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________________ आदिष्ट “श्री जिनकुशलसूरि" नाम रखा तथा पूज्य गुरुदेव का दिलाया हुआ सूरि-पद समवसरण (पट) भी प्रदान किया गया। कुशलकीर्ति गणि जी गणधरों के समान सर्व लब्धिधारी थे । स्थैर्य, औदार्य, गाम्भीर्य आदि गुण- गणों से उपार्जित उनके यश रूपी कपूर प्रवास से सारा विश्व सुगन्धित था। उनका यश महादेव का हास्य, पूर्णिमा की रात, चाँद की किरणें, गाय का दूध, मोतियों का हार, बर्फ, सफेद हाथी दाँत के चूर्ण की तरह स्वच्छ था । ये राजेन्द्रचन्द्रसूरि के सहपाठी थे। नवीन नाट्य रस के अवतारपूर्वक तत्काल बनायी जाती नवीन नवीन तरह की काव्य- परम्परा से तमाम पण्डितों को विस्मित करने वाले थे। ज्ञान-ध्यान के अतिशयों में पूर्वाचार्यों की याद दिलाने वाले थे यानि उनसे किसी तरह भी कम नहीं थे। सब विद्याओं के पारंगत थे । वाक्चातुर्य में बृहस्पति से भी विशिष्ट थे। उस समय समग्र देश में म्लेच्छों की प्रधानता होने पर भी हिन्दू महाराजाधिराजा श्रेणिक, सम्प्रति, कुमारपाल आदि के समय की तरह यह युगप्रधान पद-स्थापना का उत्सव बड़ा चमत्कारी हुआ । उत्सव के दिनों में सोने-चाँदी के कड़े बाँटे गये । अन्न-वस्त्रादि देकर याचकों के मनोरथ पूरे किये गये। गाना-बजाना, खेल-तमाशे, राग-रंग खूब किये । चारण- भाट - बन्दिजनों ने नई-नई कवितायें सुना कर अपने साहित्य - ज्ञान का परिचय दिया। बाहर से आने वाले साधर्मी भाइयों का अतिथि सत्कार अच्छी तरह से किया गया। इसके साथ संघ - पूजा भी की गई थी। इस उत्सव के कार्य को सानन्द समाप्त करके श्री राजेन्द्रचन्द्राचार्य जी ने युगप्रवरागम श्री जिनचन्द्रसूरि जी महाराज के आदेश रूपी महल पर एक प्रकार से सुवर्ण कलश चढ़ाया । इस उत्सव में अपने सब मनोरथों को पूर्ण करने वाले, उदार चरित्र सेठ तेजपाल ने सर्वस्थानों से चतुर्विध संघ के आगन्तुक सभी श्रावकों को वस्त्रादि सिरोपाँव देकर सम्मानित किया था । अनेक गच्छों के सैकड़ों आचार्य और हजारों साधुओं को भी वस्त्रादि देकर प्रसन्न किये थे । सब वाचनाचार्यों के भी मनोरथ पूरे किये गये थे। इस महोत्सव में प्रधान सेठ सामल के पुत्र, साधर्मिक-वत्सल, भीमपल्ली समुदाय के मुकुट तुल्य पुरुषसिंह सेठ वीरदेव श्रावक, श्री श्रीमाल कुलभूषण वाज्जल के पुत्ररत्न सेठ राजसिंह, मंत्रिदलीय राजमान्य देव - गुरु आज्ञा रूप चिन्तामणि को शिरोधार्य करने वाले ठ० विजयसिंह, ठ० जैत्रसिंह, ठ० कुमरसिंह, ठ० जवनपाल, ठ० पाल्हा आदि मंत्रीदलीय श्रावकों ने तथा साह सुभट के पुत्ररत्न सा० मोहन, मं० धनू - झांका प्रमुख जावालिपुर के तथा साह गुणधर आदि पाटण के, साह तिहूण आदि बीजापुर के, ठाकुर पद्मसिंह आदि आशापल्ली के और गोठी जैत्रसिंह आदि खंभात के समुदाय ने श्रीसंघ - पूजा, साधर्मिक वात्सल्य, बेरोक-टोक भोजनदान आदि शुभ कार्य सम्पादन करके अपने अपरिमित द्रव्य का सदुपयोग किया। उसी दिन आचार्यश्री ने मालारोपणादि नन्दि महोत्सव भी किया। इसके बाद सारे श्रीसंघ ने श्री जिनकुशलसूरि जी महाराज के पाट महोत्सव के उपलक्ष्य में श्री शांतिनाथ देव के आगे अत्यधिक उत्साहपूर्वक आठ अठाई महोत्सव किये । ' १. श्री जिनकुशलसूरि पट्टाभिषेक रास के अनुसार सेठ तेजपाल ने अपने घर पर १०० आचार्य, ७०० साधु, २४०० साध्वियों को प्रति लाभ कर वस्त्र पहिराये। संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only (१६९) www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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