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________________ को साथ लेकर आचार्य श्री जिनेश्वरसूरि जी महाराज ने पालनपुर से तीर्थयात्रा के लिए चैत्र वदि १३ को विहार किया। मार्ग में स्थान-स्थान पर विधि-मार्ग की प्रभावना करता हुआ यह विधिमार्गानुयायी श्री संघ श्री तारणगिरि (तारंगा ) महातीर्थ पहुँचा । वहाँ पर मह० देदाक ने पन्द्रह सौ द्रम्म देकर इन्द्रपद लिया। पूना जी के पुत्र सेठ पेथड़ ने चार सौ रुपयों में मंत्रिपद, कुलचन्द्र के पुत्र वीजड़ ने सौ रुपये देकर सारथी पद, सेठ राजाक ने एक सौ दस रुपये में भाण्डागारिक पद, महं० देदा की दो धर्मपत्नियों ने तीन सौ रुपये देकर आद्य चामरधारी पद, तेजपाल ने नब्बे रुपयों में छत्रधर पद और सेठ जयदेव तथा तेजपाल की पत्नियों ने पिछला चामरधारी पद प्राप्त किया। इसी प्रकार बीजापुर में श्री वासुपूज्य भगवान् के विधि - चैत्य में सेठ श्रीपति ने तीन सौ सोलह रुपये में माला ली। इस प्रकार कुल मिलाकर भण्डार में तीन हजार रुपयों का संग्रह हुआ । तदनंतर संघ खंभात पहुँचा । वहाँ पर बहुगुण के भाई थक्कण ने छः सौ सोलह रुपयों से इन्द्र पद पाया। साकरिया गोत्रीय सहजपाल ने एक सौ चालीस रुपयों में मंत्रिपद प्राप्त किया । साह पासु श्रावक ने दो सौ बत्तीस में दो आगे और दो पीछे इस तरह चामरधारियों के चारों पद लिए । सेठ सांगण के पुत्र ने अस्सी रुपये भेंट चढ़ाकर प्रतिहार का ओहदा प्राप्त किया । सेठ पासु के पुत्र ने सत्तर रुपये देकर सारथी का स्थान ग्रहण किया। भां० राजक के पुत्र नावंधर ने अस्सी रुपयों में भण्डारी का पद प्राप्त किया। बहुगुण ने चालीस रुपयों में छत्रधर पद प्राप्त किया। कां० पारस के पुत्र सोमा ने पचास रुपयों में छड़ीवाहक का पद लिया । पदधारियों की तरफ से कुल तेरह सौ आठ रुपये संग्रह किए गए। वैसे सारे संघ की तरफ से पांच हजार रुपये की आवक हुई। वहाँ से चलकर संघ शत्रुंजय महातीर्थ में पहुँचा । सा० मुलिंग ने एक हजार चार सौ चौहत्तर रुपये भेंट चढ़ाकर इन्द्र पद को धारण किया। महं० देदा के पुत्र महं० पूनसी (पुण्यसिंह) ने आठ सौ रुपयों में मंत्री पद प्राप्त किया । भां० राजा के पुत्र इसल ने चार सौ बीस में भांडागारिक पद प्राप्त किया। सेठ सालक ने दो सौ चौहत्तर में प्रतिहार का स्थान ग्रहण किया। महं० सामंत के पुत्र आल्हणसिंह ने दो सौ चौबीस में सारथी का स्थान पाया। सेठ धनपाल के पुत्र धींधा ने एक सौ सोलह में छत्रधर का पद पाया । छो० देहड़ ने दो सौ अस्सी में पारघिय पद लेकर अपने को कृतार्थ किया। पद्मसिंह ने एक सौ रुपये देकर छड़ीवाहक का पद लिया । बहुगुण ने साढ़े चार सौ में आद्य चामरधारी के प्रतिष्ठित पद को प्राप्त कर के अपने को संघ का प्रीतिपात्र बनाया। भां० राजा ने तथा सां० रूपा ने सौ रुपयों में पीछे की ओर का चामर ग्राही का स्थान ग्रहण किया । इन उपर्युक्त सब पदों से पांच हजार तीन सौ अड़तीस रुपये आय हुई। सा० पासू श्रावक ने अड़तीस द्रम्म से मूलनायक युगादिदेव (लेप्यमय) की मुखोद्घाटन माला . ली। सेठ पद्रू के पुत्र सेठ बाहड़ ने तीन सौ चार में मूलनायक युगादिदेव की माला पहनी। महं० देदा की माता हीरल श्राविका ने पांच सौ रुपये में मरु देवी स्वामिनी की माला पाई। सेठ राजदेव की माता तीवी श्राविका ने एक सौ चालीस में पुण्डरीक गणधर की माला ग्रहण की। उसके पुत्र मूलराज (१३२) Jain Education International 2010_04 खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम खण्ड For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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