________________
सड़क से एक जुलूस निकाला गया, जिसमें अनेक (बारह) प्रकार के बाजे बज रहे थे, बादशाह तथा अन्य राजा-महाराजाओं के बंदी (भाट-चारण) लोग अनेक प्रकार से विरुदावलियाँ बोल रहे थे, रासड़े दिए जा रहे थे। नगर-रमणियाँ मंगल गीत गा रही थीं। दुःखी-भूखे लोगों को छूट से दान दिया जा रहा था। सरकारी आदमियों को सुवर्ण-भूषण, शाल-दुशाले तथा घोड़े इनाम स्वरूप दिये गये। प्रथम वैशाख वदि सप्तमी के दिन नवीन निर्मित प्रासाद के सदृश देवालय को साथ लेकर बड़े आरोह-समारोह के साथ समस्त चतुर्विध श्रीसंघ ने दिल्ली से प्रस्थान किया। यात्रा के प्रथम दिन से सेठ श्री रयपतिजी की ओर से हमेशा के लिए बेरोक-टोक अन्न क्षेत्र खोला गया; जिसमें कोई भी व्यक्ति मनोवांछित भोजन पा सकता था। इस प्रकार भारी आडंबर सह दिल्ली से चलकर श्रीसंघ कन्यानयन नामक नगर में पहुँचा। वहाँ पर युगप्रधान श्री जिनदत्तसूरि जी महाराज से प्रतिष्ठित श्री महावीर तीर्थराज का अर्चन-वन्दन किया गया और जैनेतर लोगों के हृदयों में सम्यक्त्व-श्रद्धा पैदा करने वाली महान् शासन प्रभावना की गई। वहाँ से शासन प्रभावक और समग्र उत्सव में अग्रगण्य सेठ पूना, सेठ पद्मा, सेठ राजा, सेठ रातू, ठ० देपाल, सेठ कालू, सेठ पूना आदि श्रावकों को तथा आशिका नगरी के सेठ देदा आदि श्रावक समुदाय को साथ लेकर संघ बड़े आडंबर से आगे को चला। इसके पश्चात् प्रत्येक गाँवों और नगरों में धर्म की प्रभावना करता हुआ सारा संघ नरभट नगर में पहुँचा। यहाँ पर श्री जिनदत्तसूरि जी महाराज से प्रतिष्ठित श्री नवफणा से विभूषित पार्श्वनाथ जी की प्रभावशाली प्रतिमा को नानाविध भक्ति से संघ समस्त ने नमस्कार किया। वहाँ से साह भीमा, सा० देवराज आदि अच्छे-अच्छे श्रावक लोग संघ के साथ हो लिये। इसके बाद खाटू के सा० गोपाल, श्री नवहा, झूझणू आदि गाँवों व नगरों के रहने वाले सा० कान्हा आदि श्रावक लोग भी संघ के साथ चल पड़े। तत्पश्चात् जिनशासन की प्रभावना करने वाले सेठ रयपति जी सारे संघ को साथ लिए हुए फलौदी (मारवाड़) पहुँचे। वहाँ पर श्री पार्श्वनाथ देव की यात्रा के निमित्त बड़ा भारी उत्सव मनाया गया। उस संघ में सम्मिलित होने के लिए संघपति की ओर से अनेक ग्रामों व नगरों को कुंकुम पत्र भेजे गए थे। अतः जैसे समुद्र में अनेकों नदियों का प्रवाह आ मिलता है वैसे सेठ रयपति के संघरूप समुद्र में अनेक ग्रामों व नगरों के संघ रूप नदी प्रवाह यहाँ आकर सम्मिलित हुए। संघ में आने वालों में कतिपय मुख्य-मुख्य सज्जनों के नामों का यहाँ उल्लेख किया जाता है। सेठ हरिपाल के पुत्ररत्न सेठ गोपाल, साह पासवीर के पुत्र साह नंदन, सेठ हेमल के पुत्र साह कडुआ, साह पूर्णचन्द्र के प्रभावशाली पुत्र सेठ हरिपाल, सा० पेथड़, सा० बाहड़, सा० लाखण, सा० सीवा, सा० सामल, सा० कीकट आदि उच्चापुरी निवासी एवं सा० वस्तुपाल आदि देवराजपुर के तथा कयासपुर निवासी सा० मोहनदास आदि समुदाय, मरुकोट (मरोट) के रहने वाले साह ताल्हण आदि समुदाय वगैरह, समग्र सिन्ध के अनेक नगरों के संघ समुदाय तथा मेड़ता के साह आंबा आदि एवं कोसवाणा के मंत्री केल्हा आदि अनेकों श्रावक-समुदायों के झुंड के झुंड यहाँ पर इस संघ में शामिल हुए। वहाँ से चलकर मार्ग में गुडहा निवासी श्रावक सा० मेलू आदि समुदाय को साथ लेकर सारा संघ जालौर पहुँचा। वहाँ पर नगर प्रवेश के समय सरकारी और गैर सरकारी सभी लोगों ने संघ
(१७३)
संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास Jain Education International 2010_04
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org