर्णिमा के दिन राजा विवाह के लिए पूगल गये। फिर वहाँ से आकर एक दिन श्री लक्ष्मीनारायण जी के मंदिर में जाने की इच्छा से सवारी की। मार्ग में बड़े उपाश्रय के सामने हाथी खड़ा करके राजा ने पहले दोनों हाथ जोड़कर वैद मुंहता नथमल्ल के पुत्र छोगमल के हाथों से गुरुदेव को पच्चीस रुपये भेंट किये और पश्चात् लक्ष्मीनारायण जी के मंदिर में गये। सं० १९१४ आषाढ़ सुदि प्रतिपदा के दिन बीकानेर नगर में बिम्बों की प्रतिष्ठा की। सं० १९१६ वैशाख कृष्णा षष्ठी को नाल ग्राम में दादावाड़ी में श्रीसंघ को धर्मोपदेश देकर नवीन जिन मंदिर बनवा कर श्री जिन मंदिर की तथा बिम्बों की प्रतिष्ठा कराई। उस अवसर पर संघ ने बहुत मिष्ठान्न आहार पानी द्वारा सत्कार करके गुरुभक्ति और संघभक्ति (स्वधर्मीवात्सल्य) की। सं० १९१६ कार्तिक कृष्णा प्रतिपदा को बीकानेर नगर में गोगा दरवाजे के बाहर श्री गौड़ी पार्श्वनाथ जी के मंदिर में संघ की तरफ से नवपद मण्डल की रचना की गई। उसको देखने के लिये पूज्यश्री सब साधु संघ के साथ इकट्ठे होकर ढोल-ढमाके के साथ पधारे। उस नवपद मण्डल की महिमा को सुनकर राजा भी दर्शनोत्सुक होकर सवारी के साथ सिद्धचक के दर्शन को गया। ग्यारह रुपये भेंट किये तथा पाँच रुपये श्री गौड़ी पार्श्वनाथ को भेंट किये। दण्डवत् प्रणाम करके फिर सम्मेतशिखर मंदिर के निकट शाला-जहाँ श्री गुरुदेव विराज रहे थे, में आकर राजा ने दण्डवत् प्रणाम करके सौ रुपये भेंट किये। थोड़ी देर बातचीत के बाद राजा अपने किले में चला गया और गुरुदेव भी उपाश्रय में आ गये। (२५०) खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy