________________
है। तीर्थराज सम्मेतशिखर, पावापुरी, क्षत्रियकुंड, चम्पापुरी, राणकपुर आदि तीर्थों में भी खरतरगच्छ का ही प्रभुत्व था, और है भी। महातीर्थ शत्रुजय पर भी एक समय में खरतरगच्छ का सर्वाधिक प्रभाव था। वहाँ निर्मित 'खरतरवसही की ट्रॅक' इसी गच्छ की देन है।
तीर्थंकरों की प्रतिमाएँ तो सर्वत्र पूजनीय हैं, किन्तु गुरुओं की मूर्तियों को प्रतिष्ठित एवं प्रसारित करने का श्रेय खरतरगच्छ को ही है। खरतरगच्छ भले ही एक परम्परा हो, किन्तु इसमें हुए दादा गुरुदेवों के प्रति निष्ठा प्रत्येक जैन के मन में है। आज भारत में दादा गुरुदेवों के दस लाख से भी ज्यादा भक्त हैं। ___ खरतरगच्छ में केवल धर्माचार्य ही नहीं पैदा हुए, वरन् बड़े-बड़े दानवीर भी जन्मे हैं। कर्मचन्द बच्छावत जैसे प्रबुद्ध महामन्त्री और मोतीशाह सेठ जैसे महादानवीर इसी गच्छ के समर्थक थे।
खरतरगच्छ साध्वी-समाज के विकास के लिए भी उदार-दृष्टिकोण रखता है। भारत पुरुष-प्रधान देश है, किन्तु खरतरगच्छ ने कभी भी नारी-जाति अथवा साध्वी-समाज के साथ उपेक्षामूलक व्यवहार नहीं किया। समग्र जैन परम्परा में खरतरगच्छ ने ही सबसे पहले साध्वी को प्रवचन देने का अधिकार दिया। परवर्ती काल में दूसरे गच्छों ने भी इस क्रान्तिकारी चरण का अनुमोदन एवं अनुसरण किया।
इस प्रकार हम देखते हैं कि खरतरगच्छ धर्मसंघ की एक ऐतिहासिक परम्परा है और इसका अपना सुविस्तृत इतिहास है। प्रस्तुत ग्रन्थ : एक ऐतिहासिक प्रयत्न
महोपाध्याय विनयसागर जी द्वारा लिखित प्रस्तुत ग्रन्थ 'खरतरगच्छ का बृहद् इतिहास' इस गच्छ के गौरवमय महापुरुषों के जीवन चरित्र एवं उनके कृतित्व से परिचित कराता है। इस गच्छ के प्रवर्तक आचार्य जिनेश्वरसूरि से प्रारम्भ हुई ज्ञान और चारित्र का पर्याय बनी यह गौरवमय यात्रा आज भी अविच्छिन्न रूप से प्रवाहित है। खरतरगच्छ का एक हजार वर्ष का इतिहास जैन धर्म के विकास में अहं भूमिका अदा करता है। कई वर्षों में खरतरगच्छ के निष्ठाशील अनुयायियों की यह हार्दिक अभिलाषा थी कि इस गच्छ का तब से लेकर अब तक का एक हजार वर्ष का इतिहास किसी एक ही ग्रन्थ में उपलब्ध हो जाये, तो श्रेष्ठ कार्य होगा।
खरतरगच्छ में कई शाखाएँ, उपशाखाएँ प्रगट हुई, अतः इनके इतिहास का लेखन एक दुष्कर कार्य था। इसके इतिहास के लेखन के लिए ऐसे किसी विद्वान की आवश्यकता थी जो खरतरगच्छ के प्रति निष्ठाशील भी हो और इतिहास का पारंगत विद्वान भी। आत्मतोष की बात है कि महामनीषी विनयसागरजी ने यह भगीरथ कार्य अपने कन्धों पर उठाया और 'खरतरगच्छ का बृहद् इतिहास' नाम से
भूमिका For Private & Personal Use Only
(१७) www.jainelibrary.org
Jain Education International 2010_04