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बन्दी-लोगों के स्तुति-पाठ सुनते हुए, श्रावक लोगों द्वारा अनेक प्रकार के महादानों को दिए जाते हुए, संघ हित करने वाले लोकोत्तर प्रभाव वाले श्री जिनचन्द्रसूरि जी महाराज का भीमपल्ली नगरी में प्रवेश महोत्सव श्रीसंघ ने विस्तारपूर्वक एवं प्रभावना के साथ करवाया।
__संघ में आने वाले देव-गुरु की आज्ञा का पालन में सदा तत्पर, सहधर्मी बन्धुओं के प्रेमी भणशाली श्री लूणा श्रावक ने यात्रा में श्रीसंघ के पृष्ठ-पोषक पद को निभाने व शासन की महाप्रभावना द्वारा समुपार्जित अपने समस्त पुण्यराशि को, दान-शील-तप और भावना रूप धर्म साधन में उद्यत, अपनी मातुश्री भण० धनी सुश्राविका को अर्पित किया और उसने परम श्रद्धा से उसका अनुमोदन किया।
___ वहाँ पर भीमपल्ली नगरी में ....... को स्थानीय पंचायत द्वारा निर्मित महोत्सव से प्रतापकीर्ति आदि दो क्षुल्लकों को बड़ी दीक्षा तथा तरुणकीर्ति, तेजकीर्ति, व्रतधर्मी तथा दृढ़धर्मी इन क्षुल्लक-क्षुल्लिकाओं की दीक्षा का महोत्सव करवाया। उसी दिन ठाकुर हांसिल के पुत्ररत्न ठाकुर देहड़ के छोटे भाई ठाकुर स्थिरदेव की पुत्री रत्नमंजरी गणिनी को (जिसे पूर्व में पूज्यश्री ने अपने हाथ से ही दीक्षा दी थी) पूज्यश्री ने महत्तरा पद प्रदान कर जयर्द्धि महत्तरा नाम रखा तथा प्रियदर्शना गणिनी को प्रवर्तिनी पद दिया।
इसके बाद श्रीसंघ की प्रार्थना से पूज्यश्री नगरों में श्रेष्ठ नगर पाटण पधारे। वहाँ पर सं० १३६९ मार्गसिर वदि षष्ठी के दिन स्वपक्ष एवं परपक्ष में आश्चर्य पैदा करने श्रीसंघ द्वारा किये गए महामहोत्सव के साथ "जयति जिनशासनम्" के जय घोष के साथ उत्साहपूर्वक जगत् के पूजने योग्य पूज्यश्री ने चन्दनमूर्ति, भवनमूर्ति, सारमूर्ति और हरिमूर्ति नामके चार छोटे साधु बनाये। केवलप्रभा गणिनी को प्रवर्तिनी पद दिया और मालारोपणादि महानन्दि महोत्सव भी किया।
सं० १३७० माघ शुक्ला एकादशी के दिन सारे संसार के लिए कल्पद्रुम के अवतार पूज्यश्री ने स्वपक्ष-परपक्ष को आनन्दित करने वाले, सकलसंघ की ओर से दीक्षा-मालारोपणादि नन्दि महोत्सव करवाया। इस महोत्सव में (ज्ञान) निधान मुनि और यशोनिधि, महानिधि नाम की दो साध्वियों को दीक्षा दी।
इसके बाद भीमपल्ली के संघ समुदाय की अभ्यर्थना से पूज्यश्री भीमपल्ली आये। वहाँ पर सं० १३७१ फाल्गुन सुदि एकादशी के दिन पूज्यश्री ने भीमपल्ली के साधुराज श्यामल आदि संघ के द्वारा अमारि घोषणा, अनिवारित अन्न क्षेत्र, संघ पूजा, सहधार्मिक वात्सल्य आदि नाना प्रकार के उत्सव के साथ सब मनुष्यों के मन को हरने वाले व्रत-ग्रहण, मालारोपण आदि नन्दि महोत्सव करवाये। उस महोत्सव में त्रिभुवनकीर्ति मुनि को तथा प्रियधर्मा, यशोलक्ष्मी, धर्मलक्ष्मी नामक साध्वियों को दीक्षा दी।
८५. बाद में श्रीसंघ की गाढ़ अभ्यर्थना से पूज्यश्री वहाँ से जावालिपुर को विहार कर गये। वहाँ पर सं० १३७१ ज्येष्ठ वदि दशमी के दिन मंत्री भोजराज तथा देवसिंह आदि संघ के प्रमुख लोगों द्वारा आयोजित तथा अपने-पराये सभी को आनन्द देने वाला मालारोपणादि नन्दि महोत्सव बड़ी शान से हुआ। उस अवसर पर देवेन्द्रदत्त मुनि, पुण्यदत्त मुनि, ज्ञानदत्त, चारुदत्त मुनि और पुण्यलक्ष्मी, ज्ञानलक्ष्मी, कमललक्ष्मी तथा मतिलक्ष्मी साध्वियों को दीक्षा दी। इसके बाद जालौर को म्लेच्छों ने
संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास Jain Education International 2010_04
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