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१०१. वहाँ पर निरुपमातिशयशाली युगप्रवरागम आर्य सुहस्तिसूरि का अनुकरण करने वाले, श्री जिनकुशलसूरि जी महाराज के उपदेश से सभी तरह इतिहास प्रसिद्ध महाराज श्री सम्प्रति के तुल्य
और सकल बुद्धि के निधान सेठ वीरदेव श्रावक ने खंभात नगर निवासी उत्तम, मध्यम, जघन्य सभी लोगों के महासमुदायों के साथ जंगम युगप्रधान अनेक लब्धिनिधान श्री जिनकुशलसूरि जी महाराज का नगर प्रवेश हिन्दू साम्राज्य में जैसा होता वैसा करवाया। विरोधी यवन लोगों के देखते हुए भी चँवर डुलाये जा रहे थे। मस्तक पर छत्र धारण किया गया था। भेरी और ढोल आदि नाना प्रकार के बाजे बजाये जा रहे थे। घोड़ों पर कसे हुए ढोल आदि वाजित्रों के आवाज से समग्र आकाश व दिग्मंडल परिपूर्ण हो रहा था। खेल-तमाशे करने वाले नृत्यकार लोग जगह-जगह विविध प्रकार के नृत्य कर रहे थे। सधवा स्त्रियाँ स्थान-स्थान पर रासड़े दे रही थीं। तीर्थंकर देवों के, युगप्रधान गुरुओं के एवं संघपति के अनेक पुण्य कार्य गर्भित गायन गाये जा रहे थे। बंदी लोग अनेकों प्रकार की कवितायें पढ़ रहे थे, जिसकी खुशी में संघपति व अन्य दानी लोग छूट से द्रव्य दान कर रहे थे। कहाँ तक कहा जाए? नाना प्रकार के नाटकादि उत्सव ऐसे हो रहे थे, जिनका वर्णन करना मनुष्यवाणी की शक्ति के बाहर का विषय है। सारे नगर के घर व दुकानें तलाई तोरणादि से खूब सजाये गए थे। हिन्दू राज्य के अलंकारभूत मंत्री श्री वस्तुपाल ने युगप्रवरागम श्री जिनेश्वरसूरि जी महाराज का जैसा प्रवेशोत्सव कराया था एवं यवन राज्यकाल में राज मंत्रीश्वर सेठ श्री जेसल जी ने समग्र अतिशयों के निधान युगप्रधानाचार्य श्री जिनचन्द्रसूरि जी म० का यहाँ पर जैसे नगर-प्रवेश करवाया था, उनसे भी अधिक आडम्बर पूर्वक अनेक लब्धिनिधान जंगम युगप्रधानाचार्य श्री जिनकुशलसूरि जी महाराज का यह नगर प्रवेश हुआ। उस समय विशाल जिन मन्दिर के तुल्य देवालय का रथ साथ में होने से रथयात्रा के समान इस जुलूस का दृश्य था। वहाँ पर नवांगी टीकाकार श्री अभयदेवसूरि जी महाराज की स्तवना से हुए, खंभात नगर के अलंकारभूत श्री स्तंभन पार्श्वनाथ जी महाराज और उस चैत्य में विराजमान श्री अजितनाथ स्वामी की स्तवना आचार्यश्री ने अपने नूतन बनाये हुए नव-नव अलंकार मय स्तुति-स्तोत्रों से की। सकल चतुर्विध संघ सहित पूज्यश्री ने अनेक भवों से संचित पाप-रूपी कीचड़ को धोने के लिए यह पवित्र यात्रा की थी।
इसके बाद लगातार आठ दिन तक सेठ वीरदेव तथा अन्य धनी श्रावकों ने खंभात निवासी विधिसमुदाय के साथ महाध्वजारोपणादि महापूजा एवं अनिवारित अन्न-वस्त्र दान, संघ वात्सल्य, संघ पूजा और इन्द्र महोत्सव आदि धार्मिक कार्य प्रचुर धन व्यय से किए, इस से महती शासन प्रभावना हुई। ये कार्य स्वपक्ष के सभी लोगों के लिए आनन्द-दायक और विपक्षियों के लिए कष्टप्रद हुए। इस उत्सव में सा० कडुआ श्रावक के पुत्ररत्न दो० खांभराज के छोटे भाई दो० सामल श्रावक ने बारह सौ रुपये बोली में बोल कर इन्द्र पद प्राप्त किया और मंत्रिपद आदि अन्यान्य पद अन्य उत्तम श्रावकों ने ग्रहण किए।
१०२. आठ दिन खंभात में रह कर समग्र संघ शत्रुजय यात्रा के लिए चला। यद्यपि उस समय देश में जगह-जगह राजाओं में लड़ाइयाँ चल रही थीं, भय के मारे जहाँ-तहाँ नगर, ग्राम सूने हो रहे
संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास Jain Education International 2010_04
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