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यात्रा के लिए महाराज से अत्यन्त अनुरोध किया। संघ की प्रार्थना अङ्गीकार करके जिनरत्नाचार्य, लक्ष्मीतिलकोपाध्याय, विमलप्रज्ञोपाध्याय, वाचक पद्मदेवगणि, वाचक राजतिलकगणि आदि सत्ताईस साधु, प्रवर्तिनी ज्ञानमाला गणिनी, प्र० कुशलश्री, प्र० कल्याणऋद्धि आदि इक्कीस साध्वियों से परिवृत्त हुए गुरु श्री जिनप्रबोधसूरि जी ने चैत्र वदि पंचमी के दिन जावालीपुर से तीर्थ यात्रा के लिए प्रस्थान किया। श्रीसंघ स्थान-स्थान पर चमत्कार करने वाली विधिमार्ग की प्रभावना करता हुआ श्रीमाल पहुँचा। वहाँ पर शांतिनाथ भगवान् के विधि-चैत्य में इस आये हुए विधि-संघ की तरफ से चौदह सौ चौहत्तर रुपये मंदिर के भंडार में दिए गए। __इसी प्रकार पालनपुर वगैरह में बड़े विस्तार से चैत्य-परिपाटी आदि कार्यों में प्रभावना करके श्रीसंघ श्री तारण-तारंगा तीर्थ पहुँच गया। वहाँ पर सेठ निंबदेव के पुत्र साह हेमा ने ग्यारह सौ चौहत्तर रुपयों में इन्द्रपद ग्रहण किया। इन्द्र के परिवार ने इक्कीस सौ देकर मंत्री आदि पद प्राप्त किए। इस प्रकार कलश चढ़ाने आदि से सारे मिलाकर कोष में पाँच हजार दो सौ चौहत्तर रुपयों की आय हुई। वहाँ से श्रीसंघ ने बीजापुर पहुँच कर माला आदि ग्रहण करके श्री वासुपूज्य विधिचैत्य के कोष में चार हजार रुपये प्रदान किए। इससे आगे चलकर स्तम्भनक महातीर्थ में गोठी क्षेमधर के पुत्र गोठी यशोधवल ने ग्यारह सौ चौहत्तर रुपये देकर इन्द्र पद, इन्द्र के परिवार ने चौबीस सौ देकर मंत्री आदि के पद प्राप्त किये। श्रीसंघ की ओर से कुल आय सात हजार रुपयों की हुई। इसी प्रकार भृगुकच्छ तीर्थ में श्रीसंघ ने चार हजार सात सौ रुपये भेंट चढ़ाये।
श्री शत्रुजयतीर्थ में युगादिदेव भगवान् के मन्दिर में दिल्ली वाले सेठ पूर्णपाल ने बत्तीस सौ में इन्द्रपद, इन्द्र के परिवार ने तीन हजार में मंत्री आदि के पद लेकर और सेठ हरिपाल ने माला पहन कर बयालीस सौ प्रदान किए। कलश आदि की बोली बोल कर संघ समस्त ने कुल पच्चीस हजार रुपये दिये। इस प्रकार दान देकर श्रीसंघ ने द्रव्य का सदुपयोग करके अक्षय कीर्ति उपार्जित की। ___ वहाँ पर युगादिदेव श्री ऋषभदेव भगवान् की मूर्ति के सामने श्री जिनप्रबोधसूरि जी ने ज्येष्ठ वदि सप्तमी को जीवानन्द साधु तथा पुष्पमाला, यशोमाला, धर्ममाला, लक्ष्मीमाला आदि साध्वियों को दीक्षा दी और विधिमार्ग की प्रभावना के लिए मालारोपण आदि महोत्सव बड़े विस्तार से किये। श्री श्रेयांसप्रभु के विधिचैत्य में श्रीसंघ ने सात सौ आठ रुपये दिए। इसके बाद गिरनार (उज्जयन्त) तीर्थ में सेठ मूलिग के पुत्र कुमारपाल ने साढ़े सात सौ में इन्द्र पद लिया। इन्द्र के परिवार वालों ने साढ़े इक्कीस सौ में मंत्री आदि पद प्राप्त किये। सेठ हेमचन्द्र ने अपनी माता राजू के वास्ते दो हजार में नेमिनाथ भगवान् की माला ली। इस प्रकार कुल तेईस हजार रुपये वहाँ के कोष में संगृहीत हुए।
इस प्रकार तीर्थों में, गाँवों में, नगरों में, शहरों में, प्रवचन, शासन की शोभावर्द्धक विविध प्रभावनाओं से अपना धन और जन्म सफल करके तीर्थयात्रा की पूर्ति से सफल मनोरथ होकर यह श्रीसंघ जालौर आ पहुँचा। वहाँ सेठ क्षेमसिंह ने आषाढ़ सुदि चतुर्दशी के दिन चतुर्विध संघ सहित श्री जिनप्रबोधसूरि जी आदि चतुर्विध संघ सहित जिनालय जो श्रीसंघ के दर्शन-पूजन निमित्त साथ में था, उसका नगर
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