SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 279
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सं० १४३१ जिन पञ्चक पंच कल्याणक द्वारा पवित्रित एकादशी के दिन श्रीपत्तनपुर में स्थित श्री खरतरगच्छाचार्य श्री जिनोदयसूरि गुरु के आदेश से उनके शिष्य मेरुनन्दन गणि ने अयोध्यापुरी स्थित श्रीलोकहिताचार्य के लिए यह महोत्सव समर्पित किया। ___ जैसलमेर चैत्य-प्रशस्ति में रांका सेठ जेसल के पुत्र आंबा द्वारा सं० १४२५ में देरावरयात्रा और सं० १४२७ में श्री जिनोदयसूरि द्वारा प्रतिष्ठोत्सव कराने का उल्लेख है। 卐st आचार्य श्री जिनराजसूरि (प्रथम) सं० १४३२१ फाल्गुन कृष्णा षष्ठी के दिवस अणहिलपुर (पाटण) में लोकहिताचार्य जी ने इन राजमेरु गणिवर्य को गुर्वाज्ञानुसार आचार्य पद प्रदान कर श्री जिनोदयसूरि जी का पट्टधर घोषित किया। पट्टाभिषेक पद महोत्सव सा० कडुआ धरणा ने गच्छ के विनयप्रभोपाध्याय व जससमृद्धि महत्तरा आदि साधु-साध्वियों और आमंत्रित विशाल संघ की उपस्थिति में बड़े समारोहपूर्वक किया था। कर्मचन्द्र मंत्री वंश-प्रबन्ध के अनुसार ये दादा श्री जिनकुशलसूरि का पाटण में पट्टोत्सव एवं शत्रुजय तीर्थ पर मानतुंग विहार-खरतर वसही के निर्माता के पुत्र वील्हा-वीना देवी के पुत्र थे। कडुआ, धरणा और नंदा तीन भाई थे। वंश-प्रबन्ध में महोत्सव के सम्बन्ध में लिखा है श्रीजिनराजगुरूणां लोकहिताचार्यवर्यकरमूले। सूरि-पद-कृत-नन्दी-महोत्सवो दापयामास॥ सूरिपदोत्सव-दर्शन-समुत्सुकायात जानपदलोकान्। वस्त्रादिदानपूर्वं तुतोष योदोषकृतमोघः॥१॥ श्री गुणविनयोपाध्याय ने कर्मचंद्र मंत्रिवंश प्रबन्ध रास में भी इस प्रकार लिखा है लोकहिताचारिज करए एं, श्री जिनराज नइ पाट। दिरायउ जिणि विधइ ए, नन्दि महोत्सव थादि॥ ५३॥ तिणि उत्सवि जे आवीया ए, वस्त्रादिक नइ दानि। संतोष्या साहमी ए, मानी काढइ कान॥ ५४॥ श्री जिनराजसूरि जी सवा लाख शोक प्रमाण न्याय ग्रन्थों के अध्येता थे। आपने अपने करकमलों १. जिनराजसूरि रास (त्रुटकपत्र) में सं० १४३३ लिखा है। २. जिनराजसूरि रास में इन्हें तेजपाल का पुत्र बताया गया है एवं तेजपाल के पिता जाल्हण को जिनप्रबोधसूरि के छोटे भाई और संघपति खीमड़ पुत्र भीम पुत्र श्रीचंद के पुत्र लिखा है अतः कर्मचन्द्र मंत्रिवंश प्रबंध के पूर्व नामों से यह अधिक विश्वसनीय है। पट्टाभिषेक के समय अभयचंद ने प्रचुर दान दिया था। संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास (२१५) ____Jain Education International 2010-04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy