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________________ इसके बाद सौराष्ट्र (सोरठ-काठियावाड़) देश के भूषण, गिरनार पर्वत में स्थित महातीर्थ रूप श्री नेमिनाथ प्रभु को नमस्कार करने के लिए चतुर्विध संघ सहित पूज्यश्री ने वहाँ से विहार किया। यद्यपि उस समय काठियावाड़ देश नजदीक से निकलती हुई मुसलमानों की सेनाओं से उपद्रवित था और जगह-जगह मारकाट मची हुई थी, परन्तु जगत् के नाथ श्री नेमिनाथ जी की कृपा से, श्री अम्बिका देवी के सान्निध्य से और पूज्यश्री के ज्ञान व ध्यानबल से सारा संघ निर्विघ्नता के साथ सुखपूर्वक उज्जयन्त तीर्थ की तलहटी में पहुँच गया। वहाँ जाकर शुभ अवसर में सकल संघ को साथ लेकर पूज्य श्री ने उज्जयन्त पर्वतराज के अलंकार, भाद्रपद मास में मेघ घटा के समान सौभाग्य से सुन्दर श्री नेमिनाथ भगवान् के चरण-कमल रूपी महातीर्थ की वन्दना की। यह पर्वत श्री नेमिनाथ जी महाराज के तीन कल्याणकों से पवित्र किया हुआ है। वहाँ पर सेठ कुलचन्द्र के कुल में प्रदीप के तुल्य सा० बींजड़ आदि सब श्रावकों ने मिलकर इन्द्रपद आदि महोत्सव किये। इस प्रकार श्री नेमिनाथ भगवान् की वन्दना करके ठौर-ठौर पर धर्म की अनेक प्रकार से प्रभावना करके श्रीसंघ सहित पूज्यश्री लौटकर पीछे खंभात आ गए। वहाँ पर पहले की तरह जैसल श्रावक ने संघ के साथ वाले देवालय का और पूज्यश्री का बड़े विस्तार से प्रवेश महोत्सव किया। महाराजश्री ने खंभात में ही चातुर्मास किया और मंत्रिदलीय ठ० भरहपाल की सहायता से पूज्यश्री ने स्तम्भपुर के अलंकारस्वरूप श्री पार्श्वनाथ की वन्दना की। ८४. चातुर्मास पश्चात् विहार कर बीजापुर आकर श्री वासुपूज्य देव को नमस्कार किया। वहाँ कुछ दिन रह कर सं० १३६७ में माघ वदि नवमी को श्री महावीर प्रभु आदि जिनेश्वरों की शैलमय अनेक प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा के साथ मालारोपणादि नन्दि महोत्सव किया। इसके बाद भीमपल्ली वाले श्रावकों की प्रार्थना से वहाँ जाकर तथा पालनपुर आदि से आने वाले समुदायों के मेले में अनेक प्रकार के दानों से श्री जिनशासन की प्रभावना बढ़ाते हुए पूज्यश्री ने तीन क्षुल्लक और दो क्षुल्लिकाओं को दीक्षा दी। उनके नाम परमकीर्ति, वरकीर्ति, रामकीर्ति तथा पद्मश्री और व्रतश्री थे। उसी दिन श्रीसंघ ने मालारोपणादि नन्दि महोत्सव भी किया और पं० सोमसुन्दर गणि को वाचनाचार्य का पद दिया गया। उसी वर्ष सेठ क्षेमंधर, सा० पद्मा, सा० साढल के कुल में मुकुट समान अपनी भुजाओं से पैदा की हुई लक्ष्मी को भोगने वाले, प्रशंसनीय पुण्यशाली, स्थिरता-गंभीरता आदि गुणों को धारण करने वाले, तीर्थ-यात्रा से पवित्र गात्र वाले स्वर्गीय सेठ धनपाल के पुत्र, सब मनुष्यों को आनन्द देने वाले, भीमपल्लीपुरी निवासी, राजमान्य, श्रेष्ठ धर्मकार्य में कुशल, सेठ सामल ने पालनपुर, पाटण, जावालीपुर, शम्यानयन, जैसलमेर, राणुमकोट, नागपुर, श्रीरूणा, बीजापुर, सत्यपुर, श्रीमालपुर और रत्नपुर आदि स्थानों में कुंकुम पत्री भेजकर तीर्थ-यात्रा के लिए बड़े आदर-सम्मान के साथ श्रीसंघ को बुलाकर एकत्र किया। तीर्थयात्रा के लिए आये हुए विशाल संघ सहित सेठ सामल की गाढ़ अभ्यर्थना से पूज्यश्री भी चलने को तत्पर हुए। यद्यपि देश में सब जगह म्लेच्छ यवनों द्वारा भारी उपद्रव मचा संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास (१५५) _Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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