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________________ ७६. सं० १३३७ में वैशाख वदि नवमी को गुरु श्री जिनप्रबोधसूरि जी महाराज ने अपने चरणविन्यास से समस्त गुजरात प्रान्त के प्रधाननगर बीजापुर को पवित्र किया। इस शुभ अवसर में सेठ मोहन, सेठ आसपाल आदि समुदाय के मुख्य-मुख्य लोग और मंत्री विन्ध्यादित्य, ठाकुर उदयदेव, भां० लक्ष्मीधर आदि राज के मुखिया लोग तथा अन्य नागरिक महाजन लोगों के सम्मिलित होने पर सब मनुष्यों के आनन्ददायी बारह प्रकार के नन्दि बाजों के गुंजार में अनेक नृत्य कलाकार ठौर-ठौर अपनी नृत्यकला का परिचय दे रहे थे। दान के लोभी भाट लोग ऊँचे स्वर में स्तुति गान कर रहे थे। उत्तम उपदेश से आनन्दित मंत्री विन्ध्यादित्य, ठा० उदयदेव आदि राजप्रधान पुरुषों के द्वारा उनकी प्रशंसा हो रही थी, उन्होंने जिनेश्वरों की तरह श्वेत छत्र धारण कर रखा था। सारे नगर में स्थित देवाधिदेवों को वे नमस्कार करते जाते थे। इस प्रकार पूज्यश्री का प्रवेश महोत्सव बड़े ठाठ-बाट से हुआ। उत्कट महामिथ्यात्व के कारण आज से पहले कभी इस प्रकार का प्रवेश महोत्सव इस नगरवासियों ने नहीं देखा था। इसलिए नगरवासी समस्त सुन्दरियों के मन में इसके देखने से क्षोभ हुआ। याचकजनों के मनोरथ नाना प्रकार के दान द्वारा पर्ण किये गये। यह उत्सव अनेकों भव्यजनों के मन को हरने वाला सिद्ध हुआ। इस उत्सव के प्रभाव से स्थानीय तमाम विघ्न टल गए। कई कारणों को लेकर यह महोत्सव लोकोत्तर हुआ। श्रावकों ने मुक्त-हस्त होकर इसमें प्रचुर धन खर्च किया था, इसलिए इसमें अच्छा रंग आ गया था। ७७. तदनन्तर ज्येष्ठ वदि चौथ शुक्रवार का दिन आया। श्री सारंगदेव महाराजाधिराज के रामराज्य में महामात्य मल्लदेव के एक प्रति (अन्य) शरीर तुल्य बुद्धिसागर मंत्री विन्ध्यादित्य का शासनकाल था। सकल पृथ्वी की सारभूत गुजरात भूमि रूपी स्त्री के अलंकार रूप अनेक पुर-ग्राम आदि थे। उन सब में मुकुट के समान बीजापुर नगर था। उस नगर में मुकुट के माणिक्य समान श्री वासुपूज्य विधि-चैत्य था। उस चैत्य के दर्शनार्थ बड़े चाव से अनेक देशों से आने वाले सम्पत्तिशाली श्रीसंघ का मेला लगा। इस मेले में याचक लोगों से बजाये जाने वाले नन्दी बाजे के निनाद से दिग्अंगनाओं के कर्णछिद्र पूरित हो रहे थे। रोमांच और हर्ष पैदा करने वाली विरुदावली को हजारों आदमी पढ़ रहे थे। ठौर-ठौर पद प्रमुदित मनुष्य रासलीला कर रहे थे। बाजार के अनेक रास्तों पर सैकड़ों गायन मण्डलियाँ विविध प्रकार के गायन कर रही थीं। महामिथ्यात्व और महामोह आदि रूपी प्रबल शत्रुओं को पछाड़ने वाले तथा जिनशासन के स्तंभ-स्वरूप महाराज के आगे-आगे तीन छत्र व चामर-पालकी आदि चल रहे थे। उत्सव में जुलूस के आगे-आगे विद्यमान महामंत्री विन्ध्यादित्य, ठाकुर उदयदेव आदि राज्य के कर्ता स्वयं जुलूस का संचालन कर रहे थे। आनन्दपरवश पुरवासी सभी सम्प्रदायों के लोगों ने बाजारस्थ घरों की भींतों को एवं दुकान व देवमन्दिरों के विस्तार को अनेक प्रकार के आच्छादनों से आच्छादित कर दिये थे, अथवा अनेक लोगों की भीड़ से उपरोक्त सभी स्थान आच्छादित हो गये थे। इस प्रकार सारे भूमण्डल पर आश्चर्य पैदा करने वाला, भव्य लोगों के मन को हरने वाला सांगोपांग जलानयन महोत्सव (जलयात्रा का वर घोड़ा) अभूतपूर्व हुआ। दूसरे दिन भी उसी प्रकार महोत्सव होने लगे। जगह-जगह सदावर्त दिये जा रहे थे। सब जगह अहिंसा संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास (१४३) Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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