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________________ वहाँ से संघ के आग्रह से स्वर्णगिरि-जालोर पधारे। श्रेष्ठि पीथे ने प्रवेशोत्सव किया। वहाँ से बीकानेर पधारे, नथमल वेणे ने बहुत सा द्रव्य व्यय कर प्रवेशोत्सव किया। वहाँ से उग्रविहार करते हुए सं० १७०१ का चातुर्मास वीरमपुर में संघाग्रह से किया। चातुर्मास समाप्त होते ही संघ के आग्रह से बाहड़मेर पधार कर सं० १७०२ का चौमासा वहाँ किया। सं० १७०३ का चातुर्मास कोटड़े में किया। वहाँ से श्रावकों की वीनती से जैसलमेर पधारे। गोपा साह ने प्रवेशोत्सव कर धन सार्थक किया। याचकों को दान से संतुष्ट किया। संघ के आग्रह से सं० १७०४ से १७०७ तक के चार चातुर्मास जैसलमेर में ही किये। आगरा संघ की विनती से आगरा पधारे। मानसिंह ने बेगम की आज्ञा प्राप्त कर सूरिजी का प्रवेशोत्सव बड़े समारोह से कराया। व्रत-पच्चक्खाण धर्मध्यान का ठाठ लग गया। तीन चातुर्मास सं० १७०८ से विराजे । सं० १७११ का भी संघाग्रह से वहीं हुआ, क्योंकि आषाढ़ सुदि १० से ही शारीरिक अशाता विशेष रूप से हो गई। अपना आयुष्य अल्प ज्ञात कर चौरासी लक्ष जीवयोनि से क्षमापना-आलोचनापूर्वक स्वयं अपने मुख से अनशन कर, अपने पट्ट पर हर्षलाभ को स्थापित कर, सं० १७११ मिती श्रावण वदि ७ सोमवार को स्वर्ग सिधारे। सूरिजी की अन्त्येष्टि बड़े धूमधाम से करके संघ ने दाहस्थल पर सुन्दर स्तूप का निर्माण कराया। 勇 आचार्य श्री जिनचन्द्रसूरि । उनके बाद आचार्य श्री जिनचन्द्रसूरि उनके पट्ट पर आसीन हुए। आपका जन्म बीकानेर निवासी चोपड़ा गोत्रीय साह सहसकरण (मल) की पत्नी सुपियारदे की कोख से सं० १६९३ में हुआ था। आपका जन्म नाम हेमराज था। सं० १७०७ (५?) मिती मिगसर सुदि १२ को जैसलमेर में दीक्षा हुई और दीक्षा नाम हर्षलाभ रखा गया। उस समय आप बारह वर्ष के थे। सं० १७११ में श्री जिनरत्नसूरि जी का आगरे में स्वर्गवास हुआ, तब आप राजनगर में थे। उनकी आज्ञानुसार भाद्रपद कृष्णा सप्तमी को राजनगर में नाहटा गोत्रीय साह जयमल्ल, तेजसी की माता कस्तूर बाई कृत महोत्सव द्वारा आपकी पदस्थापना हुई। आप त्यागी, वैराग्यवान् और संयम मार्ग में दृढ़ थे। गच्छवासी यतिजनों में प्रविष्ट होती शिथिलता को दूर करने के लिए आपने सं० १७१७ मिती आसोज सुदि १० को बीकानेर में व्यवस्था पत्र जाहिर किया, जिससे शैथिल्य का परिहार हुआ। सं० १७३५ आषाढ़ शुक्ल ८ को खंभात में आपने बीस स्थानक तप करना प्रारम्भ किया। आपने अनेक देशों में विहार करते हुए सिन्ध में जाकर पंच नदी की साधना की। जोधपुर निवासी शाह मनोहरदास द्वारा कारित संघ के साथ श्री शत्रुजय तीर्थ की यात्रा की और मंडोवर नगर में संघपति मनोहरदास द्वारा कारित चैत्य के शृंगारतुल्य श्री ऋषभदेवादि चौबीस तीर्थंकरों की प्रतिष्ठा की। १. माता का नाम कवि हर्षचन्द और कल्याणहर्ष "सुपियारदे" लिखते हैं। कवि विद्याविलास सिन्दूरदे और कवि करमसी राजलदे लिखते हैं। (२३८) खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड ___Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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