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________________ समय देश में म्लेच्छों का प्रबल उपद्रव होते हुए भी श्री वज्रस्वामी और आर्य सुहस्तिसूरि के समान सर्वातिशयशाली जगत्पूज्य श्री जिनचन्द्रसूरि जी, जयदेव गणि, पद्मकीर्ति गणि, पंडित अमृतचन्द्र गणि आदि आठ साधु और जयर्द्धि महत्तरा आदि साध्वी एवं चतुर्विध संघ सहित, सुहागिनी श्राविकाओं के मंगल गीत, बन्दिजनों के स्तुति पाठ एवं बारह प्रकार की बाजों की मधुर ध्वनि के बीच श्री देवालय के साथ नागौर से रवाना हुए। उसके बाद उत्तम शकुनों से प्रेरणा पाते हुए सारे संघ के भार को वहन करने में समर्थ, अपूर्वदान से कल्पद्रुम को मात करने वाले, ठक्कुर अचलसिंह श्रावक तथा श्रीमालकुलमुकुटमणि, देव गुरु की आज्ञा रूप चिन्तामणि से विभूषित मस्तक वाले, संघ के पृष्ठरक्षक के समस्त भार को स्वीकार करने वाले सेठ सुरराज के पुत्ररत्न धनियों में माननीय साधुराज रुद्रपाल श्रावक और सकल संघ सहित पूज्य श्री मार्ग के गाँवों और नगरों में बेधड़क नृत्य व बाजे-गाजे से चैत्य - परिपाटी करने द्वारा जिन शासन की प्रभावना बढ़ाते हुए क्रमशः श्री नरभट पहुँचे। वहाँ पर समारोह के साथ नगर - प्रवेश होने के बाद, श्री जिनदत्तसूरि जी से प्रतिष्ठापित समस्त अतिशयों के निधान नवफणाओं से मण्डित श्री पार्श्वनाथ प्रभु की वन्दना की। श्री नरभटपुर के श्रावकों ने चतुर्विध संघ और देवालय सहित पूज्यश्री की एवं संघ की पूजाभक्ति करके बड़ी भारी प्रभावना की । इसके बाद सकल बागड़ देश के ग्राम-नगरों के निवासी उत्तम श्रावक लोगों के मनोरथों को पूर्ण करते हुए पूज्यश्री ने बड़े उत्साह से, श्रीकन्यानयन में जाकर स्वर्गीय श्री जिनदत्तसूरि जी महाराज द्वारा प्रतिष्ठित, समस्त तीर्थों के मुकुट, अतिशयधारी श्री वद्धर्मान स्वामी को नमन किया। सेठ मेहर, सेठ पद्म, सेठ काला आदि श्री कन्यानयन के प्रधान श्रावकों ने नगर में म्लेच्छों की प्रधानता होते हुए भी हिन्दुओं के समय की तरह पूज्य श्री के शुभागमन के उपलक्ष्य में जगह-जगह खेल-तमाशे करवाये, इसके अतिरिक्त वहाँ पर महावीर तीर्थ में संघ पूजा, साधर्मिक वात्सल्यादि करके जन्म-जन्मान्तर से उपार्जित पाप एवं कष्टों को हरने वाली बड़ी भारी प्रभावना की और वहाँ सारे श्रीसंघ ने श्रीवर्द्धमान स्वामी के आगे बड़े उत्साह से आठ दिन तक अष्टाह्निका महामहोत्सव किया। ८८. इसके बाद वहाँ से समग्र यमुनापार प्रान्त तथा बागड़ देश के श्रावकों के चार सौ घोड़े, पाँच सौ गाड़े तथा सात सौ बैल आदि गणनातीत मनुष्यों के समुदाय सहित, ढोलों के ढमाके से मार्ग में जगह-जगह मंगल पाठ तथा वादित्र ध्वनि के होते हुए, चक्रवर्ती राजा की सेना के समान चतुर्विध श्रीसंघ हस्तिनापुर पहुँचा । इस संघ में असंख्य म्लेच्छ घुड़सवार रक्षकतया पीछे-पीछे चलते थे और ठ० जवनपाल, ठ० विजयसिंह, ठ० सेदू, ठ० कुमारपाल तथा ठ० देवसिंह आदि मंत्रिदलीय समुदाय एवं सुश्रावक ठा० भोजा, श्रेष्ठी पद्म, सा० काला, ठा० देपाल, ठा० पूर्ण, सेठ महणा, ठा० राजू, सा० लूणा तथा ठ० फेरू आदि अनेक श्री श्रीमालवंश के श्रावक तथा सेठ पूनड़, सा० कुमरपाल, मं० मेहा, मंत्री वील्हा, सा० ताल्हण, सा० महिराज आदि ऊकेश वंश के असंख्य श्रावकों का समूह संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only (१६१) www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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