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________________ आचार्य श्री जिनहर्षसूरि 8 इनका जन्म बालेवा गाँव में हुआ था। मूल नाम " हीरचंद" था। मीठड़िया बोहरा गोत्रीय साह तिलोकचंद इनके पिता का और तारा देवी माता का नाम था। सं० १८४१ में आऊ ग्राम में आप दीक्षित हुए, दीक्षा नाम हितरंग था। सं० १८५६ ज्येष्ठ शुक्ला पौर्णमासी को सूरत में श्रीसंघ कृत उत्सव में आप पट्टासीन हुए और श्री जिनहर्षसूरि नाम विख्यात हुआ। उस समय वहाँ श्री संघ ने चैत्य बिम्बों की प्रतिष्ठा करवाई। सं० १८६० अक्षय तृतीया के दिन देवीकोट के श्रीसंघकारित जिन चैत्य में १५० बिम्बों की प्रतिष्ठा कर, फिर जालौर नगर में मंत्री अक्षयराज कारित देवगृह की प्रतिष्ठा की। सं० १८६६ चैत्र सुदि पूर्णिमा को संघ के अधिनायक गिड़िया राजाराम, लूणिया साह तिलोकचंद कृत संघ में सवा लाख श्रावक और ग्यारह सौ साधुओं के साथ श्रीगिरनार, श्री पुंडरीकगिरि आदि तीर्थों की यात्रा की। वहाँ से अनेक देशों में भ्रमण करके सं० १८७० में सम्मेतशिखर महातीर्थ की यात्रा की। सं० १८७१ माघ सुदि षष्ठी बुधवार को कलकत्ता में श्रीसंघ द्वारा बनाये हुए शान्तिनाथ जिनालय की प्रतिष्ठा की। सं० १८७६ में श्रीसंघ के साथ पुनः श्री शिखर गिरिराज की यात्रा की। तदनन्तर दक्षिण देश के अन्तरिक्ष पार्श्वनाथ, मालवा के मकसी पार्श्वनाथ, मेदपाट के धुलेवा-केशरियानाथ जी आदि की यात्रा करके बीकानेर पधारे। सं० १८८७ आषाढ़ शुक्ला दशमी को श्री सीमंधर स्वामी के मंदिर में पच्चीस जिन प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा कराई। जांगलू के मूलनायक पार्श्वनाथ व दादासाहब के चरण भी इसी दिन प्रतिष्ठा कराके वहाँ सं० १८९० में इन्हीं के उपदेश से विराजमान किए, जबकि जांगलू के पारख अजयराज जी के पुत्र तिलोकचंद के निर्मापित नवपद यन्त्र की प्रतिष्ठा आपके द्वारा १८८५ में हुई है। बीकानेर के श्री गौड़ी पार्श्वनाथ जिनालय का जीर्णोद्धार आपश्री के उपदेश से १२०००/- रुपये लगाकर महाराजा रतनसिंह जी के समय में श्रीसंघ के करवाने का शिलालेख लगा है। इसी जिनालय में सं० १८८९ मिती माघ शुक्ला ९ बुधवार को सेठीया गोत्रीय बालचंद के पौत्र और केशरीचंद के पुत्र अमीचंद ने सम्मेतशिखर गिरिभाव वाले मन्दिर की प्रतिष्ठा आपश्री के कर-कमलों से कराई। उस समय जैसलमेर निवासी बाफणा बहादुरमल जोरावलमल के हृदय में सिद्धाचलजी की यात्रा का विचार हुआ। उनके मन में यह भाव उठा कि "जो पुरुष सिद्धाचल का स्पर्श कर लेता है, उसका जीवन सफल हो जाता है।" ऐसा विचार करके सपरिवार बीकानेर आये। यहाँ महोत्सव से बहुत द्रव्य खर्च करके गुरुदेव की वन्दना की, सात क्षेत्र में खूब धन दिया। सब यति-साधु-साध्वियों को बहुमूल्य वस्त्र अर्पण किए। उदरामसर के दादा श्री जिनदत्तसूरि जी के मन्दिर का जीर्णोद्धार आपश्री के उपदेश से करवाकर बाहर से नौ चौकियों का निर्माण करवाना प्रारम्भ किया। इन बाफणा (२४६) खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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