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महाराज से यात्रा के लिए अत्याग्रह युक्त गाढ़ प्रार्थना की। श्रावक वीरदेव जिनशासन को दीपाने वाला था। अपने पराये सभी लोगों के कार्यों में सहयोग देने वाला था। भीमपल्ली के श्रावकों में मुकुटमणि के समान था। अपने-अपने उज्ज्वल कर्त्तव्यों से सेठ खींवड़, सा० अभयचन्द्र, सा० साढल, सा० धणपाल, सा० सामल आदि निज पूर्वजों से भी वह खूब आगे बढ़ा हुआ था। इसके चरित्र बड़े उदार थे। कठिनातिकठिन अभिग्रहों के निभाने में प्रवीण था। पूज्यश्री के प्रार्थना स्वीकार करने पर सेठ वीरदेव ने गाँवों और नगरों में निमंत्रण-पत्र भेज कर स्वधर्मी समुदाय को एकत्रित किया।
तत्पश्चात् सूरिचक्रवर्ती युगप्रवरागमाचार्य श्री जिनचन्द्रसूरि जी महाराज के शिष्यों में चूडामणि के सदृश श्री जिनकुशलसूरि जी महाराज अपने ज्ञान-ध्यान के बल से यात्रा विषयक पूर्वापर-निराबाधतादि को सोच-समझ कर ज्येष्ठ वदि पंचमी के दिन श्रीसंघ के साथ तीर्थ-नमस्कार के लिए भीमपल्ली से रवाना हो गए। महाराज ने प्रस्थान करने के पूर्व सेठ वीरदेव को संघ रूपी सेना का संचालन करने के लिए संघपति का पद दिया और जिनशासन के अनन्य प्रभावक पूर्णपाल तथा सैंटा नामक भ्राताओं के साथ, राजदेव सेठ के पुत्ररत्न सेठ झांझा श्रावक को संघ के पृष्ठरक्षक पद पर नियुक्त किया। पुण्यकीर्ति गणि, सुख कीर्ति गणि आदि बारह साधुओं और प्रवर्तिनी पुण्यसुन्दरी आदि साध्वियों को साथ लेकर वीरदेव श्रावक के बनवाए हुए कृतयुगावतार महारथ के समान मन्दिर में बड़ी प्रभावना के साथ जिन चौबीसी के पट्ट को स्थापित करके तीन सौ गाड़े, अनेक घोड़े, अनेक ऊँट और विविध स्थानों से आए हुए श्रीसंघ के अनगिनत सैनिकों के झुण्ड के साथ निष्क्रमण महोत्सव पूर्व वहाँ से यात्रा का प्रस्थान किया। यद्यपि चातुर्मास समीप आ रहा था, परन्तु पूज्यश्री श्रीसंघ की प्रबल प्रार्थना को ठुकरा नहीं सके; क्योंकि श्रीसंघ तीर्थंकरों के भी आदरणीय हैं।
वहाँ से चलने के बाद मार्ग में जगह-जगह अनेक उत्सवों को मनाता हुआ श्रीसंघ वायड नगर पहुँचा। वहाँ पर श्री महावीर भगवान् की पूजा-वन्दना करके बड़ी धूम-धाम से सेरीसानगर में प्रवेश किया। वहाँ दो दिन ठहर कर पार्श्वनाथ भगवान् की पूजा की और वहाँ अन्न-धन बाँटा गया तथा भगवान् के मन्दिर पर ध्वजा चढ़ाई गई। वहाँ से चल कर शिरखिज महानगर में संघ सह पूज्यश्री पहुँचे। वहाँ पर समग्र लोगों को आश्चर्य मुग्ध बनाने वाले जंगम (चलते हुए) मन्दिर-जिनालय के समान बड़े भारी महोत्सव से प्रवेश किया। वहाँ से आशापल्ली नगर नजदीक था इसलिए वहाँ के श्रावक व्यवहारिक महणपाल, व्यव० मंडलिक, सा० वयजल आदि विधि-संघ की प्रार्थना मान कर आचार्य महाराज संघ सहित आशापल्ली गए। स्थानीय श्रावकों के भगीरथ प्रयत्न से किए गए सकलजनाश्चर्यकारक बड़े समारोह पूर्वक नगर प्रवेश कर श्री ऋषभदेव भगवान् के दर्शन-पूजनस्पर्शन-वन्दन विधिपूर्वक किए। वहाँ पर बड़े विस्तार से मालारोपण महोत्सव मनाया गया।
इसके बाद सम्पूर्ण संघ के साथ पूज्यश्री बड़े आडम्बरपूर्वक समग्र गुजरात देश के अलंकार समान श्री स्तंभन पार्श्वनाथ स्वामी के दर्शन यात्रा करने के लिए खंभातनगर की ओर चले। मार्ग में आने वाले अनेक ग्राम और नगरों में उत्तम मंदिर के समान देवालय के महोत्सवों को करता हुआ श्रीसंघ बड़े आनन्द के साथ खंभात तीर्थ पहुँचा।
(१८२) Jain Education International 2010_04
खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड For Private & Personal Use Only
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