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________________ प्रकाशिका-ज्योतिष, रामविजय रचित मुहूर्तमणिमाला, भूधरदास रचित भौधरी-ग्रहसारणी, रामचन्द्र रचित सामुद्रिक भाषा, चिदानन्द रचित स्वरोदय । (१२) महाकाव्य तथा टीका-साहित्य :-खरतरगच्छ की विद्वद्परम्परा ने महाकाव्य एवं टीकासाहित्य की सैकड़ों कृतियाँ माँ भारती के भण्डार के लिए अर्पित की हैं, जिनका इतिहास, समाज एवं आत्मोत्थान से गहरा सम्बन्ध है। जिन महाकाव्यों एवं टीका-ग्रन्थों की खरतरगच्छीय विद्वानों ने रचना की है, वे जीवन की विषाक्तता मिटाने के लिए अमृत-वर्षण हैं, शास्त्रीय शब्दार्थों को समझने के लिए एक विनम्र मार्गदर्शन है। प्रमुख ग्रन्थों के नाम निम्नलिखित हैं उपाध्याय चन्द्रतिलक रचित अभयकुमार चरित महाकाव्य, मंत्री मंडन रचित कादम्बरी मंडन, काव्य मंडन, चम्पू मंडन, चन्द्रविजय, महोपाध्याय समयसुन्दर रचित अष्टलक्षी, धर्मचन्द्र रचित कर्पूरमंजरी-पट्टक-टीका, उपाध्याय लक्ष्मीवल्लभ रचित कुमारसम्भव-टीका, जिनसमुद्रसूरि रचित तत्त्वबोध-नाटक, विनयसागर रचित नलवर्णन-महाकाव्य, कीर्तिरत्नसूरि विरचित नेमिनाथ-महाकाव्य, उपाध्याय लक्ष्मीतिलक रचित प्रत्येक बुद्ध-महाकाव्य, उपाध्याय श्रीवल्लभ रचित विजय देव माहात्म्य महाकाव्य, विद्वद् प्रबोध-काव्य, उपाध्याय जिनपाल रचित सनत्कुमार चक्री-चरित्र महाकाव्य, ललितकीर्ति रचित शिशुपाल-वध महाकाव्य-टीका सन्देह-ध्वान्त-दीपिका, जिनराजसूरि रचित नैषधकाव्य टीका। (१३) कथामूलक काव्य-साहित्य :-शताधिक प्राप्त कथामूलक काव्य ग्रन्थों में से कुछेक ग्रन्थों के नाम उल्लेखनीय हैं-वर्धमानसूरि लिखित उपमितिभवप्रपंचकथासार, देवभद्रसूरि लिखित कथारत्नकोष, सोमतिलकसूरि लिखित कुमारपाल प्रबन्ध, संघतिलकसूरि लिखित धूर्ताख्यान, जिनप्रभसूरि लिखित विविध तीर्थकल्प, उपाध्याय जयसागर लिखित पृथ्वीचन्द्र चरित्र, गुणसमृद्धि महत्तरा लिखित अंजनासुदरी-कथा, महोपाध्याय समयसुन्दर लिखित कालिकाचार्य कथा, कथाकोष, द्रौपदी-संहरण, जिनराजसूरि लिखित जैन रामायण, वादी हर्षनन्दन लिखित आदिनाथ-व्याख्यान, कीर्तिसुन्दर लिखित वाग्विलास कथा संग्रह, राजलाभ लिखित स्वप्राधिकार, उपाध्याय क्षमाकल्याण लिखित श्रीपालचरित्र-टीका, उपाध्याय लब्धिमुनि लिखित जिनदत्तसूरि चरित, जिनचन्द्रसूरि चरित, जिनकुशलसूरि चरित आदि । (१४) रास-चौपाई आदि काव्य-साहित्य :-काव्य के रूप में खरतरगच्छीय मुनियों ने जो साहित्य हिन्दी जगत् को दिया है वह सरल, उपयोगी और युग के यथार्थ दर्पण का प्रदर्शक है। वह धार्मिक, व्यवस्थामूलक तथा नैतिक पृष्ठभूमि में प्रतिष्ठित है। भाषा, वर्णन-कौशल, साहित्यक तत्त्व, विचार आदि सभी दृष्टियों से खरतरगच्छीय साहित्य भारतीय काव्य-परम्परा के गौरव को बढ़ाता है। इन काव्यों में खरतरगच्छीय साहित्यकारों ने उन व्यक्तियों को चरित्रनायक के रूप में ग्रहण किया है, (१४) भूमिका Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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