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________________ सेठ तेजपाल जी गुरु श्री जिनप्रबोधसूरि जी के छोटे भाई जाल्हण जी के पुत्र थे। कई बातों को लेकर यह प्रतिष्ठा महोत्सव अभूतपूर्व था। इसमें अन्न-धन प्रचुर प्रमाण में बाँटा गया था। बाहर से आये हुये साधर्मिक भाइयों की बड़ी आवभगत की गई थी। प्रतिष्ठा में जलयात्रा महोत्सव भी देखने ही योग्य हुआ था। इसी दिन देव गुरु की आज्ञा का पालन करने में तत्पर सेठ नरसिंह के पुत्ररत्न सेठ खींवड़ के प्रयत्न से सेठ तेजपाल आदि पत्तन वास्तव्य श्रावक समुदाय की ओर से शत्रुजय नामक तीर्थस्थान में श्री ऋषभदेव जी महाराज के मन्दिर की नींव डाली गई थी। उस प्रतिष्ठा महोत्सव के समय श्री शान्तिनाथ आदि तीर्थंकरों की शिलामय, रत्नमय और पीतल आदि धातुओं की बनी हुई डेढ़ सौ प्रतिमाएँ, आचार्यश्री के निज के दो मूल समवसरण (सूरिमंत्र पट्ट) और श्री जिनचन्द्रसूरि, जिनरत्नसूरि आदि गुरुओं की तथा नाना अधिष्ठायकों की प्रतिमाएँ पूज्यश्री द्वारा प्रतिष्ठित की गईं। उस महोत्सव में भीमपल्ली के श्रावकों में प्रधान उदार चरित्र सांवल नामक सेठ के पुत्ररत्न सेठ वीरदेव ने एवं श्री पत्तन, भीमपल्ली, आशापल्ली आदि नगरों के संघ समुदाय ने संघ-पूजा व साधर्मिक वात्सल्य द्वारा तथा सेठ सहजपाल के पुत्र सेठ स्थिरचन्द्र ने और सेठ धीणा जी के सुपुत्र सेठ खेतसिंह आदि वहाँ आये हुए श्रावकों ने इन्द्र पद आदि महोत्सवों की रचना करके श्री जिनशासन को भारी प्रभावित किया। इसके बाद श्री बीजापुर के श्रावक संघ के अनुरोध से पूज्यश्री वहाँ के श्रावक समुदाय के साथ बीजापुर आये। बड़ी धूमधाम से महाराज का नगर में प्रवेश कराया गया। वहाँ पर पूज्यश्री ने महातीर्थ रूप श्री वासुपूज्य भगवान् को नमस्कार किया। इसके बाद बीजापुर के श्रावकों के साथ पूज्यश्री ने त्रिशृंगम नामक नगर की तरफ विहार किया। वहाँ पहुँचने पर शासन के प्रभाव को बढ़ाने वाले सेठ जैसलजी के पुत्र सेठ जगधर और सुलक्षण नाम के दोनों भाइयों ने हजारों मनुष्यों के साथ गाजे-बाजे से महाराजश्री का नगर प्रवेश करवाया। इसके पश्चात् पूज्य महाराज श्री मंत्रीदलीय कुल में उत्पन्न, देव गुरु की आज्ञा को मानने वाले ठ० आसपाल के पुत्र ठ० जगतसिंह आदि श्रावक वृन्द के साथ श्री आरासण और तारंगा नामक महातीर्थों में गये। वहाँ पर महाराजश्री के सदुपदेश से बीजापुरीय और त्रिशृंगमपुरीयों ने साधर्मिक वात्सल्य, श्रीसंघ-पूजा, बेरोक-टोक दानशाला और महाध्वजारोपण आदि शासन-प्रभावना के अनेक कार्य किये। यहाँ से आकर महाराज श्री ने तीसरा चौमासा पाटण में किया। सं० १३८० कार्तिक शुक्ला चतुर्दशी के दिन पूज्यश्री महाराज ने सेठ तेजपाल तथा रुद्रपाल की ओर से शत्रुजय पहाड़ पर बनाये गये भव्य विशाल विधि-चैत्य में स्फटिक मणिवत् निर्मल और कर्पूर जैसी धवल पाषाणमय सत्ताईस अंगुल प्रमाण वाली आदिनाथ भगवान् की प्रतिमा की स्थापना की। धार्मिक कार्यों में सेठ तेजपाल ने बहुत नाम कमाया था। इनके दादा सेठ यशोधवल भी मारवाड़ के कल्पवृक्ष कहे जाते थे। पहले ही कहा जा चुका है कि सेठ तेजपाल जी चन्द्रकुलप्रदीप गुरु चक्रवर्ति आचार्य श्री जिनप्रबोधसूरि जी महाराज के छोटे भाई जाल्हण नामक श्रावक के पुत्ररत्न थे और निरभिमानियों में चूडामणि समान थे। श्री जिनकुशलसूरि जी के पाट-महोत्सव के समय इन्होंने प्रचुर मात्रा में धन खर्च करके बड़ी कीर्ति पैदा की थी। इस प्रतिष्ठा महोत्सव में चारों तरफ निमंत्रण पत्र दे संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास (१७१) www.jainelibrary.org Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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