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२. काणोड़ा - गोत्रीय राणा का पुत्र जेहड़
कीर्तिविलास मुनि कुशलविलास मुनि
३. छाहड़वंशीय खेता का पुत्र भीमड़ श्रावक
४. भूतपूर्व देश सचिव माल्हूशाखीय डूंगरसिंह की पुत्री उमा
मतिसुन्दरी साध्वी
५.
व्यावहारिकवंशीय महीपति की पुत्री हांसू
हर्षसुन्दरी साध्वी
इसके बाद साधुराज रामदेव ने पाँच दिन की अमारि की घोषणा करवाई और सात - आठ दिन निर्धन श्रावकों की सहायता की। इसके बाद जब सब लोग अपने-अपने स्थानों पर चले गए तो हम सेल्लहस्त खेमू श्रावक द्वारा आमन्त्रित होकर उसके शतपत्रिका आदि स्थानों में घूमे। इसके बाद यद्यपि हम गुजरात जाना चाहते थे तो भी साधुराज रामदेव के आग्रह से राजधानी पहुँचे । फाल्गुन कृष्णा अष्टमी को सोमवार के दिन अमृतसिद्धि योग में जिन बिम्ब प्रतिष्ठा महोत्सव किया। वहाँ अनेक जिन प्रतिमाएँ और श्री जिनरत्नसूरि जी की मूर्ति की स्थापना की। यह करटक पार्श्वनाथ की ही कृपा थी कि म्लेच्छ संकुल सन्निवेशों में भी यह सब कार्य निराबाध सम्पन्न हुआ ।
इसके बाद नरसागरपुर के निवासी मंत्रीश्वर मुल्जा के वंशज मंत्रीश्वर वीरा ने हमें लेने के लिए अपने भाई मंत्रीश्वर मण्डलिक के पुत्र मंत्री सारंग को भेजा। हम मंत्री सारंग के सार्थ सहित श्रीकरहेटक पार्श्वनाथ को नमस्कार कर फाल्गुन शुक्ला दशमी को रवाना हुए।
नागहृद (नागदा) में हमने नवखण्ड पार्श्वनाथ के दर्शन किये। ईडर के किले में चौलुक्यराज द्वारा निर्मापित सुन्दर तोरणयुक्त विहार वाले ऋषभदेव की, बड़नगर में आदिनाथ और वर्द्धमान की, सिद्धपुर के चक्रवर्ती सिद्धराज जयसिंह द्वारा कारित देवालय में परमेष्ठी की चार मूर्तियों की वन्दना करते हुए हम चैत्र के प्रथम पक्ष में षष्ठी के दिन (?) पत्तनपुर पहुँचे ।
मंत्रीश्वर वीरा बहुत सी भेंट लेकर खान से मिला । खान प्रसन्न हुआ और यात्रा के लिए फरमान प्रदान किया। उसके बाद प्रवेश महोत्सवपूर्वक नगर में प्रवेश कर उसने श्री शांतिनाथ की वन्दना की और पुण्यशाला में गुरु को नमस्कार कर अपने स्थान पर गया ।
उसने लकड़ी का सुन्दर एवं सुसज्जित देवालय तैयार किया। उसमें चैत्र की द्वितीय पक्ष की षष्ठी के श्री ऋषभदेव का निवेश किया। मंत्रीश्वर वीरा और मंत्री सारंग संघ के अधीश्वर बने। उन्होंने नरसमुद्र को सर्वथा तृप्त किया। चारों दिशाओं से लोग संघ में सम्मिलित हुए और श्री देवालय का निष्क्रमण महोत्सव अत्यन्त विस्तार से हुआ ।
नरसमुद्र निकलकर कुमरगिरि पर पहला प्रयाण हुआ । इसके बाद कुंकुम पत्रिकाओं द्वारा समाहूत मरु- मेदपाट- सपादलक्ष- माड - सिन्धु-बागड़-कौशल आदि देशों के लोगों सहित हम भी वैशाख की पहली तृतीया के दिन वहाँ से सलक्षणपुर पहुँचे । गेटा के पुत्र डूंगर ने प्रवेश महोत्सव किया । सा० कोचर द्वारा उद्धारित विधि-विहार में सैन्धव- पार्श्व को नमस्कार किया। दो दिन ठहर कर शंखवरपुर पहुँचे और वहाँ चार दिन ठहरे। फिर पाटल पञ्चासर में नेमिजिन और वर्द्धमान स्वामी को
संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास
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