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थे तथापि गुरुदेव की कृपा से आनन्द से चलता हुआ श्रीसंघ धंधूका नामक नगर पहुँचा। (यह नगर परमात् महाराजा कुमारपाल के धर्मगुरु आचार्यवर्य श्री हेमचन्द्रसूरि जी का जन्म स्थान था)। वहाँ पर सारे नगर में प्रधान मंत्रीदलीय-कुल-भूषण ठक्कुर उदयकरण श्रावक ने श्रीसंघ वात्सल्य और श्रीसंघ पूजा आदि कार्यों से बड़ी प्रभावना की। वहाँ से प्रस्थान कर क्रमशः चलता हुआ संघ तीर्थाधिराज श्री शत्रुजय की तलहटी में पहुँचा। पूज्यश्री आचार्य महाराज सारे संघ के साथ शत्रुजय पर्वत के शिखर पर दूसरी बार गए। संसार के भवरूपी बेलड़ी को काटने में तलवार की धारा के समान, शत्रुजय तीर्थ के अलंकारभूत श्री ऋषभदेव भगवान् की दूसरी बार यात्रा अपने बनाए हुए नाना प्रकार के अलंकारमय एवं भक्ति रस पूर्ण सुन्दर रचना वाले स्तोत्रों से स्तवना करते हुए की। बाद में वहाँ पर सकल संघ में मुख्य श्रेष्ठिवर्य श्री वीरदेव, संघ-पृष्ठरक्षक-पोषक सेठ तेजपाल, सा० नेमिचन्द्र, दिल्ली निवासी श्री श्रीमाल सा० रुद्रपाल, सा० नींबदेव, मंत्रीदलीय कुलभूषण ठ० जवनपाल, सा० लखमा, जालौर के निवासी सा० पूर्णचन्द्र, सा० सहजा और गुडहा नगर के रहने वाले सेठ वाधु आदि अनेक स्थानों के रहने वाले धनी श्रावकों ने दस दिन तक महाध्वजारोपणादि महापूजा, संघपूजा, अवारित सत्र, स्वधर्मी वात्सल्य, इन्द्र पद-महामहोत्सव आदि कार्य बड़े उत्साह से किए। इस अवसर पर वस्त्राभूषण आदि खूब बाँटे गए। इन कार्यों के करने से जिनशासन की अत्यधिक प्रभावना हुई। जिनशासन की प्रभावना करने में प्रवीण सेठ लोहट के पुत्ररत्न सा० लखमा श्रावक ने बारह सौ रुपयों में मंत्रीपद ग्रहण किया। शेष पदों को अन्यान्यं धनी मानी श्रावक-श्राविकाओं ने ग्रहण किया। भगवान् आदिनाथ के भण्डार में इस विधि-संघ की ओर से पन्द्रह हजार रुपये संचित हुए। श्री आदिनाथ भगवान् के मन्दिर में नए बनाए हुए चौबीसी जिनालय की देवकुलिकाओं पर पूज्यश्री ने विस्तार पूर्वक विधि-विधान से कलश और ध्वजा का आरोपण किया।
इस प्रकार श्री आदिनाथ प्रभु के पूजन-वन्दन आदि कृत्यों से निवृत्त होकर पूज्यश्री पहाड़ के नीचे तलहटी में अपने स्थान पर आ गए। इसके बाद सारा संघ जिस प्रकार गया था, उसी प्रकार ठाठ-बाट से वापस लौटता हुआ सेरीसा नगर में श्री पार्श्वनाथ भगवान् की यात्रा पूजा करके क्रमशः चलता हुआ शंखेश्वर नामक तीर्थ स्थान में पहुँचा। वहाँ पर चार दिनों तक अवारित सत्र, स्वधर्मीवात्सल्य, श्रीपार्श्वनाथ प्रभु की महापूजा और महाध्वजारोपण श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ का किया और वहीं निकटवर्ती पाटलालंकार श्री नेमिनाथ जी की यात्रा चतुर्विध संघ से परिवृत पूज्यश्री ने अपने बनाये नए-नए स्तुति स्तोत्रों से स्तवना करने पूर्वक की। इसके बाद सकल संघ सहित पूज्यश्री श्रावण सुदि एकादशी के दिन शासन प्रभावक सेठ वीरदेव श्रावक द्वारा किए गए अत्यन्त ठाठ पूर्वक प्रवेश महोत्सव के साथ भीमपल्ली आए और श्री महावीर देव की वन्दना की। देश-देशान्तरों से आये हुए श्रावक लोगों को संघपति सेठ वीरदेव ने दान सम्मान पूर्वक अपने-अपने घरों को विदा किया।
१०३. इसके बाद सं० १३८२ में वैशाख सुदि ५ के दिन सा० सामल सेठ के कुल में दीपक के समान, स्थिरता, उदारता और गंभीरता आदि गुणों से मेरुपर्वत और समुद्र को भी हलका दिखाने वाले, समस्त नागरिक लोगों के मुकुट समान, जिनशासन को प्रभावित करने में अग्रणी, शत्रुजय आदि
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