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नमस्कार कर मण्डल ग्राम पहुँचे। वहाँ बाहड़मेर के परीक्षि विक्रम, राजापत्तन के कान्हड, स्तंभ तीर्थ के गोवल को महाधर पद दिया। वीरा ने उनका सम्मान किया और उनके संघपति सूचक तिलक कर संघपति स्थापनाचार्य का विरुद प्राप्त किया। इसके बाद साधु तेजपाल के पुत्र कटुक सुश्रावक का सर्व श्रीसंघ में सब कार्यों में प्राधान्य हुआ। इसके बाद म्यान द्वीप देश से पं० हर्षचन्द्र गणि हमसे मिले। फिर सौराष्ट्र मण्डल के भडियाउद्र स्थान में मिले हुए सौराष्ट्रपति के प्रसाद पात्र अजागृहपुर (अजाहरा) पार्श्वनाथादि के समुद्धारक मुंजालदेव के नंदन वीरा के बड़े भाई पूर्ण सुश्रावक ने अक्षय तृतीया के दिन सम्पूर्ण संघनायकत्व धारण किया और हम प्रवेश महोत्सव सहित घोघा वेलकुल स्थान में पहुँचे और नवखण्ड पार्श्वनाथ की वन्दना की। वहीं श्री विनयप्रभ से साक्षात्कार हुआ। आगे बढ़ कर विमलाचल के निकट संघ ने तम्बू लगाये। यहाँ से शत्रुजय दिखाई देने लगा। अनेक दानों द्वारा संघ ने सिद्धाचल के दर्शन को सफल किया। उसके बाद संघ पादलिप्तपुर होता हुआ शत्रुजय पर्वत पर चढ़ा। प्राकार के अन्दर घुस कर खरतर-विहार, नन्दीश्वरेन्द्र मण्डप, उज्जयन्तावतार, श्रीस्वर्गारोहण, त्रिलक्ष तोरणादि स्थानों का सौन्दर्य देखता हुआ संघ विहार मण्डल में पहुँचा। वहाँ उसने युगादिदेव के दर्शन कर अपने आपको कृतकृत्य किया। संघपति मंत्री पूर्ण और मंत्री वीरा ने अनेक प्रकार से इस महातीर्थ की महिमा को स्फारित किया एवं ज्येष्ठ कृष्णा तृतीया को प्रतिष्ठा महोत्सव किया। हमने ६८ मूर्तियाँ प्रतिष्ठित कीं। विस्तारपूर्वक मालारोपण महोत्सव हुआ। फिर युगप्रधान जिनकुशलसूरि की कार्ति के विस्तारक मानतुंग नाम के खरतर-विहार में संघपतियों ने पूजा की। श्री जिनरत्नसूरि को पूजादि द्वारा प्रसन्न किया। फिर विमलाचल के विहारों में महाध्वजारोपण पूजा की। इस प्रकार वहाँ आठ दिन तक रहे।
इसके बाद संघ गिरनार तीर्थ के लिए चला। विनयप्रभ महोपाध्याय शरीर से सशक्त न थे। अतः स्तम्भ तीर्थ चले गये। अजागृहपुर में तीन दिन श्री पार्श्वनाथ की उपासना की। फिर अर्णापुर होते कोटिनारपुर पहुंचे और वहाँ अम्बिका का पूजन किया। देवपत्तनपुर में श्रीचन्द्रप्रभ स्वामी आदि जिनश्वरों को नमस्कार किया। मांगल्यपुर में नवपल्लव पार्श्वनाथ की वन्दना की। हमने मंत्री पूर्ण द्वारा कारित दारुमयी पौषधशाला में तीन दिन तक विश्राम किया। श्री जीर्णदुर्गस्थ श्री पार्श्वप्रभु को पूज कर रैवताचल पर चढ़े। वहाँ श्री नेमि जिनवर के दर्शन किये। वहाँ भी वीरा और पूर्ण ने श@जय की तरह कृत्य किये। पाँच दिन वहाँ ठहर कर उज्जयन्त से उतरे। मांगल्यपुर पहुंचे। वहाँ लोगों के आग्रह के कारण ललितकीर्ति उपाध्याय, देवकीर्ति गणि और साधुतिलक मुनि को रखा।
देवपत्तनपुर में दीक्षा महोत्सव हुआ। वहाँ सीहाकुल वाले मंत्रीश्वर दादू के पुत्र खेतसिंह का दीक्षा नाम क्षेत्रमूर्ति मुनि और माल्हू शाखीय चाम्पा के पुत्र पद्मसिंह का नाम पुण्यमूर्ति मुनि रखा। फिर नवलक्षद्वीप होते हुए शेरीषकपत्तन पहुँचे और लोडण पार्श्वनाथ जिन को नमस्कार किया। वहाँ वीरा ने सुवर्णकलश चढ़ाया। श्रावण मास की पहली एकादशी को संघ ने नरसमुद्र पत्तन में प्रवेश किया।
आपके लिए मेवाड़ के देव नमस्कार के सफेद अक्षत, शत्रुजय के पान और उज्जयन्त पूजन की सुपारी भेजते हैं। आप स्वीकार करें। यहाँ श्रीपत्तन में चातुर्मास सानन्द हुआ है।
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