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________________ कहा। कर्मचन्द्र ने कहा-"गुरुदेव राजनगर गुजरात में हैं, देह भारी है, पाद-विहार करके गाढ़े धूप में दूर देश से आना कठिन है, क्योंकि वे वाहन व्यवहार करते नहीं।" सम्राट ने कहा-"उनके शिष्य को आमंत्रित करो।" मंत्रीश्वर ने दो शाही दूतों के साथ कहलाया-" मानसिंह जी को शीघ्र भेजिये। सम्राट उनके दर्शनों का उत्सुक है।" सूरिजी ने वाचक महिमराज (मानसिंह) जी को समयसुन्दर जी आदि अन्य ६ साधुओं के साथ लाहौर भेज दिया। मुनि मण्डल के शीघ्र पहुंचने पर सम्राट अत्यन्त हर्षित हुआ और सूरिजी को शीघ्र बुलाने के लिए मंत्रीश्वर को फिर आदेश देते हुए कहा-"चातुर्मास निकट है तो क्या हुआ, मैं उन्हें बहुत लाभ दूंगा।" उस समय सूरिजी खंभात थे। शाही फरमान व वीनतिपत्र पाकर सूरिजी ने खंभात से अहमदाबाद आकर आषाढ़ सुदि १३ को समस्त संघ के साथ विचार-विमर्श किया। इधर और दो शाही फरमान व कर्मचन्द्र का वीनतिपत्र आया तो सूरिजी ने लाहौर जाने का निश्चय कर लिया और वहाँ से प्रस्थान कर मेहसाणा, सिद्धपुर, पालनपुर होते हुए सिरोही के राव की वीनती से सिरोही पधारे। पर्युषण के आठ दिन सिरोही में बिताये। राव ने अपने राज्य में पूर्णिमा के दिन जीव-हिंसा निषिद्ध की। वहाँ से जालौर पधारे। बादशाह का फरमान आया कि आप चौमासे बाद शीघ्र पधारें। सूरिजी ने चातुर्मास जालौर में पूर्ण कर विहार किया और देछर, सराणा, भमराणी, खांडप पधारे। विक्रमपुर का संघ वंदनार्थ आया और लाहण की। वहाँ से द्रुणाड़ा (धुनाड़ा) पधारे जहाँ जैसलमेर का संघ दर्शनार्थ आया। वहाँ से रोहीठ नगर पहुँचने पर साह थिरा और मेरा ने बड़े समारोह से नगर प्रवेश कराया, याचकों को दान दिया। यहाँ जोधपुर का विशाल संघ वन्दनार्थ आया, लाहण की, नंदि मंडाण करके चतुर्थ व्रतादि लिए। वहाँ के ठाकुर ने बारस की तिथि को अभयदान घोषित किया। पाली में भी नंदि मांड कर श्रावक-श्राविकाओं ने व्रत लिए। वहाँ से लांबिया होते हुए सोजत पधारे। वहाँ से बीलाड़ा पधारने पर सुप्रसिद्ध कटारिया (संभवतः जूठ शाह) ने प्रवेशोत्सव किया। फिर जयतारण होते हुए मेड़ता पधारे। मंत्रीश्वर कर्मचन्द्र के पुत्र भाग्यचन्द्र, लक्ष्मीचन्द्र ने बड़े ठाठ से प्रवेशोत्सव किया। पूजा-प्रभावना, दान-पुण्य किए, नंदिमंडाणपूर्वक अनेक व्रत पच्चक्खाण श्रावक-श्राविकाओं ने लिए। वहाँ फिर शाही फरमान मिला। वहाँ से सूरि महाराज फलौदी पार्श्वनाथ तीर्थ की यात्रा कर नागौर पधारे। मंत्रीश्वर मेहा ने प्रवेशोत्सव किया। वहाँ बीकानेर का संघ ३०० सिजवाला (पालखी) और ४०० वाहन सह गुरु वन्दनार्थ आया और स्वधर्मी-वात्सल्यादि करके लौटा। वहाँ से सूरिजी बापेऊ, पडिहारा, मालासर, राजलदेसर आदि गाँवों में होते हुए रिणी (वर्तमान तारा नगर) पधारे, संघ ने स्वागत किया। मंत्रीश्वर ठाकुरसिंह के पुत्र मं० रायसिंह ने प्रवेशोत्सव किया, यहाँ पर महिम का संघ वन्दनार्थ आया। यहाँ से विहार करने पर लाहौर तक भक्ति करने के लिए शांकर सुत वीरदास साथ हो गया। सरसा और कसूर होते हुए हापाणा पहुँचे। यहाँ से लाहौर चालीस कोश रहा। सूरिजी के शुभागमन का संदेश ले जाने वाले को मंत्रीश्वर ने स्वर्ण-जिह्वा, करकंकणादि मूल्यवान वस्तुएँ देकर सम्मानित किया। मंत्रीश्वर के साथ लाहौर का संघ गुरु वन्दनार्थ जा कर भक्तिपूर्वक समारोह के साथ आपका नगर प्रवेश कराया। पहले जो वाचक जी आदि ७ ठाणा थे वे भी स्वागतार्थ गये और सूरिजी सं० १६४८ फाल्गुन शुक्ला २ के दिन पुष्य योग में लाहौर पधारे। (२२६) खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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