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________________ का आश्चर्योत्पादक स्वागत किया। वहाँ पर विपक्षियों के हृदय में कील की तरह चुभे वैसे महा आडंबर से चैत्य-परिपाटी आदि करने द्वारा महती प्रभावना श्रीसंघ ने की। वहाँ से साह महिराज आदि और कोरण्टक गाँव के रहने वाले साह गांगा आदि स्वपक्ष-परपक्ष के अनेकों श्रावक लोग भी संघ के साथ तीर्थयात्रा के लिए चल पड़े। इसके पश्चात् संघ ने श्रीमाल नगर में श्री शांतिनाथ जी की और भीमपल्ली एवं वायड गाँव में विशेष समारोह के साथ श्री महावीर देव की अर्चा-पूजा सह यात्रा की। वहाँ से चलकर सारा संघ ज्येष्ठ वदि चतुर्दशी के दिन गुजरात के प्रधान नगर पाटण नगर में पहुँचा। यह नगर उस समय अनेक व्यापारी व मुसलमानों से भरा हुआ था। वहाँ महाराजाधिराज के सैन्य की लीला को धारण करने वाले विशाल संघ को योग्य स्थान में ठहराया गया। बाद में संघपति श्रीमान् सेठ रयपति एवं सेठ महणसिंह आदि अनेक ग्रामों से आये हुए श्रावक लोगों ने सुवर्ण व वस्त्रों की वर्षा करने के साथ जैनागमों में वर्णित महाराजाधिराज दशार्णभद्र की तरह महाभक्ति और श्रद्धा के साथ स्थावरतीर्थ श्री शान्तिनाथ प्रभु को व जंगम तीर्थ रूप युगप्रधान गुरु चक्रवर्ती श्री जिनकुशलसूरि जी महाराज के चरणों में विधिपूर्वक वंदना की। श्री शान्तिनाथ भगवान् के चैत्य में संघ ने अट्ठाई महोत्सव बड़े ही ठाठ से किया। इसके बाद श्रीसंघ ने पाटण के तमाम मन्दिरों में अनेक प्रकार के गाजे-बाजे व अगणित नर-नारियों के महा मेलावड़े सहित जाकर बड़े विस्तार के साथ चैत्य-परिपाटी की। इस चैत्य-परिपाटी के समय याचकों को अपरिमित द्रव्य दान दिया जा रहा था। अनेकों वाजित्रों का घोष बड़े जोर से हो रहा था, देखने वाले सभी लोग आश्चर्यचकित हो रहे थे और यह प्रसंग विधर्मियों को प्रशंसा करने के कारण सम्यक्त्व प्राप्त कराने वाला था एवं असहिष्णु विपक्षी वर्ग के हृदय में शल्य समान था। ९५. इसके बाद सकल संघ के मुकुट तुल्य प्रधान पुरुष संघपति सेठ रयपति एवं समग्र संघ के भार को निभाने में प्रवीण साह महणसिंह, सेठ गोपाल, साह जवणपाल, साह कालू, साह हरिपाल आदि देशान्तरीय श्रावक समुदाय ने और पत्तन निवासी साधुराज जाल्हण के कुल के दीपक आ० श्री जिनकुशलसूरि जी म० के पदस्थापनादि समग्रोत्सवादि अनेक पुण्य कार्यों को करने वाले श्रेष्ठिवर्य श्रीमान् तेजपाल एवं श्रीमाल कुलभूषण सेठ छज्जल के कुल में मुकुट मणि तुल्य सेठ रयपति के संघ के पदधारक एवं उस पद को निभाने में अत्यन्त तत्पर श्रेष्ठिवर्य श्रीमान् राजसिंह तथा सेठ श्रीपति के पुत्ररत्न सेठ कुलचन्द्र तथा साह धीणा जी के पुत्ररत्न सेठ गोसल आदि हम्मीरपुर तथा पाटण निवासी मुख्य श्रावकों ने असत्य-अशौचादि असन्मार्ग को जिन्होंने त्याग दिया है एवं अन्याय से अलंकृत शरीर वाले यानि अन्यायमय और जबरदस्त कलिकाल रूप राजा के भय से जो अकम्पित है, ऐसे धर्मचक्रवर्तियों में इन्द्र तुल्य पूज्यवर श्री जिनकुशलसूरि जी महाराज से विज्ञप्ति की कि-"हे स्वामिन् ! यद्यपि वर्षा ऋतु निकट आ गई है। फिर भी समस्त श्रीसंघ के ऊपर महान् कृपा करके अनेकों उपद्रवादि महासुभटों के बल वाले एवं दुष्टस्वभावी कलिकाल महीपाल कृत अनेकों आपत्तियों से संघ की रक्षा करने के लिए आप प्रसन्न होकर तीर्थ की विजययात्रा में श्रीसंघ के साथ पधारिये, जिससे हमारे समस्त संघ के मनश्चिन्तित कार्य सभी तुरन्त सिद्ध हों।" इस प्रकार संघ समस्त की विज्ञप्ति को (१७४) Jain Education International 2010_04 खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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