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________________ पढ़ाए। चैत्यवन्दन कुलक वृत्ति आदि सरस कथानक परोपकारार्थ रचे। विद्या-विनोद, कविताविनोद और भाषा-विनोद सतत चालू रहता था। गुरुदेव के एक-एक उपकार का वर्णन हजारों जिह्वाओं द्वारा भी नहीं किया जा सकता। अन्त में गुरुदेव श्री जिनकुशलसूरि जी ने अपना आयु शेष ज्ञातकर श्री तरुणप्रभसूरि को अपने पट्ट पर पद्ममूर्ति नामक शिष्य को अभिषिक्त करने का आदेश देते हुए उनका नाम जिनपद्मसूरि रखा जाना निर्दिष्ट किया। आप अनशन आराधनापूर्वक नवकार मंत्र का ध्यान करते हुए मिथ्यादुष्कृत देते हुए संलेखना सहित सं० १३८९ मिती फाल्गुन वदि ६ को देरावर में स्वर्ग को प्राप्त हुए। (गुर्वावली में पंचमी को रात्रि के तीसरे प्रहर का उल्लेख है अतः ज्योतिष गणना के आधार पर छठ कहे जाने में कोई विरोध दिखाई नहीं पड़ता।) वहाँ नंदीश्वर महाविदेह आदि में तीर्थङ्करों जिनवंदनादि सत्कार्यों में अपना काल निर्गमन करते हैं। इनकी यशोकीर्ति का गुणगान करने वाली दूसरी रचना जयसागरोपाध्याय द्वारा रचित जिनकुशलसूरिचतुष्पदी-सप्तति है। यह वि०सं० १४८१ में रची गयी है। इसके पश्चात् सैकड़ों की संख्या में संस्कृत, प्राकृत, गुजराती, राजस्थानी आदि भाषाओं में इनके ऊपर स्तवन, छंद, गीत, लावणी, भास, अष्टक, नीसाणी आदि रचे गये। इस सम्बन्ध में द्रष्टव्य है-म० विनयसागर सम्पादित : दादागुरुभजनावली। इन्होंने अपने जीवनकाल में ५० हजार लोगों को जैनधर्म में दीक्षित कर उन्हें ओसवाल जाति में सम्मिलित कर कई नये गोत्र स्थापित किये। स्वर्गवास तिथि खरतरगच्छालङ्कार युगप्रधानाचार्य गुर्वावली - श्री जिनकुशलसूरि चरित्र में पृष्ठ ८१ पर लेख है-“सं० १३८९ फाल्गुन-कुष्ण-पञ्चम्यां......... रात्रिहरद्वयोद्देशे स्वर्गकमलापाणिपीडनविधिं विदधुः।' अर्थात् संवत् १३८९ फाल्गुन वदि पञ्चमी की रात्रि के तीसरे प्रहर में श्री जिनकुशलसूरिजी का स्वर्गवास हुआ। इसी सन्दर्भ में कई गुर्वावलियों में भी फाल्गुन वदि पञ्चमी को ही स्वर्गवास का उल्लेख प्राप्त होता है। कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं१. अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर की संवत् १६७४ तक के वर्णन वाली गुर्वावली पत्र ३ में "संवत् १३८९ फागुन वदि ५ देवराजपुरे दिवं गमनम्।” । २. अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर की संवत् १६१२ तक के वर्णन वाली ७ पत्रात्मक प्रति में "संवत् १३८९ फागुण वदि ५।" ३. अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर की संवत् १६१२ के लगभग जिनचन्द्रसूरि तक की ३३ पत्रात्मक प्रति में-"संवत् तेरह सइ निवासीइ फागुण वदि ५ तिथइ श्री देराउर स्वर्ग प्राप्ता।' ४. अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर की संवत् १६७४ तक के वर्णन वाली १८ पत्रात्मक प्रति में-“फागुण वदि पाँच तिथइ देराउर स्वर्ग प्राप्ति ।' (१९६) खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड ___Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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