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________________ ने सवा करोड़ का दान किया। सम्राट के सन्मुख भी दस हजार रुपये, १० हाथी, १२ घोड़े और २७ तुक्कस भेंट रखे, जिसमें से सम्राट ने मंगल के निमित्त केवल एक रुपया स्वीकार किया। सूरि महाराज ने बोहित्थ संतति को पाक्षिक, चातुर्मासिक व सांवत्सरिक पर्यों में जयतिहुअण बोलने का व श्रीमाली को प्रतिक्रमण में स्तुति बोलने का आदेश दिया। राजा रायसिंह जी ने कितने ही आगमादि ग्रंथ सूरि महाराज को समर्पण किये, जिन्हें बीकानेर ज्ञान भण्डार में रखा गया। लाहौर में धर्म प्रभावना करके सूरिजी महाराज हापाणा पधारे और सं० १६५० का चातुर्मास किया। एक दिन रात्रि के समय उपाश्रय में चोर आये पर साधुओं के पास क्या रखा था? बीकानेर ज्ञान भण्डार के लिए प्राप्त ग्रन्थादि चुरा कर चोर जाने लगे तो सूरिजी के तपोबल से वे अन्धे हो गये और पुस्तकें वापस आ गईं। सम्राट के पास लाहौर में जयसोम उपाध्यायादि चातुर्मास हेतु स्थित थे ही, सूरि महाराज ने लाहौर आकर सं० १६५१ का चातुर्मास किया जिससे अकबर को धर्मोपदेश निरन्तर मिलता रहा। अनेक शिलालेखादि से प्रमाणित है कि सूरिजी के उपदेश से सम्राट ने सब मिला कर वर्ष में छ: मास अपने राज्य में जीव-हिंसा निषिद्ध की तथा सर्वत्र गोवध बन्द कर गोरक्षा की और शQजय को कर मुक्त किया। सम्राट के दरबारी अबुलफज़ल, आजमखान खानखाना इत्यादि पर भी सूरिजी का बड़ा प्रभाव था। धर्मसागर उपाध्याय के ग्रंथ जो कई बार अप्रमाणित ठहराये जा चुके थे, फिर प्रवचन परीक्षा ग्रंथ का विवाद छिड़ा जिसे अबुलफज़ल की उपस्थिति में निकाले हुए शाही फरमान से निराकृत किया जाना प्रमाणित है। सम्राट ने सूरिजी से पंचनदी के पाँच पीरों को वश में करने का आग्रह किया क्योंकि जिनदत्तसूरि जी के कथा प्रसंग से वह प्रभावित था। सूरिजी सं० १६५२ का चातुर्मास हापाणा में करके मुलतान पधारे और चन्द्रवेलिपत्तन जाकर पंचनदी के संगम स्थान में आयंबिल व अष्टम तप पूर्वक पहुँचे। सूरिजी के ध्यान में निश्चल होते ही नौका निश्चल हो गई। उनके सूरिमंत्र जाप और सद्गुणों से आकृष्ट होकर पाँच नदी के पाँच पीर, मणिभद्र यक्ष, खोडिया क्षेत्रपालादि सेवा में उपस्थित हो गये और उन्होंने धर्मोन्नति-शासन प्रभावना में सहायता करने का वचन दिया। सूरिजी प्रात:काल चन्द्रवेलिपत्तन पधारे। पोरवाड साह नानिग के पुत्र राजपाल ने उत्सव किया। वहाँ से उच्चनगर होते हुये देरावर पधारे और दादा श्री जिनकुशलसूरि जी के निर्वाण स्थान की चरण वन्दना की। तदनन्तर श्री जिनमाणिक्यसूरि जी के निर्वाण स्तूप और नवहरपुर पार्श्वनाथ की यात्रा कर जैसलमेर में सं० १६५३ का चातुर्मास किया। फिर अहमदाबाद आकर माघ सुदि १० को धन्ना सुतार की पोल में, शामला की पोल में और टेमला की पोल में बड़े समारोहपूर्वक जिनालयों की प्रतिष्ठा करवायी। सं० १६५४ में शत्रुजय पधार कर ज्येष्ठ सुदि ११ को मोटीट्क-विमलवसही के सभा मण्डप में दादा साहब श्री जिनदत्तसूरि जी एवं श्री जिनकुशलसूरि जी की चरण पादुकाएँ प्रतिष्ठित की। वहाँ से अहमदाबाद पधार कर चातुर्मास किया। सं० १६५५ का वर्षावास खंभात में किया। सम्राट अकबर ने बुरहानपुर में सूरिजी को स्मरण किया। फिर ईडर आदि में विचरते हुए अहमदाबाद संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास (२२९) Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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