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(पटवा) भ्राताओं के आग्रह से आचार्यश्री भी संघ के साथ श्री सिद्धाचल जी की यात्रार्थ चले। बीच में वर्षाकाल आ गया। अतः श्री जिनहर्षसूरि जी ने मण्डोवर में चौमासा किया।
सं० १८६० वैशाख सुदि ७ गुरुवार को देशनोक-आंचलियावास के संभवनाथ स्वामी (मूलनायक) की प्रतिष्ठा आपने की। सं० १८७९ में नाल व सं० १८८८ में नाल एवं रेलदादाजी में भी आपके द्वारा चरण-पादुकादि प्रतिष्ठित हैं। सं० १८९१ में चूरू में भी आपने प्रतिष्ठा करवाई थी एवं देशनोक-भूरों के वास में शान्तिनाथ जिनालय में दादा साहब के चरण प्रतिष्ठित किए थे।
इस प्रकार अनेक स्थानों में प्रतिष्ठा करके, अनेकवादियों पर वाद में विजय प्राप्त कर, देशदेशान्तर में विचरण कर धर्म-प्रचार करने वाले आचार्यश्री का सं० १८९२ कार्तिक वदि ९ के दिन चार प्रहर का अनशन पालकर मण्डोवर में स्वर्गवास हुआ।
आप गुजरात, मारवाड़, मेवाड़, मालवा, उत्तरप्रदेश, बिहार, बंगाल आदि देशों में चिरकाल विचरे । लगभग २२ नंदियों में ५०० शिष्यों को दीक्षित किया था। ३० वर्षों की दीक्षानंदी सूची (सं० १८५६ से १८८६) से आपकी प्रशस्त शासन सेवा पर प्रकाश पड़ता है।
勇勇勇 आचार्य श्री जिनसौभाग्यसूरि आचार्य श्री जिनसौभाग्यसूरि का जन्म सं० १८६२ में मारवाड़ के सवाई सेरड़ा गाँव में हुआ था। इनका मूल नाम सूरतराम था। ये गणधर चोपड़ा गोत्रीय साह करमचंद के पुत्र थे, करुणा देव इनकी माता थी। सं० १८७७१ में सिंधिया दौलतराव के लश्कर नगर में इनकी दीक्षा हुई थी, दीक्षा नाम सौभाग्यविशाल था। सं० १८९२ मार्गशीर्ष शुक्ला ७ गुरुवार को शुभ लग्न में बीकानेर नगर में खजांची साह लालचंद सालमसिंह कृत नंदी महोत्सव से पट्टाभिषेक हुआ। तदनन्तर वि०सं० १८९३ मार्गशीर्ष मास में बीकानेर नरेश श्री रतनसिंह जी के आग्रह से बीकानेर से चलकर उसके एक सौ सत्ताइस गाँवों में विचरण करके उनकी भूमि को अपने चरण-कमल की धूलि से पवित्र किया और अनेक प्रकार के दुःखों से व्याकुल वहाँ की जनता को अपने कृपा कटाक्ष से अनुग्रहीत किया तथा उनके द्वारा किये हुए सम्मान को स्वीकार कर सं० १८९४ आषाढ़ शुक्ला एकादशी को वापस बीकानेर आकर वहाँ चातुर्मास किया।
इसके पश्चात् सं० १८९४ के मार्गशीर्ष मास में शुभ अवसर देखकर बीकानेर से प्रस्थान करके देशनोक, रामगढ़, सीकर, भरतपुर, लश्कर, मीरजापुर, काशी, पटना, चम्पापुरी आदि नगरों में क्रम से विचरण करके सं० १८९५ की आषाढ़ शुक्ला एकादशी तिथि को श्री संघकृत बड़े महोत्सव के साथ मकसूदाबाद-अजीमगंज में गंगा के तट पर उपाश्रय में एक दिन मुकाम किया। वहाँ से बालूचर नगर
१. दीक्षा नंदी सूची के अनुसार विशाल नंदी में आपकी दीक्षा सं० १८६९ माघ सुदि १० बीकानेर में हुई थी।
संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास
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