________________
जो समाज के लिए आदर्शभूत हैं। इनमें कुछ चरित्र जैन आगमों एवं आगमेतर साहित्य में से ग्रहण किये गये हैं तथा कुछ काल्पनिक भी हैं। रास-चौपाई आदि के निर्माण में खरतरगच्छीय मुनियों ने अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की है। खरतरगच्छीय मुनियों द्वारा लिखित सहस्राधिक रास, चौपाई आदि उपलब्ध हैं। इनमें विनयप्रभ उपाध्याय द्वारा रचित गौतमस्वामी रास ने सर्वाधिक प्रसिद्धि प्राप्त की है। विक्रम की १७वीं एवं १८वीं शती में खरतरगच्छीय साहित्यकारों ने विपुल रास चौपाई लिखे हैं। इस क्षेत्र में खरतरगच्छ के हजारों ग्रन्थ हैं।
(१५) गीत आदि साहित्य-खरतरगच्छ में हिन्दी भाषी भक्त कवियों में सर्वप्रथम महोपाध्याय कवि समयसुन्दर का नाम उल्लेख्य है। उनके पाँच सौ से अधिक भक्तिपरक गीत अब तक उपलब्ध हो चुके हैं। खरतरगच्छीय भक्ति काव्य परम्परा में दो कवियों के नाम यहाँ विशेष उल्लेखनीय है, वे हैं योगीराज आनन्दघन एवं उपाध्याय देवचन्द्र । समग्र जैन भक्त कवियों में इनकी तुलना के कवि इने-गिने मिलेंगे।
खरतरगच्छीय भक्त कवियों ने भक्तिपरक स्वतन्त्र गीत लिखने के साथ चौबीस तीर्थंकरों का स्तुतिपरक साहित्य भी निबद्ध किया है। खरतरगच्छ में स्तुतिपरक साहित्य पृथक्-पृथक् रूपों में प्राप्त होता है।
भक्तिपरक बीसी-साहित्य में जिनराजसूरि, जिनहर्ष, विनयचन्द्र, देवचन्द्र, ज्ञानसार आदि कवियों की 'बीसी' उल्लेखनीय है। चौबीसी-साहित्य में जिनलाभसूरि, जिनहर्ष, आनन्दघन, देवचन्द्र आदि की चौबीसियाँ उल्लेखनीय हैं। क्षमाप्रमोद कृत चौबीस जिन-पंचाशिका भी द्रष्टव्य है। ___पूजापरक-साहित्य भी सुविशाल है। खरतरगच्छ में पूजा-साहित्य की रचना करने वालों में उपाध्याय देवचन्द्र, चारित्रनन्दी, सुमतिमण्डन, ऋद्धिसार, जिनहरिसागरसूरि, कवीन्द्रसागरसूरि के नाम प्रमुख हैं।
(१६) औपदेशिक साहित्य :-जनहित के लिए उपदेश देना मुनि का धर्म है, अतः उसके साहित्य में उपदेशपरक तथ्यों की बहुलता होनी स्वाभाविक है। यों तो प्रत्येक मुनि का साहित्य किसी-न-किसी औपदेशिक उद्देश्य से समन्वित होता है, पर यहाँ हम मात्र उसी साहित्य का उल्लेख करना चाहेंगे जो विशुद्ध आद्योपान्त उपदेश-परक ही है। यथा-जिनेश्वरसूरि लिखित उपदेशकोष, जिनचन्द्रसूरि लिखित संवेगरंगशाला, जिनवल्लभसूरि लिखित धर्मशिक्षाप्रकरण, जिनदत्तसूरि रचित गणधरसार्धशतक-प्रकरण, जिनरत्नसूरि लिखित उत्तमपुरुष-कुलक, राजहंसलिखित जिनवचनरत्न-कोष, अभयचन्द्र लिखित रत्नकरण्ड, पुण्यनन्दी लिखित रूपकमाला, चारित्रसिंह लिखित शीलकल्पद्रुम-मंजरी, उपाध्याय लक्ष्मीवल्लभ कृत भावना-विलास, पुण्यशील लिखित ज्ञानानन्द-प्रकाश, जिनलाभसूरि लिखित आत्म-प्रबोध आदि।
(१५)
भूमिका For Private & Personal Use Only
Jain Education International 2010_04
www.jainelibrary.org