SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 312
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ में पधार कर, वहाँ के भाविकजनों के पुण्योदय से चातुर्मास पर्यन्त वहीं विराजे । वहाँ माघ कृष्णा १३ को दूगड़ श्री इन्द्रचन्द्र के आग्रह से अपने भक्त परिवार सहित श्री सम्मेतशिखर तीर्थ-यात्रार्थ चले और वहाँ पहुँचकर तीर्थराज की वन्दना की । श्री इन्द्रचन्द्र ने भक्तिपूर्वक संघ की पूजा की। फिर वहाँ से लौटकर बालूचर नगर पधारे। सं० १८९६ की आषाढ़ सुदि ग्यारस के दिन अजीमगंज निवासी भक्त संघ की प्रार्थना से अजीमगंज पधारे और चातुर्मास वहीं सुख से किया । वहाँ से मार्गशीर्ष शुक्ला एकादशी को प्रस्थान करके दूगड़ श्री प्रतापसिंह की प्रार्थना से श्रीसंघ महोत्सव के साथ कोलाहल से भरी हुई कलकत्ता राजधानी में पधारे। श्री प्रतापसिंह के आग्रह से कार्तिक-पूर्णिमा के महोत्सव से भी बढ़कर श्री धर्मनाथ जिनेन्द्र का महामहोत्सव करके दादावाड़ी नाम से विख्यात बाग में भक्त संघ सहित पधारे। आचार्य श्री उस महोत्सव में तीन दिन तक वहाँ पर ठहर कर फिर कलकत्ता को लौट आये। वहाँ के सभी भक्त संघों की प्रार्थना से चार मास तक वहाँ ठहर कर चैत्र मास में शुभ लग्न से फिर अजीमगंज को चले गए। वहीं चातुर्मास करके गोलेच्छा धर्मचंद, कर्मचंद, सेठिया पानाचंद, सावनसुखा गुलाबचंद आदि धनिकों की प्रार्थना से सं० १८९७ माघ मास के शुभदिन में श्रीसंघ के साथ फिर शिखरगिरि की यात्रा की और भक्तों द्वारा किये गये महोत्सव के कारण वहाँ पन्द्रह दिन पर्यन्त विराज कर पीछे अजीमगंज लौट आये । सावनसुखा सुखमल की श्रद्धालु पत्नी पन्ना बीबी ने आचार्य श्री जिनसौभाग्यसूरि द्वारा सं० १९०० आषाढ़ शुक्ला नवमी को श्री नेमिनाथ मंदिर में जिन बिम्ब की प्रतिष्ठा कराई और सपरिवार आचार्यश्री की इस प्रतिष्ठा महोत्सव में बड़ी भक्ति से पूजा की । इसके बाद आपने दूगड़ इन्द्रचन्द्र के हित के लिए उसे सिद्धगिरि की यात्रा करने का उपदेश दिया । आचार्यश्री के उपदेश से प्रसन्न हुआ इन्द्रचन्द्र संघ सहित आपश्री को आगे करके शुभमुहूर्त से चम्पापुरी गया और वहाँ से परिवार सहित काशी आया । आचार्य श्री जिनसौभाग्यसूरि तो चम्पापुरी से ही संघ के आग्रहानुसार सम्मेतशिखर तीर्थराज को चले गये और वहाँ आठ दिन निरन्तर महोत्सव करके बीकानेर निवासी श्रीसंघ कारित श्री जिन मंदिर की प्रतिष्ठा की। फिर किसी दिन प्रातःकाल रवाना होकर काशी में श्रीसंघ से आ मिले और संघ सहित वहाँ के तीर्थों की यात्रा की । वहाँ से चलकर जयपुर, कृष्णगढ़, अजमेर, पाली, पंचतीर्थी, आबू, शंखेश्वर पार्श्वनाथ, तारंगा, पाटण, पाल्हणपुर आदि नगरों में श्री जिन चैत्यों की वन्दना - अर्चना कर गिरनार गये और वहाँ से चलकर सं० १९०२ आषाढ़ के शुभ दिन में तीर्थराज श्री सिद्धगिरि पधार कर श्रीसंघ समेत वहीं चातुर्मास करके निनानवें वार (निन्नाणु यात्रा) तीर्थराज की यात्रा की । कार्तिक शुक्ला पूर्णिमा की यात्रा कर, वहाँ से चलकर घोघाबंदर, भावनगर, अहमदाबाद आदि नगरों में देवदर्शन करते हुए श्री धुलेवागढ़ ऋषभनाथ की यात्रा की । वहाँ से अजमेर आये । श्रीसंघ के सम्मान को अंगीकार करके पाँच-छः दिन वहीं सुखपूर्वक निवास किया। (२४८) Jain Education International 2010_04 खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम खण्ड For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy