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________________ तथा सा० राजसिंह आदि विभिन्न देशान्तरीय अनेक संघ समुदाय तथा पत्तन वास्तव्य स्वपक्ष-परपक्षीय महाजन जनों के महासमुदाय के साथ सूरि जी महाराज ने जैसे लंका विजय के बाद अयोध्या में रामचन्द्र जी ने प्रवेश किया वैसे अत्यद्भुत ठाठ से पत्तन शहर में प्रवेश किया। गुरुवर्य के इस प्रवेशोत्सव में उदार दिल भक्तजन याचकों को खूब दान दे रहे थे, उत्तम गायक लोग व भक्तिमंत श्राविका वर्ग विविध प्रकार के गुरु-गुण-गर्भित गीत गा रहे थे, नृत्य करने वाले अनेक विध नृत्य कर रहे थे, अनेकों प्रकार के मंगल वाजिन बज रहे थे, घोड़ों की पीठ पर कसे हुए अनेक ढोलों की आवाज से तमाम लोग विस्मित हो रहे थे। इस प्रकार यह प्रवेशोत्सव समस्त राजवर्गीय व नागरिक जनों के चित्त में चमत्कार और समस्त दुर्जनों के हृदय में उद्वेग (खेद) पैदा करने वाला था। अधिक क्या कहना? इसका यथावत् वर्णन करना मनुष्य के सामर्थ्य से बाहर है। ९८. इसके बाद सेठ रयपति जी ने दूसरी बार पाटण के याचकों को सन्तुष्ट करके पूज्यश्री के चरण-रज को मस्तक पर धारण कर, उनकी आज्ञा से सकल संघ के साथ दिल्ली जाने के लिए प्रस्थान किया। आते समय की तरह ही स्थान-स्थान पर प्रभावना करता हुआ समग्र संघ सहित सेठ रयपति युगप्रवरागम श्री जिनचन्द्रसूरि जी महाराज की निर्वाणभूमि ‘श्रीकोशवाणा' नामक नगर में पहुँचा। यहाँ पर श्री जिनचन्द्रसूरि जी महाराज के स्तूप पर ध्वजा चढाई और महापूजा करके बड़ा उत्सव मनाया। मिष्ठान्न-वितरण और कनक-तुरगादि दान से जिनशासन को प्रभावित किया। फिर वहाँ से चलकर दूसरी बार फलौदी पहुँचे। वहाँ पर बड़े हर्षोल्लास से पार्श्वनाथ प्रभु की यात्रा करने के बाद वस्त्रादि दान-सम्मान से सम्मानित कर देश-देशान्तरों से आकर संघ में सम्मिलित होने वाले श्रावकों को अपने-अपने घरों की ओर विदा किया। इसके बाद सेठ रयपति जी जिस मार्ग से आए थे, उसी मार्ग से होकर कार्तिक वदि चतुर्थी के दिन यवनों की राजधानी दिल्ली पहुँचे। राजकीय प्रतिष्ठा पाये हुए सेठ जी के सुपुत्र साधुराज (सेठ) धर्मसिंह ने निर्गमन महोत्सव से भी अधिक ठाठ पूर्वक यात्रा में साथ लिए देवालय सहित सेठ रयपति का प्रवेश महोत्सव करवाया। ९९. इसके बाद विक्रम संवत् १३८१ वैशाख वदि पंचमी के दिन पूज्य श्री जिनकुशलसूरि जी महाराज ने पाटण नगर में एक बड़ा भारी विराट प्रतिष्ठा महोत्सव करवाया। यह उत्सव शान्तिनाथ भगवान् के विधि-चैत्य में सम्पन्न किया गया था। इसमें सम्मिलित होने वाले अनेक प्रान्तों से आए हुए मुख्य श्रावकों के नाम ये हैं:-दिल्ली निवासी श्री श्रीमालकुल के मुकुटमणि साह रुद्रपाल, सा० नींबा, जालौर के मंत्री भोजराज के पुत्र मंत्री सलखण सिंह, रंगाचार्य, लखण, सत्यपुर (सांचौर) से समागत मंत्री मलयसिंह, भीमपल्ली के वीरदेव आदि समग्र संघ, खंभात से आए हुए व्यवहारी छाड़ा, श्री घोघाबन्दर से समागत सा० देपाल, मंत्री कुमर, सा० खीमड़ आदि अनेकों उत्तम श्रावकों के महान् समुदाय की विद्यमानता में उत्सव के कार्यों में विशेष भाग लेकर पुण्य कमाने वाले सेठ जाल्हण के पुत्ररत्न सा० तेजपाल और सा० रुद्रपाल ने श्री श्रीमालकुलभूषण सा० राजसिंह, भणशाली (१८०) खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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