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जाल्हणजी के कुल में मुकुटमणि तुल्य सेठ तेजपाल आदि श्रावकों ने मिलकर बड़े समारोह के साथ प्रतिष्ठा महामहोत्सव करवाया। उस महोत्सव में श्री ऋषभदेव स्वामी आदि पाँच सौ जिन प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा पूज्यश्री के हाथ से करवाई गई। तत्पश्चात् फाल्गुन वदि षष्ठी के दिन मालारोपण, सम्यक्त्वधारण आदि महोत्सव हुआ। ___इसके बाद संवत् १३९२ मार्गशीर्ष वदि षष्ठी के दिन दो क्षुल्लकों को बड़ी दीक्षा प्रदान और श्राविकाओं के मालाग्रहण के निमित्त एक उत्तम उत्सव किया गया।
११७. इसके बाद सं० १३९३ में कार्तिक के महीने में अवस्था में छोटे होते हुए भी पूज्यश्री ने अपना आवश्यक कर्त्तव्य समझ कर सेठ तेजपाल द्वारा विस्तारपूर्वक करवाये गये घनसार नन्दि महोत्सव के पूर्व पंचमंगल महाश्रुतस्कंध रूप नमस्कार महामंत्र का "प्रथमोपधान तप" बड़ी उत्तमता से वहन किया। इसके बाद श्री जीरावला नगर के अलंकारसम भगवान् जीरावली पार्श्वनाथ को वन्दन करने की इच्छा से अत्यन्त कठिन अभिग्रहधारक और श्री श्रीमालकुल के मुकुट सेठ सोमदेव श्रावक की अत्यधिक आग्रहपूर्ण विज्ञप्ति होने से महाराज ने फाल्गुन सुदि दशमी के दिन पाटण से चलकर जीरापल्ली के अलंकारभूत भगवान् श्री पार्श्वनाथ देव की वन्दना की। वहाँ से विहार कर नारउद्र (नाड़ोद) पधारे, वहाँ पर मंत्रीश्वर गोहाक ने बड़े ठाठ से प्रवेशोत्सव किया। दो दिन ठहरे और फिर वहाँ से विहार कर श्री आशोटा नामक स्थान को गये। आशोटा में सेठ श्यामल जी के कुलभूषण, शत्रुजयादि महातीर्थों की यात्रा करने से विश्वविख्यात, नाना प्रकार से सदाचारी, श्रीसंघ के प्रधान पुरुष सेठ वीरदेव-श्रावक ने विधि-संघ के श्रावक समुदाय एवं राजा श्री रुद्रदेव के पुत्र राजा गोधाजी तथा सामंतसिंह आदि समस्त राजवर्गी तथा बड़े-बड़े नागरिक लोगों को सम्मुख लाकर बड़े ठाठ-बाट से महाराज का नगर में प्रवेश करवाया। यह प्रवेश महोत्सव श्री जिनकुशलसूरि जी महाराज के भीमपल्ली प्रवेशोत्सव से भी विशेष महत्त्वशाली हुआ। वहाँ से चलकर महाराज बूजद्री नामक स्थान में आये। यद्यपि मार्ग बड़ा विकट था और डाकू तथा हिंसक जन्तुओं की भरमार थी, नदी-नाले, पहाड़ आदि के कारण जमीन भी बड़ी ऊबड़-खाबड़ थी, परन्तु मार्ग में सेठ मोखदेव श्रावक की ओर से सुप्रबन्ध होने के कारण पूज्यश्री नगरवर्ती राजमार्ग की भाँति निःशंक हो अपने प्राप्य स्थान (बूजद्री) को सकुशल पहुंच गए। बूजद्री में मोखदेव' श्रावक सेठ छज्जलजी के विशाल कुल गगनतल का अलंकारभूत चमकीला सूर्य था। उसने समस्त विधि-संघ के श्रावक समुदाय को साथ में लेकर चाहमानवंशरूपी मानस सरोवर के राजहंस तथा अपनी प्रतिज्ञा के निभाने में अद्वितीय बूजद्री के राजा उदयसिंह को तथा समस्त नागरिक लोगों को सम्मुख लाकर बड़े ठाठ-बाट से पूज्यश्री का नगर में प्रवेश करवाया।
११८. उसी वर्ष श्रेष्ठिवर्य मोखदेव ने सेठ राजसिंह के पुत्र सेठ पूर्णसिंह, सेठ धनसिंह आदि सकल कुटुम्बियों से परामर्श कर श्री राजा उदयसिंह की तरफ से राजकीय सहायता पाकर अर्बुदाचल (आबू पर्वत) आदि तीर्थों की यात्रा संघ सहित करने के लिए पूज्य श्री से प्रार्थना की। ज्ञान-ध्यान में १. संभव है-बूजद्री संघ के प्रतिनिधि होकर महाराज को लिवाने आशोटा आए हों।
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