SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 217
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दीक्षा लेने वाले साधु-साध्वियों के नाम वीरचन्द्र, उदयचन्द्र, अमृतचन्द्र और जयसुन्दरी थे। इसी वर्ष आषाढ़ सुदि द्वितीया को सिरियाणक गाँव में श्री महावीर स्वामी के मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाकर सं० १३५५ में महावीर प्रतिमा की स्थापना महामहोत्सव से करवाई। इस स्थापनोत्सव में सारा धन व्यय सेठ भांडा श्रावक के पुत्र जोधा श्रावक ने किया था। सं० १३५६ में महाराजाधिराज श्री जैतसिंह की प्रार्थना से मार्गसिर वदि चतुर्थी को पूज्यश्री जैसलमेर पधारे। वहाँ पर पूज्यश्री का स्वागत करने के लिये स्वयं राजा साहब चार कोश सम्मुख आये थे। सेठ नेमिकुमार आदि समस्त समुदाय ने प्रचुर धन-व्यय करके बहुमानपूर्वक नगर में प्रवेश करवाया था। प्रवेश के समय तरह-तरह के बाजे बज रहे थे। बन्दीजनों ने सुन्दर-सुन्दर कविताएँ बनाकर पढ़ी थीं। उस खुशी में जगह-जगह नेत्र और मन को आनन्द देने वाले सुन्दर दृश्य सजाये गए थे। श्रावक और श्राविकाएँ रास, गीत और मंगल गायन करने में निमग्न थे। यह प्रवेश महोत्सव स्वपक्षीय तथा परपक्षीय सभी लोगों के मन में चमत्कार पैदा करने वाला हुआ था जिससे विधि मार्ग की खूब उत्तम प्रभावना हुई थी। पूज्यश्री सं० १३५६ में चातुर्मास भी वहीं रहे। सं० १३५७ मार्गसिर सुदि नवमी के दिन, श्री महाराज जैत्रसिंह जी के भेजे हुए गाजे-बाजों की ध्वनि के साथ मालारोपणादि महोत्सव तथा सेठ लखम और भांडारी गज के जयहंस तथा पद्महंस नाम के दो पुत्रों को दीक्षा महोत्सव सहर्ष किया। सं० १३५८ माघ शुक्ल दशमी को श्री पार्श्वनाथ विधि-चैत्य में बाजे-गाजे के साथ बड़े विस्तार से सम्मेतशिखरादि प्रतिमाओं का प्रतिष्ठा महोत्सव पूज्यश्री के द्वारा सेठ केशव जी के पुत्र तोला श्रावक ने कराया। वहाँ पर फाल्गुन सुदि पंचमी के दिन सम्यक्त्वधारण तथा मालारोपण सम्बन्धी महोत्सव भी हुआ। सं० १३५९ में फाल्गुन सुदि एकादशी को सेठ मोकलसिंह, सा० वीजड़ आदि समुदाय की प्रार्थना से बाड़मेर जाकर पूज्यश्री ने श्री युगादिदेव तीर्थंकर को नमस्कार किया। वहाँ पर सं० १३६० में माघ वदि दशमी को सा० बीजड़, सा० स्थिरदेव आदि श्रावकों ने प्रचुर मात्रा में धन खर्च कर श्री जिनशासन की प्रभावना के लिये मालाधारणादि नन्दि महोत्सव बड़े ठाठ-बाट से करवाया। इसके अनन्तर श्री शीतलदेव महाराज की विनती और मं० नाणचन्द्र, मं० कुमारपाल तथा सेठ पूर्णचन्द्र आदि की प्रार्थना स्वीकार करके पूज्यश्री ने श्री शम्यानयन जाकर श्री शान्तिनाथ देव तीर्थ की वन्दना की। सं० १३६१ में द्वितीय वैशाख वदि ६ को मं० नाणचन्द्र, मं० कुमारपाल, भंडारी पद्म, सेठ पूर्णचन्द्र, साह रूपचन्द्र आदि स्थानीय पंचों ने जावालिपुर, सपादलक्ष (अजमेर के निकटवर्ती) आदि के अनेक ग्राम-नगर आदि स्थानों से आये हुये सहस्रों मनुष्यों के मेले में श्री पार्श्वनाथ आदि अनेक मूर्तियों की प्रतिष्ठा करवाई। इसी प्रकार दशमी को अपने पराये सभी को आनन्द देने वाला मालारोपणादि नन्दि महोत्सव श्री देवगुरुओं की कृपा से विस्तारपूर्वक करवाया गया। इस अवसर पर पं० लक्ष्मीनिवास गणि एवं पं० हेमभूषण गणि को वाचनाचार्य का पद दिया गया। संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only (१५३) www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy