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________________ बीकानेर रेल दादाजी में आपश्री की एक स्तूप में चरण पादुकाएँ प्रतिष्ठित की गई। जिस पर सं० १६७६ मिती ज्येष्ठ वदि ११ का लेख उत्कीर्ण है। नाहटों की गवाड़ में श्री ऋषभदेव जी के मन्दिर में भी जसमा श्राविका ने आपश्री के चरण सं० १६८६ चैत्र वदि ४ को श्री जिनराजसूरि जी के कर-कमलों से प्रतिष्ठित करवाये। - आचार्य जिनहंससूरि के पट्टधर जिनराजसूरि और आचार्य जिनसागरसूरि हुए। इनके अतिरिक्त पाँच शिष्यों के नाम और मिलते हैं :-१. हीरनन्दन, २. पद्मकीर्ति, ३. जीवरङ्ग, ४. गुणचन्द्र और ५. हेममन्दिर। १. हीरनन्दन का शिष्य - लालचन्द। २. पद्मकीर्ति के शिष्य - १. पद्मचन्द्र २. रामचन्द्र। ३. जीवरङ्ग का शिष्य - पद्मरत्न - धर्मविमल। इसके दो शिष्य हुए - रङ्गधर्म और कल्याणकीर्ति। 卐 आचार्य श्री जिनराजसूरि बीकानेर निवासी बोहित्थरा (बोथरा) गोत्रीय श्रेष्ठी धर्मसी के ये पुत्र थे। इनकी माता का नाम धारल देवी था। सं० १६४७ वैशाख सुदि ७ बुधवार, छत्रयोग, श्रवण नक्षत्र में इनका जन्म हुआ। इनका जन्म नाम खेतसी था। वे सात भाई थे १. राम, २. मेहा, ३. खेतसी, ४. भैरव, ५. केशव, ६. कपूर, ७. सालद। सं० १६५६१ में श्री जिनसिंहसूरि जी के पधारने पर उनके उपदेश से वैराग्यवासित होकर मार्गशीर्ष सुदि १३ को दीक्षाग्रहण की। धर्मसी साह ने दीक्षा का बड़ा उत्सव किया। नवदीक्षित मुनि का नाम राजसिंह रखा गया। मण्डल-तपादि वहन करने के पश्चात् श्री जिनचन्द्रसूरि जी ने इन्हें बड़ी दीक्षा दी और नाम राजसमुद्र प्रसिद्ध किया। ये बाल्यकाल से ही प्रतिभाशाली थे, १६ वर्ष की अवस्था में तो आगरा में इन्होंने “चिन्तामणि" शास्त्र का पूर्ण अध्ययन किया था। इस समय की इनकी स्वलिखित प्रति वर्तमान में महो० विनयसागर जी के पास जयपुर में सुरक्षित है। अल्प समय में ही स्वयं श्री जिनसिंहसूरि जी के पास अध्ययन किया और सूत्रों को पढ़कर गीतार्थ हो गए। आसाउलि में गुरुदेव श्री जिनचन्द्रसूरि जी ने इन्हें वाचनाचार्य पद से अलंकृत किया। आपके प्रबल पुण्योदय से अम्बिका देवी प्रत्यक्ष हुई और उसी भगवती की कृपा से घंघाणी में जो सं० १६६२ में प्रतिमाएँ भूमिगृह से निकली थीं, उनकी प्राचीन लिपि पढ़कर सबको चकित कर दिया। जैसलमेर में राउल भीमसिंह के सन्मुख तपागच्छीय सोमविजय १. समयसुन्दर जी ने १६५७ मि०सु० १ एवं प्रबन्ध में भी, बुध की जगह शुक्रवार लिखा है। २. पदार्थतत्त्वटिप्पण, पत्र १९ लेखन १६६३ राजसमुद्र (जिनराजसूरि) ने लिखा है। "पाठितम् च महादेव भट्टाचार्यैः" अर्थात् महादेव भट्टाचार्य के पास इन्होंने न्याय शास्त्र का अध्ययन किया था। संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास (२३५) Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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