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अधिकारियों ने पूछा कि-"आप अपनी शिकायत को प्रमाणों से सत्य कर सकते हैं?" उत्तर में कोई सन्तोषजनक बात न कहने के कारण, पूज्यश्री के सामने ही राजद्वार पर खड़े हुए लाखों हिन्दूमुसलमानों के समक्ष, राजकीय पुरुषों ने उसको लाठी, चूंसा, मुक्का आदि से जर्जरदेह बना कर जेल खाने में डाल दिया और उसकी बड़ी बुराई की। सरकारी आदमियों ने पूज्यश्री से कहा कि-"आप सत्यभाषी हैं, न्यायी हैं और सच्चे श्वेताम्बर साधु हैं। आप बादशाह की भूमि पर स्वेच्छा से विचरें, इस विषय में आप किसी प्रकार की शंका न करें।"
यद्यपि बादशाह की ओर से पूज्यश्री को जाने की इजाजत मिल गई थी, परन्तु दयालु स्वभाव वाले पूज्यश्री ने साधुराज तेजपाल, सा० खेतसिंह, ठ० अचलसिंह और ठ० फेरू आदि को बुलाकर कहा कि दुर्जन स्वभाव वाले द्रमकपुरीयाचार्य को कैद से छुड़ाये बिना हम इस स्थान से आगे नहीं चलेंगे क्योंकि भगवान् वर्द्धमान स्वामी के अनुयायी श्री धर्मदास गणि ने उपदेशमाला में कहा है कि
जो चंदणेण बाहुँ , आलिप्पइ वासिणाइ तच्छेइ।
संथुणइ जोवि निंदइ, महारिसिणो तत्थ समभावा॥ [जो मनुष्य चन्दन के विलेपन से भुजा को सुगन्धित करता है एवं सुले (बांसले) से काटता है। जो इसी तरह स्तुति व निन्दा करता हो, सभी पर महर्षि-मुनि लोग समभाव वाले होते हैं।] अन्य शास्त्रों में भी लिखा है
. शत्रौ मित्रे तृणे स्त्रैणे स्वर्णेऽश्मनि मणौ मृदि।
मोक्षे भवे च सर्वत्र निःस्पृहो मुनिपुङ्गवः॥ [उत्तम मुनि लोग शत्रु-मित्र, घास, स्त्रीवृन्द, सुवर्ण, पत्थर, मणि, मिट्टी का ढेला, मोक्ष और संसार इन सब में निष्पृह रहते हुये समान भाव रखते हैं।]
इस प्रकार शत्रु-मित्र में समभाव वाले, तृण, मणि, मिट्टी के ढेले और कंचन को एकसा समझने वाले, दया के समुद्र पूज्यश्री का दुश्मन को भी कैद से छुड़ाने का दृढ़ अभिप्राय जानकर सरकारी और गैर सरकारी सभी लोगों ने आश्चर्य से अपना माथा धुनते हुए पूज्यश्री की अधिकाधिक प्रशंसा की। इसके बाद पूज्यश्री ने तेजपाल आदि श्रावकों के द्वारा दयालु अधिकारियों को समझा-बुझा कर द्रमकपुरीयाचार्य को जेल से छुड़वाकर उसको अपनी पौषधशाला में भेजा।
तत्पश्चात् अश्वशाला के अध्यक्ष द्वारा अतीव सम्मानित हुए एवं हिन्दू-मुसलमान तथा सेठ तेजपाल, खेतसिंह, सा० ईश्वर, ठ० अचलसिंह श्रावक आदि लोगों से अनुगम्यमान अर्थात् ये सब लोग जिनके साथ चल रहे हैं ऐसे पूज्य आचार्यश्री गुरुतर प्रभावना पूर्वक खण्डासराय नाम के स्थान में आये। इस यात्रा प्रवास में जिन-शासन प्रभावक, समस्त राजाओं के मान्य, सब कामों को निभाने में समर्थ, श्री श्रीमालवंश के मुकुटमणि, सारे संघ के भार को उठाने वाले सेठ तेजपाल, सा० खेतसिंह, सा० ईश्वर आदि सुश्रावकों ने तथा सकल संघ के अग्रगण्य, उदार चरित्रधारी, सब दिशाओं में विख्यात, मंत्रीदलीय
संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास Jain Education International 2010_04
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