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कलिकालकेवली श्री जिनचन्द्रसूरि
८०. इसके बाद श्री जिनचन्द्रसूरि जी ने सं० १३४२ वैशाख सुदि दसमी के दिन जावालीपुर के महावीर स्वामी के विधि-चैत्य में बड़े उत्सव के साथ प्रीतिचन्द्र तथा सुखकीर्ति नामक दो क्षुल्लक और जयमंजरी, रत्नमंजरी तथा शीलमंजरी नाम की तीन क्षुल्लिकाओं को दीक्षा दी। उसी दिन वाचनाचार्यों में श्रेष्ठ श्री विवेकसमुद्र गणि जी को अभिषेक (उपाध्याय) पद तथा सर्वराज गणि को वाचनाचार्य पद और बुद्धिसमृद्धि गणिनी को प्रवर्तिनी पद दिया। सप्तमी के दिन सम्यक्त्व-धारण, मालारोपण, सामायिक-ग्रहण, साधु-साध्वियों की बड़ी दीक्षा निमित्त नन्दी महोत्सव किया गया।
वैसे ही ज्येष्ठ कृष्ण नवमी को धनिकों में श्रेष्ठ सेठ क्षेमसिंह के बनाए हुए सत्ताइस अंगुल प्रमाण वाले स्फटिकादि रत्नमय श्री अजितनाथ स्वामी के बिम्ब का और इन्हीं सेठ के बनाये हुए श्री युगादि-देव, श्री नेमिनाथ आदि (पाषाणमय) बिम्बों का, महामंत्री देदाजी के निर्माण कराये हुए युगादिदेव-नेमिनाथ-पार्श्वनाथ स्वामी के बिम्बों का, भंडारी छाहड़ कारित श्री शान्तिनाथ स्वामी के विशालकाय बिम्ब का और वैद्य देहड़ि के बनाये गये सुवर्णमय अष्टापद चैत्य के ध्वजदण्ड का, वैसे ही और भी बहुतसी प्रतिमाओं का सकल लोक-मनश्चमत्कारकारी, सकल पापहारी प्रतिष्ठा महोत्सव बड़े ही ठाठ से श्री जिनचन्द्रसूरि जी ने श्री सामन्तसिंह महाराज के विजयराज्य में किया। इसी प्रतिष्ठा महोत्सव के अनुकूल समय में विशेष खुशी हुए श्री सामन्तसिंह की सन्निधि में स्वपक्ष-परपक्ष सभी को आह्लादकारी, सकल विधि-मार्ग में नवीन जीवन संचार कर देने वाला श्री इन्द्र महोत्सव, विधिमार्ग का प्रभाव बढ़ाने वाले, आनन्द में सराबोर, सद्भाव को बढ़ाने वाले सेठ क्षेमसिंह आदि समस्त श्रावकों ने प्रचुर द्रव्य व्यय करके संपादित किया। ज्येष्ठ कृष्ण एकादशी के दिन वा० देवमूर्ति गणि को अभिषेक (उपाध्याय) पद देकर मालारोपण आदि नन्दि महोत्सव किया।
सं० १३४४ मार्गसिर सुदि दशमी को जालौर में श्री महावीर विधि-चैत्य में श्री जिनचन्द्रसूरि जी ने सेठ कुमारपाल के पुत्र पं० स्थिरकीर्ति गणि को खूब ठाठ से आचार्य पद दिया और उनका नया नाम श्री दिवाकराचार्य रखा गया।
सं० १३४५ आषाढ़ सुदि तृतीया के दिन मतिचन्द्र, धर्मकीर्ति आदि भव्यजनों को दीक्षा दी गई। तथैव वैशाख वदि १ को पुण्यतिलक, भुवनतिलक तथा चारित्रलक्ष्मी को प्रव्रज्या ग्रहण करवाई और
१. श्री जिनकुशलसूरि कृत श्री जिनचन्द्रसूरि चतुः सप्ततिका के अनुसार आप समियाणा के मंत्री देवराज की
धर्मपत्नी कोमल देवी के पुत्र थे और मंत्री जैसल (जिल्हागर) के भ्राता थे। इनका जन्म नाम खंभराय था
और श्री जिनकुशलसूरि जी के पितृव्य होते थे। इनका जन्म सं० १३२४ मार्गशीर्ष सुदि ४ को हुआ, सं० १३३२ ज्येष्ठ सुदि ३ को दीक्षित हो क्षेमकीर्ति नाम से प्रसिद्ध हुए। जैसलमेर नरेश गणदेव, जैत्रसिंह और समियाणा के समरसिंह, शीतलदेव आपके परम भक्त थे। आपने सम्राट कुतुबुद्दीन को अपने सद्गुणों से चमत्कृत किया। पट्टावलियों में इनका कलिकाल केवली विरुद लिखा है।
संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास
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