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________________ लूणा, साह क्षेमसिंह, साह देवराज, भणशाली पद्मा, मन्ना आदि श्रावकों के परिवार सह पन्द्रह दिन तक संघ का सत्कार किया। गरीबों को द्रव्य बाँटा, खेल-तमाशे, नृत्य-गान करवाये। दुःखी व भूखों के लिए अन्न क्षेत्र खोले। साधर्मी वात्सल्य किया। दीक्षा के लिए वैराग्य धारण करने वाले क्षुल्लकक्षुल्लिकाओं को नाना प्रकार की उत्तमोत्तम वस्त्राभूषण सामग्री दी गई। चतुर्थी के दिन बड़े धूमधाम से जलयात्रोत्सव एवं पंचमी को प्रतिष्ठा महामहोत्सव किया गया। इस उत्सव से लोगों के मन में बड़ा आश्चर्य हुआ। __ प्रतिष्ठा कराने वाले आचार्य श्री जिनकुशलसूरि जी महाराज बड़े लब्धिधारी, श्री गौतमस्वामी और श्री वज्रस्वामी आदि अनेक पूर्वधर आचार्यों के समान थे। स्वर्गीय गुरु श्री जिनचन्द्रसूरि जी महाराज अहर्निश उनकी सहायता करते थे। जिन-जिन मूर्तियों की प्रतिष्ठा करवाई उनके नाम ये हैं: जावालिपुर योग्य श्री महावीर प्रतिमा, देवराजपुर योग्य श्री युगादिदेव प्रतिमा, श्री शत्रुजंय तीर्थ में स्थित बूल्हा वसही मन्दिर का जीर्णोद्धार कराने के लिए सेठ छज्जल साह के पुत्ररत्न श्रेष्ठिवर्य राजसिंह और सेठ मोखदेव श्रावक द्वारा बनाई हुई श्रेयांसनाथ आदि अनेक तीर्थंकरों की प्रतिमाएँ। इसी प्रकार शत्रुजय पर सेठ तेजपालादि पत्तनीय विधि-संघ निर्मापित चैत्य में सा० लूणा श्रावक के बनवाये हुए अष्टापद योग्य चौबीस भगवानों की प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित की गईं। इन में ढाई सौ मूर्तियाँ पाषाण की थीं और पीतल की मूर्तियाँ अगणित थीं। इनके अतिरिक्त उच्चापुरी के योग्य श्री जिनदत्तसूर महाराज की प्रतिमा, श्री देवराजपुर के योग्य जिनचन्द्रसूरि जी की मूर्ति और अम्बिका आदि अधिष्ठात्री देवी-देवताओं की मूर्तियाँ भी प्रतिष्ठित की गईं। इसी प्रकार सूरि जी महाराज के निज भण्डार के योग्य समवसरण (सूरि मंत्र पट) की प्रतिष्ठा की। इसके पश्चात् षष्ठी के दिन व्रत-ग्रहण, बड़ी दीक्षा, माला-धारण आदि नन्दि महोत्सव अति विस्तार से किया। उसी महोत्सव में देवभद्र, यशोभद्र नामक क्षुल्लकों को बड़ी दीक्षा दी गई। सुमतिसार, उदयसार, जयसार नामक क्षुल्लकों और धर्मसुन्दरी, चारित्रसुन्दरी नामक क्षुल्लिकाओं को दीक्षा धारण करवाई। जयधर्म गणि को उपाध्याय पद दिया गया और उनका नाम जयधर्मोपाध्याय ही रखा गया। अनेक साध्वियों तथा श्राविकाओं ने माला ग्रहण की और श्रावकश्राविकाओं ने सम्यक्त्व-धारण, सामायिक ग्रहण तथा श्रावक के बारह व्रतों को धारण किया। इसके बाद तीर्थ यात्रा की इच्छा रखने वाले सेठ श्रीमान् वीरदेव आदि भीमपल्ली के श्रावकों की प्रार्थना से पूज्यश्री ने भीमपल्ली नगरी में सेठ वीरदेव निर्मित बड़े भारी समारोह से वैशाख वदि त्रयोदशी के दिन प्रवेश करके श्री महावीर भगवान् को विधिपूर्वक वन्दन किया। १००. सूरि महाराज के भीमपल्ली पधारने के बाद उसी वर्ष अपने भाई मालदेव एवं सा० हुलमसिंह से परिवृत सेठ वीरदेव जी ने दिल्लीपति सम्राट गयासुद्दीन के यहाँ से तीर्थ यात्रा का फरमान निकलवा कर, अन्य श्रावकों के साथ समस्त अतिशयों के निधान और अपने उदार चरित्र से गणधर भगवान् श्री गौतम स्वामी, श्री सुधर्मा स्वामी श्रीजंबू स्वामी, श्री स्थूलभद्र स्वामी, श्री आर्य महागिरि, श्री वज्र स्वामी, श्री जिनदत्तसूरि जी आदि युगप्रधानों की याद दिलाने वाले युगप्रवरागमाचार्य श्री जिनकुशलसूरि जी संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास (१८१) Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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