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________________ नन्दि महामहोत्सव किया। इस उत्सव के समय जगह-जगह खेल-तमाशे दिखलाये जा रहे थे। नागरिक-नारियाँ नाच-गान कर रही थीं, हस्त तालियों के साथ गरबे गाये जा रहे थे, बन्दिजन अच्छी-अच्छी कवितायें पढ़कर सुना रहे थे। याचकों को उदार दिल से धन बाँटा जा रहा था। नगर के धनी-मानी सेठ उदयपाल, श्रे० गोपाल, सा० वयरसिंह, ठाकुर कुमरसिंह आदि मुख्य श्रावक लोग खूब उदार भावना से स्वर्ण, अन्न, वस्त्रों का दान दे रहे थे। जगह-जगह भोजनालय खोले गये, जिनमें किसी प्रकार की रोक-टोक नहीं थी। इसके अतिरिक्त स्वधर्मिक लोगों के प्रति प्रेमभाव दर्शक अनेक साहमी वच्छल भी किये गये। ऐसे महामहोत्सव में जिसने वाक् चातुरी में वृहस्पति को भी जीत लिया है, जो समस्त विद्यारूपी समुद्र को पी जाने में अगस्त्य ऋषि के समान है, उस शिष्यरत्न पं० राजचन्द्र मुनि को आचार्य पद देकर पूज्यश्री ने “राजचन्द्र" इस नाम को बदल कर "राजेन्द्रचन्द्राचार्य" नाम रखा। इसके साथ ही ललितप्रभ, नरेन्द्रप्रभ, धर्मप्रभ, पुण्यप्रभ तथा अमरप्रभ नाम के साधुओं को दीक्षा दी गई एवं अनेक श्रावक-श्राविकाओं ने माला ग्रहण की। सम्यक्त्वारोपण, सामायिकारोपण भी किया। इस महोत्सव में साहुकारों में प्रधान सेठ श्री यशोधवल के कुल के प्रदीपसमान शाह नेमिकुमार के पुत्ररत्न, जिनशासन प्रभावक, सकल स्वधार्मिक वत्सल सेठ श्री वयरसिंह सुश्रावक ने स्वधर्मिक वात्सल्य, सर्वसुलभ भोजन, अमारि घोषणा तथा श्रीसंघ पूजा आदि कार्यों में लगाकर अपना धन सफल किया। ८६० इसके बाद सं० १३७४ में फाल्गुन वदि षष्ठी के दिन उच्चापुरी आदि अनेक नगरों में रहने वालों एवं सकल सिंध देशवासी विधि-संघ की प्रार्थना से पूज्यश्री ने व्रतग्रहण, मालारोपण और उपस्थापना निमित्त नन्दि महोत्सव करवाया। सब को आश्चर्य देने वाले इस महोत्सव में दर्शनहित तथा भुवनहित और त्रिभुवनहित नामक मुनियों को प्रव्रज्या धारण करवाई। सैकड़ों श्राविकाओं ने माला ग्रहण की। इस प्रकार देवराजपुर में लगातार दो चौमासे करके पूज्यश्री ने महामिथ्यात्व अंधकार का उन्मूलन किया। सेठ पूर्णचन्द्र और उनके पुत्र उदारचरित्र, जिनशासन प्रभावक, सार्थवाह श्री हरिपाल की साहाय्य से मरुस्थल के बालू का समुद्र अर्थात् रेतीले मैदान को पार करके नागौर को आये। नागौर के श्रावकों ने बड़े धूम-धाम से नगर प्रवेश करवाया। __ वहाँ पर कन्यानयन-निवासी श्रीमालकुलभूषण जिनशासनोन्नतिकारक साह श्री काला सुश्रावक ने कन्यानयन आदि समग्र बागड़ देश और सपादलक्ष प्रान्तवर्ती गाँवों तथा नगरों के रहने वाले श्रावकों को इकट्ठा किया। उनके सम्मिलित संघ के साथ पूज्यश्री ने फलौदी जाकर दूसरी बार श्री पार्श्वनाथ देव की यात्रा की। वहाँ जाकर धनाढ्य श्रावकों ने अन्नसत्र, धार्मिक वात्सल्य तथा श्रीसंघ की पूजा आदि शुभ कार्यों से जिनशासन की बड़ी प्रभावना की। ___ तदनन्तर सं० १३७५ में माघ शुक्ल द्वादशी के दिन नागौर में मंत्रीदलीय कुलावतंश ठाकुर विजयसिंह, ठ० सेढू, सा० रूदा और दिल्ली वाले संघ के प्रमुख मंत्रिदलीय ठ० अचलसिंह आदि प्रमुख श्रावकों के महाप्रयत्न से समग्र डालामऊ समुदाय, कन्यानयन, आशिका, श्रीनरभट, बागड़ देशीय समस्त समुदाय संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास (१५९) Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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