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प्रवेश विधि-मार्ग की प्रभावना के साथ निर्विघ्नता पूर्वक करवाया। यह प्रवेश महोत्सव जब तक सूरज-चाँद रहे, तब तक समस्त संघ को प्रमोद देने वाला हो।
७३. सं० १३३४ मार्गशिर सुदि १३ के दिन रत्नवृष्टि गणिनि को प्रवर्तिनी पद दिया गया। तदनन्तर भीमपल्ली नगरी में वैशाख वदि पंचमी के दिन सेठ राजदेव ने श्री नेमिनाथ स्वामी, श्री पार्श्वनार्थ स्वामी, श्री जिनदत्तसूरि की मूर्तियों की प्रतिष्ठा तथा श्री शान्तिनाथ देव के मन्दिर में पर दण्ड-ध्वजा का आरोपण किया। इसी प्रकार सब समुदायों को बुलाकर महोत्सव के साथ सेठ वयजल ने श्री गौतमस्वामी की प्रतिमा की प्रतिष्ठा की। वैशाख वदि नवमी के दिन मंगलकलश को साधु दीक्षा दी गई। इसके बाद पूज्यश्री जी महाराज ज्येष्ठ सुदि द्वितीया के दिन विहार कर बाड़मेर गये। वहाँ पर सं० १३३५ में मार्गशिर वदि चतुर्थी के दिन पद्मकीर्ति, सुधाकलश, तिलककीर्ति, लक्ष्मीकलश, नेमिप्रभ, हेमतिलक और नेमितिलक आदि को बड़े समारोह से दीक्षित किया।
७४. वहाँ से विहार कर पौष सुदि नवमी को चित्तौड़ गए और उसी दिन चित्तौड़ में सोनी श्री धांधल और उसके पुत्र भां० बाहड़ श्रावक ने सारे संघ समुदाय तथा राजा-रईस-नागरिक लोगों के साथ बड़े सजधज से महाराज का नगर-प्रवेश महोत्सव करवाया। फाल्गुन वदी पंचमी को श्री समरसिंह महाराज के राम राज्य में आस-पास के नगरों और ग्रामों से आने वाले लोगों का मेला लग गया। इसके अलावा चित्तौड़ में रहने वाले ब्राह्मण, जटाधारी तपस्वी, राजपुत्र, प्रधान क्षेत्रसिंह, कर्णराज आदि मुख्य-मुख्य नागरिक लोगों की उपस्थिति में महोत्सव हुआ। स्थानीय एकादश मन्दिरों के एकादश छत्रों सहित पालकियों से जुलूस की शोभा बढ़ रही थी। ठौर-ठौर पर बारह प्रकार के नांदी (वाजित्र) निनाद हो रहे थे। याचकों के मनोरथों को पूर्ण करने वाला दान दिया जा रहा था। उस समय चित्तौड़ के चौरासी नामक मोहल्ले में लोगों के चित्त में आश्चर्य पैदा करने वाली जलयात्रा के साथ श्री मुनिसुव्रत स्वामी, युगादिदेव, श्री अजितनाथ स्वामी, वासुपूज्य भगवान् की प्रतिमाओं तथा श्री महावीर समवसरण की स्थापना की गई। इसके साथ ही सेठ धनचन्द के पुत्र समुद्धर द्वारा बनाये गए और पूर्णगिरि में स्थित शान्तिनाथ विधि-चैत्य में पित्तलमय शांतिनाथ स्वामी का समवसरण एवं शाम्ब आदि अन्य मूर्तियों का तथा दण्डधारी द्वारपाल प्रतिमाओं का विधिमार्ग के जय-जयकार के साथ बड़े विस्तार से प्रतिष्ठा महोत्सव करवाया गया। उसी दिन चौरासी मोहल्ले में श्री ऋषभदेव और नेमिनाथ स्वामी की मूर्ति की स्थापना हुई। फाल्गुन सुदि पंचमी को ही उसी चौरासी मोहल्ले में श्री ऋषभदेव, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ, शाम्ब, प्रद्युम्नमुनि, अम्बिका और चत्वरहट्टी अम्बिका देवी के मन्दिरों में ध्वजा चढ़ाने के निमित्त एक बहुत बड़ा अपूर्व दर्शनीय महोत्सव किया गया। इस महोत्सव में सारे
१. यह मूर्ति आज भी भीमपल्ली (भीलड़ियाजी) तीर्थपति भगवान् पार्श्वनाथ स्वामी के सम्मुख भूमिघर में उतरते
हुए दाहिनी तरफ एक आले में विराजमान है। उसका लेख इस प्रकार है :संवत् १३३४ वैशाख वदि ५ बुधे श्री गौतमस्वामीमूर्तिः श्रीजिनेश्वरसूरिशिष्यश्रीजिनप्रबोधसूरिभिः प्रतिष्ठिता। कारिता च सा० दो (बो)हित्थ पु (सु)त सा० वइजलेन मूलदेवादिभ्रातृसहिते (न) स्वश्रेयोर्थं कुटुंबश्रेयोऽर्थं च।
संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास Jain Education International 2010_04
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