SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 214
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ राजदर्शन गणि को वाचनाचार्य पद से विभूषित किया। सं० १३४६ में माह वदि प्रतिपदा के दिन सेठ क्षेमसिंह भां० (? भ्रा०) बाहड़ द्वारा बनाये गये स्वर्णगिरि पर श्री चन्द्रप्रभ स्वामी मन्दिर के पास में स्थित (देवकुलिका में) श्री युगादिदेव और नेमिनाथ बिम्बों का एवं कुछ गहराई वाले बनाये गये मण्डपों में सम्मेतशिखर पर सिद्ध हुए बीस तीर्थंकरों की प्रतिमाओं का स्थापना महोत्सव किया गया। फाल्गुन सुदि अष्टमी के दिन श्री शम्यानयन नगर (गढ़ सिवाणा) में सेठ बाहड़, भां० भीम, भां० जगसिंह और भां० खेतसिंह नामक श्रावकों के बनाए हुए भवन में चाहमान (चौहाण) वंशीय श्री सोमेश्वर महाराज द्वारा खूब ठाठ से प्रवेशोत्सव कराए हुए शान्तिनाथ देव का स्थापना महोत्सव बड़े विस्तार से करवाया तथा देववल्लभ, चारित्रतिलक, कुशलकीर्ति एवं रत्नश्री को संयमधारण कराया गया। दीक्षा के साथ-साथ मालारोपणादि महोत्सव भी हुआ। तत्पश्चात् चैत्र सुदि १ को जहाँ बाजार में सर्वत्र ध्वजा पताकाएँ फहरा रही हैं ऐसे पालनपुर में सं० माधव आदि मुख्य नागरिक लोगों के सम्मुख आने पर गाजे-बाजे के साथ सेठ अभयचन्द्र आदि की प्रमुखता में समस्त समुदाय ने महाराज का प्रवेशोत्सव करवाया। पालनपुर की तरह भीमपल्ली में भी वैशाख वदि चतुर्दशी को प्रवेश महोत्सव हुआ। वैशाख सुदि सप्तमी को सेठ अभयचंद्र की बनवाई हुई अद्भुत अत्यन्त सुहावनी शिला (पाषाण) मय श्री युगादि-देव की प्रतिमा, चौबीस जिनालयों (देवकुलिकाओं) में चौबीस जिन प्रतिमाएँ, इन्द्रध्वज, श्री अनन्तनाथ दण्डध्वज, श्री जिनप्रबोधसूरि के स्तूप (जालौर) में स्थापन करने निमित्त मूर्ति-दण्डध्वज एवं शिलामय व पित्तलमय अनेक प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा के निमित्त विस्तार से महोत्सव किया गया। ज्येष्ठ वदि सप्तमी को नरचन्द्र, राजचन्द्र, मुनिचन्द्र, पुण्यचन्द्र साधुओं और मुक्तिलक्ष्मी तथा मुक्तिश्री साध्वियों का दीक्षा महोत्सव महाप्रभावना के साथ हुआ। सं० १३४७ मार्गसिर सुदि ६ को पालनपुर में सुमतिकीर्ति को दीक्षा और नरचन्द्रादि साधुसाध्वियों की बड़ी दीक्षा तथा मालारोपणादि महोत्सव किया गया। इसके पश्चात् मार्गसिर सुदि १४ को खदिरालुका नगरी में सूरीश्वर के शुभागमन के उपलक्ष में स्थान-स्थान पर तोरणादि सजाये गये थे। मं० चंडाजी के पुत्र मं० सहणपाल ने नगर के सभी महाजन-ब्राह्मण आदि लोगों के समुदाय को साथ लेकर प्रवेश महोत्सव करवाया। मंत्री सहणपाल ने सारे संघ को एकत्र करके पूज्यश्री को श्री तारणगढ़ (तारंगाजी) तीर्थ के अलंकारभूत अजितनाथ स्वामी की तीर्थ यात्रा करवाई। वहाँ पर पौष वदि ५ को श्री बीजापुर के सेठ लखमसिंह तथा आसपाल आदि संघ समुदाय के साथ खदिरालुका की तरह प्रवेश महोत्सव करवाया। तत्पश्चात् सूरि महाराज जालौर पधारे, वहाँ पर सेठ अभयचन्द्र ने १. ये ही मुनिवर श्री कुशलकीर्ति जी समग्र जैन समाज के महान उपकारी, भक्तजनों की मनः कामनाओं को पूर्ण करने में कल्पवृक्ष व चिन्तामणि रत्न समान छोटे दादा श्री जिनकुशलसूरि महाराज हैं। गुर्वावली के इस कथनानुसार प्रतिष्ठा महोत्सव के दिन ही यदि दीक्षा महोत्सव भी हुआ तो गुरुदेव की दीक्षा दिन सं० १३४६ फाल्गुन सुदि ८ सिद्ध होता है। श्री तरुणप्रभाचार्य ने श्री जिनकुशलसूरि चहुत्तरी में भी इसी दिन दीक्षा होना लिखा है। २. वर्तमान समय 'खेरालु' गाँव जो तारंगाजी के पास में है। (१५०) खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy