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उक्त सभी ग्रन्थ बृहत् एवं संस्कृत-निबद्ध हैं। मरुगुर्जर-भाषा (प्राचीन हिन्दी भाषा) में भी औपदेशिक साहित्य की रचना हुई। यह साहित्य गीतों एवं पदों में रचित है। उपदेशपरक हजारों पद मिलेंगे। एकएक कवि ने सैकड़ों उपदेशपरक पद एवं गीत लिखे हैं। स्वतन्त्र पदों एवं गीतों के अलावा सामूहिक रूप में भी मिलते हैं। कवियों ने उन्हें पच्चीसी, बत्तीसी, बावनी, सित्तरी, बहुत्तरी, सईकी आदि नाम दिये हैं। ८. साम्प्रदायिक सौहार्द
खरतरगच्छ के मुनियों की साम्प्रदायिक उदारता सभी गच्छों के लिए एक आदर्श है। खरतरगच्छ के बहुत से विद्वान् आचार्यों ने अन्य गच्छों के साधुओं को विद्यादान दिया है, उनके सहयोग एवं सहकार से साहित्य का निर्माण एवं संशोधन किया है, उनके विविध शासन-प्रभावक कार्यों में अपनी सन्निधि दी है। अन्य गच्छीय या साधुओं को यथोचित सम्मान देना भी इस गच्छ का प्रमुख वैशिष्ट्य
खरतरगच्छ के विद्वान मुनियों ने अन्य धर्म के ग्रन्थों पर विद्वत्तापूर्ण व्याख्या-ग्रन्थ लिखे हैं। खरतरगच्छीय मुनियों ने तपागच्छीय संतों का भी गुणगान किया है। उपाध्याय श्रीवल्लभ ने आचार्य विजयदेवसूरि के सम्बन्ध में 'विजयदेव-माहात्म्य' और महोपाध्याय समयसुन्दर ने महातपस्वी पुंजा ऋषि के सम्बन्ध में श्री पुंजा ऋषि रास लिखकर खरतरगच्छ की उदारवादिता का प्रकृष्ट उदाहरण प्रस्तुत किया है। इतना ही नहीं, समयसुन्दर ने अपने समकालीन तपागच्छीय प्रभावक आचार्य हीरविजयसूरि की मुक्त कंठ से स्तुति भी की है। जिनहर्ष ने सत्यविजय निर्वाण रास लिखा है। ९. अन्य विशेषताएँ
जैन धर्म संघ को खरतरगच्छ की देन बहुत आयामी है। जहाँ उसने सम्यग् दर्शन, ज्ञान और चारित्र समन्वित साधना के द्वारा अपने अन्तर-व्यक्तित्व को निखारा, तो वहीं विश्वहित के लिए विविध नैतिक मापदण्डों को अपनाया। खातरगच्छ ने शासन-हित एवं मानव जाति के अभ्युदय के लिए जो-जो कार्य किये, उनमें से कतिपय बिन्दुओं पर हमने चर्चा की है। इनके अतिरिक्त भी सामाजिक, धार्मिक तथा राष्ट्रीय मंच पर खरतरगच्छ का अनुदान अप्रतिम है।
भगवान महावीर के शासन के उन्नयन हेतु तो खरतरगच्छ समग्ररूप से समर्पित रहा है। खरतरगच्छाचार्यों की पावन निश्रा में हजारों जिन-प्रतिमाओं की प्रतिष्ठाएँ हुई हैं। भारत के विभिन्न जैन तीर्थों की चतुर्विध संघीय पद-यात्राएँ हुई हैं। जिन तीर्थों की समुचित व्यवस्था के लिए श्री आनन्द जी कल्याण जी पेढी जैसी राष्ट्रीय प्रबन्ध समितियाँ इस गच्छ ने ही स्थापित की हैं। प्राचीन हस्तलिखित धर्म-शास्त्रों का सबसे महत्त्वपूर्ण ग्रन्थालय 'जैसलमेर ज्ञानभण्डार' की संस्थापना भी खरतरगच्छ द्वारा ही हुई है। जैनों के प्रमुख तीर्थों में नाकोड़ा तीर्थ एक है। इसकी स्थापना भी खरतरगच्छ द्वारा ही हुई
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भूमिका
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