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धवल क्रान्ति वाली, सकल संघ को सुबुद्धि देने वाली और एकावन अंगुल प्रमाण वाली "सरस्वती" प्रतिमा की प्रतिष्ठा बड़े समारोह से करवाई। सेठ राजदेव ने इकतीस अंगुल प्रमाण की शान्तिनाथ स्वामी की प्रतिमा की स्थापना कराई। सेठ मूलदेव और क्षेमंधर ने ऋषभदेव प्रतिमा, सेठ सावदेव के पुत्र पूर्णसिंह ने श्री महावीर स्वामी की प्रतिमा, आजड़ पुत्र बोधाक ने श्री पार्श्वनाथ स्वामी की प्रतिमा, सेठ धारसिंह ने श्री पार्श्वनाथ स्वामी और श्री भीमभुजबल पराक्रमयुक्त क्षेत्रपाल प्रतिमा, श्री ऋषभदेव
और महावीर स्वामी की प्रतिमा पूनाणी उदा ने, चौबीस तीर्थंकरों के पट्ट और अजितनाथ स्वामी की प्रतिमा सेठ बालचन्द्र ने, ऋषभदेव की प्रतिमा सेठ भावड़ के सुत धांधल ने, शान्तिनाथ की प्रतिमा बोथरा शांतिग ने, ऋषभदेव की प्रतिमा आसनाग ने, महावीर स्वामी जी की तीन प्रतिमाएँ सेठ साढल के पुत्र धनपाल ने, शांतिनाथ की प्रतिमा सेठ भोजाक ने, दादा जिनदत्तसूरि और चन्द्रप्रभ स्वामी की प्रतिमा सेठ हरिपाल तथा कुमारपाल ने, श्रीनेमिनाथ की प्रतिमा रूपचन्द्र के पुत्र नरपति ने, स्तंभनक पार्श्वनाथ की प्रतिमा सेठ धनपाल ने, चण्डे० () की प्रतिमा सेठ बीजा ने और अम्बिकादेवी की प्रतिमा श्री संघ ने स्थापित करवाई। द्वादशी के दिन सौम्यमूर्ति और न्यायलक्ष्मी नामक साध्वियों की दीक्षा धूमधाम से करवाई गई।
सं० १३१८ पौष सुदि तृतीया के दिन संघभक्त को दीक्षा और धर्ममूर्ति गणि को वाचनाचार्य पद दिया गया। ___ सं० १३१९ मिगसिर सुदि ७ के दिन अभयतिलक गणि को उपाध्याय पद दिया गया। उसी वर्ष पं० देवमूर्ति आदि साधुओं को साथ लेकर श्री अभयतिलक उपाध्याय जी उज्जैन गए, वहाँ पर तपागच्छ के पंडित विद्यानन्द को जीत कर "प्रासुकं शीतलं जलं यतिकल्प्यम्" अर्थात् प्रासुक (अचित-निर्जीव) हुआ शीतल पानी यतिजनों को कल्पनीय है। इस बात को अनेक सिद्धान्तों के बल से अपने पक्ष का स्थापन करके राजसभा में जय-पत्र प्राप्त किया। इस कारण इन सूरि महाराज का पालनपुर आदि स्थानों में बड़े विस्तार से प्रवेशोत्सव हुआ था। सं० १३१९ माघ वदि पंचमी को विजयसिद्धि साध्वी की दीक्षा हुई। माघ वदि ६ को श्री चन्द्रप्रभस्वामी की प्रतिमा, अजितनाथ प्रतिमा
और सुमतिनाथ की प्रतिमा की सेठ बुधचन्द्र ने बड़े महोत्सव से प्रतिष्ठा करवाई। सेठ भुवनपाल ने ऋषभदेवस्वामी की प्रतिमा, सेठ जसधर के पुत्र जीविग नामक श्रावक ने धर्मनाथ स्वामी की प्रतिमा, रत्र और पेथड़ श्रावक ने सुपार्श्वस्वामी की प्रतिमा, सेठ हरिपाल और उसके भाई कुमारपाल ने श्री जिनवल्लभसूरि मूर्ति और सिद्धान्तयक्ष मूर्ति की स्थापना एवं प्रतिष्ठा कराई। सेठ अभयचन्द्र ने श्री पतन में अक्षय तृतीया के दिन श्री शान्तिनाथ देव के मन्दिर पर दण्ड कलश चढ़ाये। ___ सं० १३२१ फाल्गुन सुदि २ के दिन गुरुवार को चित्तसमाधि और क्षान्तिनिधि नामक आर्याओं की दीक्षा हुई। सं० १३२१ फाल्गुन वदि ११ को पालनपुर में मन्दिर के एक गोख में तीन प्रतिमाओं की
और ध्वजदण्ड की प्रतिष्ठा की। बाद में जैसलमेर के श्री संघ की प्रार्थना से श्री जिनेश्वरसूरि जी जैसलमेर १. यहाँ फाल्गुन वदि ग्यारस का उल्लेख गुजराती मास गणना के अनुसार दिया गया प्रतीत होता है।
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खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड For Private & Personal Use Only
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