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________________ श्रावक ने आठ सौ मुद्रा अर्पण करके मंत्री पद लिया। अन्य लोगों ने भी यथाशक्ति बोली बोल कर अन्यान्य पद ग्रहण किए। सारी संख्या मिलाकर श्री नेमिनाथ देव के भण्डार में चालीस हजार रुपये जमा हुए। पहाड़ पर पूजा समाप्त करके समस्त संघ के साथ पूज्यश्री तलहटी में आए। वहाँ पर नाना प्रकार के धार्मिक उत्सवों के करने से प्रबल प्रचण्ड कलिकाल की जड़ उखाड़ने में तत्पर अपने स्वामी पूज्यश्री को देखकर, अपने दानातिशय से चिन्तामणि-कामधेनु-कल्पवृक्ष को भी मात करने वाले, परम यशस्वी, समस्त श्रावकवृन्द शिरोमणिभूत रयपति सेठ ने महणसिंह आदि अपने पुत्रों के साथ पूज्यश्री की कीर्ति फैलाने के लिए तीन दिन तक बराबर रात-दिन विविध प्रकार के स्वर्णाभूषण, बढिया से बढिया रेशमी वस्त्रादि उत्तमोतम वस्तुओं का दान देकर समग्र सौराष्ट्र देश में रहने वाले अगणित याचकों को सन्तुष्ट किया। सा० राजसिंह, सा० हरिपाल, सा० तेजपाल आदि अन्य श्रावकों ने भी यथेच्छा मिष्ठान्न-पानादि प्रदान कर याचकवर्ग को हर्षित किया। ९७. अपने संकल्पित कार्य का विधि पूर्वक संपादन करने वाले, युगप्रवरागम श्री जिनचन्द्रसूरि जी तथा अम्बिका आदि देवी-देवताओं की सहायता से युक्त, व्याकरण, न्याय, साहित्य, अलंकार, नाटक, ज्योतिष, मंत्र, तंत्र और छन्दः शास्त्र के परम ज्ञाता, तुरगपद, कोष्ठक-पूरण आदि शब्दालंकार और जटिल समस्या-पूर्तियों से बड़े-बड़े विद्वानों का मनोरंजन करने वाले, समग्र जनता पर अखण्ड आज्ञैश्वर्य के आरोपण से चन्द्र ज्योत्स्ना समान उज्ज्वल कीर्ति का उपार्जन करने वाले, अपने विशुद्ध चारित्र से चन्द्रकुल के अनेक पूर्वाचार्यों को भी प्रकाशित करने वाले, गुरुओं में चक्रवर्ती के समान युगप्रधान श्री जिनकुशलसूरि जी महाराज, इस प्रकार तीर्थ यात्रा करने से, अपने जन्म व अनेक कष्टोद्यमों से उपार्जित द्रव्य को सफल करने वाले, श्री जिनशासन व अपर शासनवर्ती अनेक महापुरुषों द्वारा बन्दी वर्ग की भांति संस्तवित होने वाले यानि जैसे बंदी भाट-चारण लोग दान प्राप्ति की लालसा से दानी पुरुषों की खूब स्तवना करते है वैसे स्व-पर-दर्शन के महापुरुष गुणानुरागिता से जिसकी मुक्त कण्ठ स्तवना करते हैं, आजन्म से नाना विध अभिग्रहों के प्रतिपालन द्वारा निज देह को पवित्र बनाने वाले, मन चाहे पदार्थ की प्राप्ति के कारण पैदा हुए हर्ष से विकसित मुख वाले श्रीमान् सेठ रयपति आदि विधि-मार्गानुयायी समस्त संघ के साथ, वर्षा ऋतु से होने वाली जीव-विराधना की निवृत्ति पूर्वक, शून्य अरण्य सदृश दुर्गम सौराष्ट्र देश को भी राजमार्ग की तरह निराबाध तथा उल्लंघन करके, रास्ते में स्थान-स्थान पर श्रीसंघ की ओर से महती शासन प्रभावना के होते हुए श्रावण शुक्ल त्रयोदशी के दिन पत्तन पहुँचे और नगर के बाहर उपवन (उद्यान) में श्रीसंघ का निवास हुआ। वहाँ पर चारों दिशाओं से आए हुए चतुर्विध श्रीसंघ को उपदेश दानादि द्वारा संतोषित करने के हेतु पूज्य आचार्य श्रीसंघ के साथ उद्यान में ही ठहरे। __इसके बाद भाद्रपद वदि एकादशी के दिन अभिलषित प्रत्येक कार्य को सिद्ध करने में समर्थ और निजपुत्र सा० महणसिंहादि परिवार से परिवृत संघपति श्रीमान् सेठ रयपति एवं सा० तेजपाल संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास (१७९) Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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