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________________ उस दिन मुसलमानों के ईद का पर्व था और लाहौर प्रवेश के समय सूरिजी के साथ जयसोम, कनकसोम, महिमराज, रत्ननिधान, गुणविनय, समयसुन्दरादि ३१ प्रकाण्ड विद्वान मुनिवर्य थे। चतुर्विध संघ के साथ जय-जयकार ध्वनि से पहुँचे देख सम्राट अकबर स्वयं उल्लासपूर्वक सामने आया और वंदनपूर्वक हाथ पकड़ कर सूरिजी को ड्योढ़ी महल में ले गया और धर्मगोष्ठी की। सम्राट ने गुरुदेव के प्रवचन से प्रभावित होकर प्रतिदिन ड्योढ़ी महल पधार कर उपदेश सुनाने की प्रार्थना की। इसके बाद मंत्री कर्मचन्द्र को आज्ञा दी-"गुरु महाराज को हाथी-घोड़ा वाजित्रादि सहित शाही सम्मान के साथ उपाश्रय में प्रवेश कराओ।" सूरिजी ने ऐसे आडम्बर की अनावश्यकता बतला कर मना किया पर सम्राट ने अत्यन्त आग्रहपूर्वक फिर से आज्ञा की। मंत्रीश्वर की आज्ञा लेकर जौहरी पर्वतशाह ने प्रवेशोत्सव का लाभ लिया। मंत्रीश्वर के प्रति समस्त संघ ने आभार व्यक्त किया। सूरि महाराज प्रतिदिन शाही महल में जाकर धर्मोपदेश देने लगे। उनके नित्य सत्संग प्रवचन से सम्राट अकबर बड़ा प्रभावित हुआ। वह उन्हें "बड़े गुरु' नाम से पुकारता था जिससे गुरुदेव की इसी नाम से सर्वत्र प्रसिद्धि हुई। एक बार उसने गुरु महाराज के समक्ष एक सौ स्वर्ण मुद्राएँ भेंट रखीं जिसे अस्वीकार करने पर सम्राट उनके निर्लोभी अपरिग्रही-जीवन से प्रभावित होकर मंत्रीश्वर को धर्मकार्य में व्यय करने के लिए द्रव्य अर्पण किया। मंत्रीश्वर ने चैत्री पूनम के दिन शान्ति स्नात्र का आयोजन किया और देव-गुरु वंदन कर याचकों को दान देकर सन्तुष्ट किया। एक बार नौरंग खान द्वारा द्वारिका के मन्दिरों के विनाश की वार्ता सुनी तो जैन तीर्थों और मन्दिरों की रक्षा के हेतु सम्राट से विज्ञप्ति की गई। सम्राट ने तत्काल फरमान लिखवा कर अपनी मुद्रा लगा के मंत्रीश्वर को समर्पित कर दिया, जिसमें लिखा था-"आज से समस्त शत्रुजयादि जैन तीर्थ मंत्री कर्मचन्द्र के अधीन हैं।" गुजरात के सूबेदार आजम खान को तीर्थ रक्षा के लिए सख्त आदेश भेजा जिससे शत्रुजय तीर्थ पर म्लेच्छोपद्रव का निवारण हुआ। एक बार काश्मीर विजय के निमित्त जाते हुए सम्राट ने सूरि महाराज को बुलाकर आशीर्वाद प्राप्त किया और आषाढ़ शुक्ला ९ से पूर्णिमा तक बारह सूबों में जीवों को अभयदान देने के लिए १२ फरमान लिख भेजे। इसके अनुकरण में अन्य सभी राजाओं ने भी अपने-अपने राज्यों में १० दिन, १५ दिन, २० दिन, २५ दिन, महीना, दो महीना तक जीवों के अभयदान की घोषणा कराई। सम्राट ने अपने काश्मीर प्रवास में भी धर्म-गोष्ठी होती रहे और जीव दया का प्रचार हो, इस उद्देश्य से सूरिजी से प्रार्थना की-"आप लाहौर में विराजें, पर हमारे साथ वाचक मानसिंह-महिमराज को अवश्य भेजें, बड़ा लाभ मिलेगा।" सूरिजी ने वाचक जी के साथ मुनि हर्षविशाल और पंचानन महात्मा (जो मेघमाली गुरु के ज्योतिष-मंत्र तंत्रादि में निपुण थे) को साथ कर दिया ताकि सम्राट निर्दिष्ट किसी सावध कार्य में मुनि धर्म के आचार में बाधा न आवे। सम्राट श्रावण सुदि १३ के दिन ससैन्य प्रयाण करके राजा रामदास की बाड़ी में ठहरे। उस समय सम्राट, शाहजादा सलीम, राजा संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास (२२७) ____Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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