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तथा मं० कुमरा एवं मं० मूधराज प्रमुख कोशवाणा समुदाय, सोलख (नागौर), प्रान्तवर्ती अनेक ग्रामनगरों के समुदाय, जावालिपुर, शम्यानयन आदि मारुवत्रा (मरुधरीय) गाँवों से प्रान्तों से आगत अनेक संघ समुदायों का मेला हुआ। उस समय जगह-जगह अन्न क्षेत्र खोले गये। नाना प्रकार के खेल-तमाशे दिखलाए गए। स्त्रियों के नृत्य हुए। हस्त तालियों के साथ गरबे गाये गए। साधार्मिक भाइयों की सेवाशुश्रूषा की गई। धनवान श्रावक लोगों ने सोने-चाँदी के कड़े, अन्न-वस्त्र बाँटे। नागौर के श्रावकों की प्रार्थना से श्री वर्द्धमान स्वामी की शासन-वृद्धि के लिए तत्पर पूज्यश्री ने असंख्य जनों के मन को हरने वाला, मिथ्यादृष्टि लोगों को आश्चर्यदायक व्रतग्रहण, मालारोपणादि नन्दि महोत्सव किया। उस महोत्सव में सोमचन्द्र साधु को, शीलसमृद्धि, दुर्लभसमृद्धि, भुवनसमृद्धि साध्वियों को दीक्षा दी। पं० जगच्चन्द्र गणि को तथा सब विद्या रूपी वारंगानाओं की नाट्य कला के अभिनवोपाध्याय कल्प, अनेक शिष्यरत्न बढ़ाने में सिद्धहस्त, गृहस्थ सम्बन्ध से पूज्यश्री के भतीजे होने से एवं संयम धारण के बाद शिष्य होने से इस तरह दोनों तरफ संतान रूप है और जिसको पूज्यश्री ने अपनी पट्टरूपी लक्ष्मी के योग्य विचार लिया है ऐसे पण्डितराज श्रीकुशलकीर्ति गणि को वाचनाचार्य का पद प्रदान करके सम्मानित किया। धर्ममाल गणिनी और पुण्यसुन्दरी गणिनी को प्रवर्तिनी पद से अलंकृत किया। ___इसके बाद ठक्कुर विजयसिंह, ठ० सेढू, ठ० अचलसिंह और बाहर से आने वाले समग्र संघ के गाड़ो व घोड़ों के साथ बड़ा मेला बनाकर, पूज्यश्री ने फलौदी जाकर पार्श्वनाथ प्रभु की तीसरी बार यात्रा की। वहाँ पर जिनशासन की प्रभावना करने में प्रवीण, सब सहधर्मियों के वात्सल्य भाव वाले मंत्रीदलीयकुलमंडन ठ. सेढू श्रावक ने जैथल सिक्के के बारह हजार रुपये देकर इन्द्र पद ग्रहण किया। अन्य श्रावकों ने अमात्य आदि पद ग्रहण करके तथा अन्न सत्र, संघ पूजा, स्वधर्मी भाइयों की सेवा, सोने-चाँदी के कड़ों एवं अन्न-वस्त्र का दान आदि पुण्य कार्यों से जैन धर्म की बड़ी भारी प्रभावना की। श्री पार्श्वनाथ भगवान् के भंडार में जैथल सिक्के के तीस हजार रुपयों की आय हुई। इसके बाद पूज्यश्री संघ के साथ वापस नागौर पधारे।
८७. सं० १३७५ वैशाख वदि अष्टमी के दिन वहाँ पर निज के अनेक उज्ज्वल कार्यों से अपने पूर्वजों के समस्त कुल का उद्धार करने वाले, अपनी भुजाओं से उपार्जन की हुई उत्तम लक्ष्मी के क्रीडास्थान, मंत्रिदलीयकुलभूषण ठक्कुर प्रतापसिंह के पुत्ररत्न, जिनशासन का प्रभाव बढ़ाने में दक्ष, सब सहधर्मियों के प्रेमी, बेजोड़ पुण्य संचय से शोभायमान, स्थिरता-गंभीरता तथा उदारता आदि गुणगणों को धारण करने वाले, सब राजाओं के आदरणीय ठक्कुर राज अचलसिंह श्रावक ने महाप्रतापी बादशाह कुतुबुद्दीन सुल्तान का सर्वत्र निर्विरोध यात्रा के लिए फरमान निकलवाकर, तीर्थ यात्रा के लिए गाँवों-गाँव सम्मान के साथ कुंकुम पत्रिकाएँ भेजीं। अतः श्रीनागपुर, श्रीरूणा, श्री कोशवाणा, श्रीमेड़ता, कडुयारी, श्रीनवहा, झुंझुनूं, नरभट, श्री कन्यानयन, श्री आशिकापुर, रोहतक, योगिनीपुर, धामइना, यमुनापार आदि स्थानों में रहने वाले अनेक श्रावकों का विशाल समुदाय आकर नागौर में एकत्र हुआ। उसके साथ में हस्तिनापुर और मथुरा महातीर्थों के लिए यात्रोत्सव प्रारम्भ किया। उस
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खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड
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