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माघ सुदि एकादशी के दिन जिनप्रबोधसूरि जी के स्तूप में मूर्ति स्थापना करके ध्वज-दण्डारोपण महोत्सव करवाया। इसके बाद विहार कर बीजापुर पधारे, वहाँ चैत्र वदि ६ को अमररत्न, पद्मरत्न, विजयरत्न और मुक्तिचन्द्रिका को दीक्षा दी गई। इस अवसर पर मालारोपण, परिग्रह-परिमाणादि नन्दि महोत्सव भी किया गया। इस उत्सव में खंभात, आशापल्ली, बागड़, वटपद्र आदि स्थानों के अनेक श्रावक संघ सम्मिलित हुए थे।
__सं० १३४८ वैशाख सुदि तृतीया के दिन पालनपुर में वीरशेखर साधु और अमृतश्री साध्वी को संयम धारण करवाया गया। त्रिदशकीर्ति गणि को वाचनाचार्य पद दिया गया। उसी वर्ष सुधाकलश, मुनिवल्लभ आदि साधुओं सहित पूज्यश्री ने गणियोग तप किया।
सं० १३४९ भाद्रपद वदि अष्टमी के दिन सहधर्मियों की भक्ति के लिए सत्राकार (दानशाला) समान उदार मन वाले संघपति सुश्रावक अभयचन्द्र सेठ का अन्त समय जानकर उसको संस्तारक दीक्षा दी गई और उनका नाम अभयशेखर रखा गया। वहाँ पर मार्गसिर वदि की द्वितीया को यश:कीति. को दीक्षा दी गई।
सं० १३५० वैशाख सुदि नवमी के दिन करहटेक, आबू आदि स्थानों की तीर्थ-यात्रा से अपना जन्म सफल करने वाले बरड़िया नगर के मुख्य श्रावक नोलखा वंश-विभूषण भां० सुश्रावक झांझण को स्वपक्ष-परपक्ष सभी को आश्चर्य देने वाली संस्तारक दीक्षा दी गई तथा नरतिलक राजर्षि नाम दिया गया।
सं० १३५१ माघ वदि १ को पालनपुर के ऋषभदेव स्वामी के विधि-चैत्य में मंत्री तिहण सत्क युगादिदेव मूर्ति और श्रे० बीजा सत्क श्री नेमिनाथ प्रभु एवं सेठ जगसिंह द्वारा बनवाई महावीर मूर्ति आदि ६४० सुन्दर प्रतिमाओं का प्रतिष्ठा महोत्सव समुदाय सहित मंत्री तिहुण और श्रे० बीजा श्रावक ने विस्तार से करवाया। माघ वदि पंचमी के दिन अनेक साधु-साध्वी-श्रावक-श्राविकाओं से परिवृत, पूज्यश्री ने बड़े विस्तृत नंदि महोत्सव से अनेकों को मालारोपण करवाया तथा विश्वकीर्ति साधु एवं हेमलक्ष्मी साध्वी को दीक्षा दी।
८१. सं० १३५२ में गुरु श्री जिनचन्द्रसूरि जी महाराज की आज्ञा से वाचनाचार्य राजशेखर गणि, सुबुद्धिराज गणि, हेमतिलक गणि, पुण्यकीर्ति गणि और रत्नसुन्दर मुनि सहित विहार करके श्री बृहद्-ग्राम (बड़ गाँव) गये। वहाँ से बड़ गाँव के ठक्कुर रत्नपाल व सेठ चाहड़ नाम के मुख्य श्रावकों द्वारा भेजे हुए स्वकीय भ्राता ठ० हेमराज तथा भाणेज बांचू श्रावक अपने-अपने परिवार सहित एवं सेठ बोहिथ के पुत्र सेठ मूलदेव श्रावक ने बनारस, कौशम्बी, काकन्दी, राजगृह, पावापुरी, नालन्दा, क्षत्रियकुण्ड ग्राम, अयोध्या, रत्नपुर आदि नगरों की तीर्थ यात्रा की। ये नगर जिनेश्वरों के जन्म आदि कल्याणकों से पवित्र हुए हैं। परिवार सहित राजशेखर गणि ने हस्तिनापुर की यात्रा पहले की हुई थी। अत: इस श्रावक समुदाय के साथ हस्तिनापुर सिवाय अन्य तीर्थों की यात्रा की। इस प्रकार यात्रा करके वाचनाचार्य राजशेखर गणि ने राजगृह के पास उद्दण्ड विहार नाम के गाँव में चातुर्मास किया और मालारोपणादि नन्दि महोत्सव किया।
संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास Jain Education International 2010_04
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