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________________ पहुँचे और वहाँ पर ज्येष्ठ सुदि १२ के दिन सेठ यशोधवल के बनवाये हुए देवगृह के शिखर पर दण्डध्वज का आरोपण किया और पार्श्वनाथ स्वामी स्थापना की। सं० १३२१ ज्येष्ठ सुदि पूर्णिमा के दिन विक्रमपुर में चारित्रशेखर, लक्ष्मीनिवास तथा रत्नावतार नाम के तीन साधुओं को दीक्षा दी। सं० १३२२ माघ सुदि १४ को विक्रमपुर में त्रिदशानन्द, शान्तमूर्ति, त्रिभुवनानन्द, कीर्तिमण्डल, सुबुद्धिराज, सर्वराज, वीरप्रिय, जयवल्लभ, लक्ष्मीराज और हेमसेन तथा मुक्तिवल्लभा, नेमिभक्ति, मंगलनिधि और प्रियदर्शना को तथा विक्रमपुर में ही वैशाख सुदि ६ को वीरसुन्दरी को दीक्षित किया गया। ___ सं० १३२३ मार्गशिर वदि पंचमी को नेमिध्वज को साधु और विनयसिद्धि तथा आगमसिद्धि को साध्वी बनाया। सं० १३२३ वैशाख सुदि १३ के दिन देवमूर्ति गणि को वाचनाचार्य पद दिया और द्वितीय ज्येष्ठ सुदि दशमी को जैसलमेर में श्री पार्श्वनाथ विधि चैत्य पर चढाने के लिए सेठ नेमिकुमार और गणदेव के बनवाये हुए स्वर्ण दण्ड और कलशों की प्रतिष्ठा की तथा विवेकसमुद्र गणि को वाचनाचार्य का पद दिया। आषाढ़ वदि १ को हीराकर को साधु पद प्रदान किया। सं० १३२४ मार्गशीर्ष कृष्णा १ शनिवार के दिन कुलभूषण, हेमभूषण दो साधु और अनन्तलक्ष्मी, व्रतलक्ष्मी, एकलक्ष्मी, प्रधानलक्ष्मी इन पांच (? चार) साध्वियों को गाजे-बाजे आदि प्रदर्शन के साथ दीक्षित किया। यह दीक्षा महोत्सव जावालीपुर (जालौर) में हुआ था। सं० १३२५ वैशाख सुदि १० को जावालीपुर में ही श्री महावीर विधि चैत्य में पालनपुर, खंभात, मेवाड़, उच्चा, वागड़ आदि स्थानों से आए हुए समुदायों के मेले में व्रत-ग्रहण, मालारोपण, सम्यक्त्वारोपण, सामायिक ग्रहण आदि तथा नन्दियाँ विस्तार से की गईं। वहाँ पर गजेन्द्रबल नाम का साधु तथा पद्यावती नाम की साध्वी बनाई गई। वैशाख सुदि १४ के दिन महावीर विधि-चैत्य में चौबीस जिन प्रतिमाओं की, चौबीस ध्वज दण्डों की, सीमंधर स्वामी, युगमंधर स्वामी, बाहु-सुबाहु स्वामी की एवं अन्य अनेक जिन मूर्तियों की प्रतिष्ठा बड़े विस्तार से हुई। वैसे ही ज्येष्ठ वदि ४ के दिन सुवर्णगिरि किले में स्थित श्री शांतिनाथ विधि-चैत्य में चौबीस देवकुलिकाओं में उन्हीं चौबीस जिन प्रतिमाओं की, सीमंधर स्वामी, युगमंधर स्वामी, बाहु-सुबाहु स्वामी की प्रतिमाओं की स्थापना सर्व समुदाय के मेले में बड़े उत्सव से की। उसी दिन धर्मतिलक गणि को वाचनाचार्य का पद दिया गया और वैसे ही वैशाख सुदि १४ को जैसलमेर के श्री पार्श्वनाथ विधि-चैत्य में सेठ नेमिकुमार और सेठ गणदेव के बनाये हुए सुवर्णदण्ड और सुवर्णकलशारोपण महोत्सव विशेष ठाठ से किया गया। ६९. सं० १३२६ में सेठ भुवनपाल के पुत्र अभयचन्द्र ने तथा मंत्री अजित सुत देदाक नाम के श्रावक ने रास्ते के प्रबन्ध भार को स्वीकार कर लिया। तभी से सेठ अभयचन्द्र, मह० अजित सुत मह० देदा, सेठ राजदेव, सेठ कुमारपाल, सेठ नीम्बदेव सुत सेठ श्रीपति, सेठ मूलिग और सेठ धनपाल आदि चारों दिशाओं के विधि संघ के प्रमुख सज्जनों ने शत्रुञ्जयादि तीर्थों की यात्रा के लिए महाराज से बहुत प्रार्थना की। चतुर्विध संघ की उस प्रार्थना को स्वीकार करके श्री जिनरत्नाचार्य, श्री चन्द्रतिलकोपाध्याय, कुमुदचन्द्र आदि १३ साधु तथा श्री लक्ष्मीनिधि महत्तरा आदि मुख्य १३ साध्वियों संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास (१३१) Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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