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________________ इधर इसी वर्ष में नाना प्रकार के अद्भुत पुण्यों की वल्ली समान श्री भीमपल्ली से सेठ धनपाल के सुपुत्र सेठ भड़सिंह तथा सेठ सामल श्रावक के निकाले हुए संघ के साथ पालनपुर, भीमपल्ली, श्रीपत्तन, सत्यपुर आदि स्थानों से आने वाले स्वपक्षीय-परपक्षीय मेले के साथ अपनी वाक्पटुता से बृहस्पति का पराजय करने वाले उपाध्याय श्री विवेकसमुद्र गणि आदि उत्तम साधु मण्डली सहित जगत्पूज्य आचार्यप्रवर पूज्य श्री जिनचन्द्रसूरि जी महाराज ने तीर्थयात्रा के लिए प्रस्थान करके शंखेश्वरपुर के अलंकार चूडामणि, वांछित वस्तु के पूरण करने में चिन्तामणि रत्न के तुल्य, संसार के दुःख रूप दावाग्नि को शांत करने में शीतल जल के समान श्री पार्श्वनाथ भगवान् की वन्दना की। वहाँ पर श्री संघ ने स्नात्र-पूजा, उद्यापन, ध्वजारोपादि महोत्सव किया। इसके बाद सारे संघ को साथ लेकर पूज्यश्री श्रीपत्तन आये। वहाँ पर श्री शान्तिनाथ भगवान् के विधि-चैत्य में विस्तार के साथ ध्वजारोपणादि महोत्सव किया और बाजे-गाजे के साथ स्त्रियों के उत्तम नृत्य करते हुए, सारे नगर के सभी मन्दिरों में बड़े विस्तार से चैत्य-परिपाटी करके पूज्यश्री भीमपल्ली आ गये। इसके बाद बीजापुर के श्रीसंघ की प्रार्थना से उन्होंने बीजापुर में चातुर्मास किया। वहाँ पर सं० १३५३ मार्गसिर वदि पंचमी के दिन श्रीवासुपूज्य भगवान् के विधिचैत्य में मुनिसिंह, तपसिंह तथा जयसिंह को दीक्षा और साथ ही मालोरापणादि नन्दि महोत्सव भी हुआ। ___इसके बाद संघ की प्रार्थना से महाराज जावालिपुर गए। वहाँ पर सेठ सलखण श्रावक के पुत्ररत्न सेठ सीहा श्रावक तथा मांडव्यपुर से आये हुए सेठ झांझण के पुत्र सा० मोहण द्वारा आबू तीर्थ की यात्रार्थ एक विशाल संघ तैयार किया गया। उस संघ के साथ जावालिपुर, शम्यानयन, जैसलमेर, नागपुर, रूणपुर, श्रीमालपुर, सत्यपुर, पालनपुर और भीमपल्ली आदि स्थानों से आने वाले अनेक धनी-मानी श्रावकवृन्द के साथ श्रीमाल जाति के भूषण दिल्ली निवासी सेठ वाल्हा श्रावक के पुत्र साह लोहदेव आदि प्रमुख श्रावकों का समुदाय सम्मिलित था। रास्ते में सर्वत्र अनिवारित भोजनालय खुले रहते थे एवं विशाल संघ समुदाय के जमघट से चैत्य परिपाटी आदि अनेक महोत्सव मनाये जाते थे। इस प्रकार के संघ के साथ जावालिपुर से वैशाख कृष्ण पंचमी के दिन विहार करके, प्रचुर मुनि मण्डली से सेव्यमान, चतुर्विध श्रीसंघ से संस्तूयमान, जगत्पूज्य पूज्यश्री जिनचन्द्रसूरि जी महाराज आबू तीर्थ के अलंकारभूत समस्त दौर्गत्य (दुर्भाग्य) को निवारण करने वाले जिनेश्वर श्री ऋषभदेव और नेमिनाथ जी की वन्दना की। अनेक शुभ कार्यों से कलिकाल रूपी चोर को भगा देने वाले, याचकों को मुँह माँगा दान देकर कल्पवृक्ष को पराजित करने वाले तथा शुभ परिणामों की धारा में अनेक जन्म-जन्मान्तरों के पाप-पुञ्ज को धो देने वाले समस्त विधिमार्ग संघ ने श्री इन्द्रपदादि ग्रहण, स्नात्रोत्सव और ध्वजारोपादि महोत्सवों से तीर्थ-फण्ड में बारह हजार रुपयों का दान दिया। इसके बाद परम आनन्द से रोमांचित होता हुआ अपने पुण्य रूपी राजा से सम्मानित, निर्मल अन्त:करण वाला श्री विधिमार्ग संघ वहाँ से चलकर वापिस जावालिपुर आ गया और बड़े ठाठ-बाट से नगर प्रवेश हुआ। ___ सं० १३५४ ज्येष्ठ वदि दशमी को जावालिपुर में महावीर विधि-चैत्य में शाह सलखण जी के पुत्र सेठ सीहाजी की लगन एवं भगीरथ प्रयत्न से दीक्षा और मालारोपण सम्बन्धी महोत्सव हुआ। (१५२) Jain Education International 2010_04 खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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