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________________ को दीक्षा दी। पं० अमृतचन्द्र गणि को वाचनाचार्य का पद प्रदान किया। अनेक श्राविकाओं ने माला ग्रहण की। बहुत से श्रावक-श्राविकाओं ने सम्यक्त्व-धारण, सामायिक-ग्रहण तथा परिग्रह-परिमाण का व्रत लिया। तदनन्तर ज्येष्ठ सुदि नवमी के दिन सेठ हरिपाल ने युगादिदेव श्री ऋषभदेव आदि अर्हत् प्रतिमाओं का प्रतिष्ठा-महोत्सव पदस्थापना-महोत्सव की तरह बड़े विस्तार से करवाया। उसमें संस्कार भूमि के स्तूप और जैसलमेर तथा क्यासपुर स्थानों के लिए बनाई गई श्री जिनकुशलसूरि जी महाराज की तीन प्रतिमाओं की भी प्रतिष्ठा की गई। उसी (ज्येष्ठ सुदि नवमी के) दिन चतुर्विध संघ के महान् समुदाय के समक्ष युगप्रवरागम आचार्य श्री जिनकुशलसूरि जी महाराज की मूर्ति उनके संस्कार-स्थान वाले स्तूप में स्थापित की गई। तत्पश्चात् पट्टाभिषेक (सूरिपदारोहण) महोत्सव में आये हुए जैसलमेर के विधि समुदाय की गाढ़तर अभ्यर्थना से पूज्यश्री उपाध्याय-युगल आदि बारह साधुओं को साथ लेकर जैसलमेर की तरफ विहार किया और क्रमशः जैसलमेर पहुँचे। वहाँ पर जैसलमेर के विधि-संघ-समुदाय द्वारा किये गये स्वपक्ष-परपक्ष, हिन्दू, म्लेच्छ आदि सब के लिए आनन्दकारी महान् विस्तृत प्रवेश महोत्सवपूर्वक नगर में प्रवेश किया और देवाधिदेव पार्श्वनाथ भगवान् को नमस्कार किया। महाराज का यह पहला चातुर्मास यहीं हुआ। ११६. तदनन्तर सं० १३९१ पौष वदि दशमी के दिन मालारोपण आदि महोत्सव को विस्तारपूर्वक करवाकर लक्ष्मीमाला गणिनी को प्रवर्तिनी पद दिया। वहाँ से महाराज ने बाड़मेर की ओर विहार किया। वहाँ पर साह प्रतापसिंह, सा० सातसिंह आदि श्रावक समुदाय ने और श्री चाहमान (चौहान) कुलदीपक राणा श्री शिखरसिंह आदि राजपुरुष एवं अन्य नागरिक लोगों को सम्मुख लाकर बड़े ठाठ के साथ महाराज का नगर प्रवेश करवाया। वहाँ पर सर्वप्रथम महाराज ने मन्दिर जाकर युगादिदेव को विधिपूर्वक भाव से वन्दना की। बाड़मेर में दस दिन तक श्रावक-समुदायों को सदुपदेश देकर पूज्यश्री ने सत्यपुर (सांचौर) की ओर विहार किया। वहाँ पर राजमान्य, समस्त संघ के कार्य संचालन में समर्थ सेठ नींबाजी आदि श्रावकों ने राणा श्री हरिपालदेव आदि राजकीय प्रधान पुरुषों तथा अनेकों नगरवासियों को सम्मुख लाकर बड़े ठाठ-बाट से नगर प्रवेश करवाया। वहाँ पर पूज्यश्री ने श्री महावीर भगवान् की सादर सविनय वन्दना की। सांचौर के समस्त समुदाय ने एक राय होकर माघ सुदि छठ के दिन सब मनुष्यों के मन को हरने वाला व्रत-मालारोपणादि महोत्सव किया। इस अवसर पर पूज्यश्री ने नयसागर और अभयसागर नामक दो क्षुल्लकों को दीक्षा दी। अनेक श्राविकाओं ने माला-ग्रहण और सम्यक्त्व-धारण किया। यहाँ पर लगभग एक मास ठहर कर पूज्यश्री ने श्रावक समुदाय का समाधान किया। फिर वहाँ से चलकर संघ के प्रधान पुरुष सेठ वीरदेव आदि के अनुरोध से धूमधाम के साथ आदित्यपाट नगर में प्रवेश कर भगवान् श्री पार्श्वनाथ प्रभु को विधिपूर्वक नमस्कार किया। वहाँ से चलकर माघ शुक्ला त्रयोदशी के दिन आप पत्तन पधारे, वहाँ पर नवलक्षक (नौलखा) कुल में प्रदीपतुल्य उदार चरित्र वाले सेठ अमरसिंह ने बड़े ठाठ से आपका प्रवेश महोत्सव किया, जिसे देखकर स्व-पर-पक्ष के सभी लोग आश्चर्यचकित हो गये। वहाँ पर महातीर्थ स्वरूप तीर्थंकर देव श्री शान्तिनाथ भगवान् को नमस्कार किया। वहाँ पर माघ शुक्ला पूर्णिमा के दिन सेठ श्री संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास (२०३) ___Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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